भारी भरकम सरकारी खर्च पर अपने घर लौटे प्रवासी मजदूरों ने फिर किया पंजाब का रुख

punjabkesari.in Friday, Jun 12, 2020 - 08:42 AM (IST)

पटियाला/रखड़ा(राणा): कोरोना महामारी के चलते लॉक डाऊन दौरान आर्थिक तंगी के साथ जूझते हुए प्रवासी मजदूरों को उनके अलग-अलग पैतृक राज्यों में भेजने का खर्चा पंजाब सरकार ने सरकारी खजाने में से किया, जबकि पंजाब की जनता बुनियादी सुविधाओं को तरस रही थी। हैरानी की बात है कि पैतृक राज्यों को भेजे प्रवासी मजदूरों की बड़ी संख्या फिर पंजाब को वापस लौटनी शुरू हो गई है। यदि प्रवासी मजदूरों ने इतनी जल्दी पंजाब वापस लौटना ही था तो उनके पैतृक राज्यों में जाने के लिए किए गए खर्च का जिम्मेदार कौन है? 

पंजाब से गए इन प्रवासियों को उनके पैतृक राज्यों ने भी सीधे तौर पर दाखिला देने से रोक दिया था।  परन्तु ये मजदूर वापस पंजाब लौटते समय कौन-सी सावधानियों में दाखिल हो रहे हैं, इसकी कोई जवाबदेही नजर नहीं आ रही। लिहाजा यह सारा कुछ राजनीति की भेंट चढ़ता दिखाई दे रहा है। उल्लेखनीय है कि प्रशासन की तरफ से 2 सप्ताहों के दौरान  इन प्रवासी मजदूरों को रेलों, बसों और निजी वाहन मुहैया करवा कर उनके पैतृक राज्यों में पहुंचाया गया। इन प्रवासी मजदूरों को मास्क, सैनीटाईजर, खाना आदि मुहैया करवाने के लिए करोड़ों रुपए खर्च किए गए, जिसके बावजूद बहुत से प्रवासी वापस पंजाब लौट आए हैं, वहीं धान की लगवाई का रेट बढऩे के कारण प्रवासी मजदूर बागो-बाग हैं। इन प्रवासियों में से कई मजदूरों के कोरोना पॉजीटिव आने के कारण प्रदेश सरकार की तरफ से पहले किए बचाव कार्यों पर पानी फिर चुका है। 

आखिर सरकार की ऐसी क्या मजबूरी थी कि इतनी बड़ी तादाद में सरकारी तंत्र लगाकर और पैसा खर्च कर इन प्रवासी मजदूरों को पैतृक राज्यों में भेजा गया और जाने के समय पर रेलवे स्टेशनों से कांग्रेस पार्टी के नेताओं की तरफ से पर्चे बांट कर किए प्रचार ने कुदरती महामारी में भी राजनीति करने की चाल भी जारी रखी, जबकि उससे आधा खर्च में इन सभी प्रवासी मजदूरों को राशन और जेब खर्च देकर यहां ही रखा जा सकता था। ऐसा करके कोरोना महामारी के फैलने से भी बचा जा सकता था, उद्योग चालू रहते और धान की रोपाई भी सस्ती और समय पर हो जाती।


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