शहीद परिवारों के लिए बेमानी है जंग-ए-आजादी का जश्न

punjabkesari.in Monday, Aug 13, 2018 - 10:18 AM (IST)

पठानकोट (शारदा,आदित्य): जंग-ए-आजादी की 71वीं वर्षगांठ के जश्न को धूमधाम से राष्ट्रीय स्तर पर मनाने की तैयारियां जोर-शोर से अंतिम चरण में पहुंची चुकी हैं। वहीं सारे देश को दुल्हन की तरह सजाया जा रहा है। आजादी की इस गरिमा को बरकरार रखने हेतु देश की बलिबेदी पर प्राणों की आहुति देने वाले वीर सेनानियों को राष्ट्र एकसुर में श्रद्धांजलि अर्पित करेगा, वहीं इस उत्सव के पीछे एक गहन अंधेरा है। इस अंधेरे की स्याह चादर में लिपटी हुई हैं शहीद परिवारों की करुणामयी सिसकियां, जो इसको चीरते हुए हर देशवासी को अपनी ओर आकर्षित कर रही हैं।

मगर इन शहीद परिवारों के जख्मों पर मरहम लगाने वाला कोई नहीं दिखता, जिन्होंने अपने लाडलों को देश की बलिबेदी पर हंसते-हंसते न्यौछावर कर दिया परन्तु सरकार की उपेक्षा का दंश झेल रहे इन शहीद परिवारों के लिए जंग-ए-आजादी का यह जश्र बेमानी है। कुछ इसी तरह की दर्द भरी कहानी है सीमावर्ती गांव मराड़ा के शहीद लांसनायक बिक्रम दत्त के परिजनों की, जिन्होंने अपने घर का चिराग 27 जनवरी, 2007 को जम्मू-कश्मीर के लेह सैक्टर में पाक सेना से लोहा लेते हुए 26 वर्ष की अल्पायु में राष्ट्र की बलिबेदी पर कुर्बान कर दिया। 

मरने से पहले देखना चाहती हूं शहीद बेटे की याद में बना स्मारक
शहीद की माता सोमा देवी ने बताया कि उनके बेटे के अंतिम संस्कार के मौके पर पहुंचे कई राजनेताओं व प्रशासनिक अधिकारियों ने उसकी याद में एक यादगारी गेट व लाइब्रेरी बनाने, स्कूल का नाम शहीद के नाम पर रखने व उनके छोटे बेटे को नौकरी देने की घोषणा की थी। मगर अफसोस बेटे की शहादत के 11 वर्षों के बाद भी सरकार ने अपने वायदों को मूर्त रूप नहीं दिया।

शहीद की मां ने सजल नेत्रों से बताया कि उनकी आखिरी इच्छा है कि वह मरने से पहले अपने शहीद बेटे की याद में बना कोई स्मारक देख ले। उन्होंने कहा कि इतने सालों में सरकार-प्रशासन का कोई भी अधिकारी उनके परिवार की सुध लेने नहीं आया, सिर्फ शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के सदस्य ही समय-समय पर उनका दुख बांटने आते रहते हैं, जिससे उनका मनोबल बढ़ता है। 

भविष्य में कोई भी मां अपने बच्चे को सेना में भेजने से पहले कई बार सोचेगी: कुंवर विक्की
शहीद परिवार के साथ दुख सांझा करने पहुंचे शहीद सैनिक परिवार सुरक्षा परिषद के महासचिव कुंवर रविंद्र सिंह विक्की ने कहा कि अगर सरकार इन शहीद परिवारों की इसी तरह उपेक्षा करती रही तो भविष्य में कोई भी मां अपने बच्चे को सेना में भेजने से पहले कई बार सोचेगी तथा निश्चित रूप से इसका असर सीमा पर तैनात हमारे वीर जवानों के मनोबल पर पड़ेगा, जो देश की सुरक्षा के लिए ठीक नहीं होगा। सरकार को चाहिए कि शहीद की चिता ठंडी होने के साथ ही अपनी घोषणाओं को अमलीजामा पहनाकर शहीद परिवारों का मनोबल बढ़ाए। 

swetha