मोदी और राष्ट्रवाद: पुलवामा से बालाकोट और राजीव गांधी से लेकर 1984 दंगों पर हुआ सियासी दंगल

punjabkesari.in Monday, May 13, 2019 - 05:26 PM (IST)

जालंधर। (सूरज ठाकुर) लोकसभा चुनाव के छह चरण पूरे हो चुके हैं। आखिरी चरण का चुनाव 19 मई को होगा और देश में सरकार किस की बनेगी यह तस्वीर भी साफ हो जाएगी। चुनाव के इन छह चरणों के दौरान सियासत मुद्दों को लेकर किस कद्दर करवट बदलती रही यह एक दिलचस्प पहलू है। विपक्षी दलों को लगता था कि लोग नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी के मुद्दे पर लोग मोदी सरकार से नाराज हैं। यही वजह रही कि इन मुद्दों को ही हथियार बनाकर कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों ने चुनाव प्रचार के दौरान मोदी सरकार को घेर कर रखा। दूसरी ओर पीएम मोदी ने असली मुद्दों से जनता का ध्यान हटाकर राष्ट्रवाद को मुद्दा बनाया और भाजपा की सियासत पुलवामा हमले और बालाकोट एयर स्ट्राइक के ईर्द-गिर्द घूमने लगी। छटे चरण के चुनाव तक सियासत का रुख इस कद्दर बदला कि मोदी के भाषणों की चपेट में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी तक आ गए। थोड़ी कसर बची थी तो वह 1984 के दंगों पर आकर सिमट सी गई। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि इस चुनाव का सबसे बड़ा चेहरा और मुद्दा मोदी ही रहे। रैलियों में दिए गए उनके भाषण अखबार की सुर्खियां बनते रहे और फिर वही चुनावी मुद्दा होते चले गए।

ऐसे बना राष्ट्रवाद मुद्दा 
14 फरवरी को कश्मीर के पुलवामा जिले में सीआरपीएफ के एक काफिले पर जैश-ए-मोहम्मद के आत्मघाती हमले में 40 जवानों के मारे जाने के बाद भारत ने 26 फरवरी को पाकिस्तान में चरमपंथी संगठनों के बालाकोट स्थित ठिकानों को निशाने पर लिया था। नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी के मुद्दों से घिरे पीएम नरेंद्र मोदी ने यहीं तय कर लिया था कि राष्ट्रवाद ही भाजपा का चुनावी मुद्दा होगा। चुनाव से पहले दिए गए एक साक्षात्कार में उन्होंने यह सपष्ट कर दिया था कि राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों पर उनकी सोच पिछली सरकारों से अलग है। उनके इस मुद्दे का विपक्षी दलों के पास इसलिए भी कोई तोड़ नहीं था क्योंकि बात देशभक्ति की हो रही थी। ऐसे में मोदी पर सेना पर सियासत करने के आरोप भी लगे और इस बाबत कई बार चुनाव आयोग में शिकायत भी हुई, लेकिन सिलसिला क्रमवार चुनाव के हर चरण में जारी रहा। ऐसा नहीं है कि मोदी ने राष्ट्रवाद पर ही अपना ध्यान केंद्रित रखा उन्होंने बीच में अपने भाषणों में "मोदी घर में घुस कर मारता है" जैसे शब्दों का प्रयोग कर जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने की भी कोशिश की।

'फिर एक बार मोदी सरकार'
भाजपा के दिग्गज नेताओं लालकृष्ण अडवानी और मुरली मनोहर जोशी जैसे नेताओं को हाशिए पर धकेलने के बाद चुनाव की पूरी कमान मोदी और शाह के ही हाथों में आ गई है। इन नेताओं के अलावा मोदी के 9 मंत्री भी चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। इनमें वित्त मंत्री अरुण जेटली, विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण, रेल मंत्री पीयूष गोयल, मानव संसाधन विकास मंत्री प्रकाश जावेड़कर, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सफाई मंत्री उमा भारती, उपभोक्ता मंत्री रामविलास पासवान, स्टील मंत्री चौधरी बीरेंद्र सिंह और पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान शामिल हैं। अगर राजनाथ सिंह की बात करें तो वह लखनऊ तक ही सीमित हो कर रह गए हैं। नीतिन गड़करी भी नागपुर में ही सिमट गए हैं। तीन दिग्गज नेताओं अनंत कुमार, गोपी नाथ मुंडे और मनोहर परिकर अब इस दुनिया में नहीं है। ऐसे में यहां यह नारा दिया गया कि 'फिर एक बार मोदी सरकार'। ताजुब्ब है कि कहीं भी यह नारा नहीं था कि 'फिर एक बार भाजपा सरकार'। जाहिर है इतने लोगों के हाशिए पर चले जाने के बाद भाजपा अमित शाह और नरेंद्र मोदी पर ही केंद्रित हो कर रह गई।

पुलवामा से बालाकोट
पीएम मोदी ने पाकिस्तान के खिलाफ आक्रामक कूटनीति का रास्ता अख्तियार किया। पहले की सरकारें जहां आतंकी वारदात के बाद दुनिया के सामने रोते हुए दुखड़ा सुनाती थीं, पाकिस्तान को धमकियां देती थीं, मोदी ने डायरेक्ट एक्शन की नीति अपनाई। हालांकि पुलवामा हमले में हुए 40 शहीदों और बालाकोट एयर स्ट्राइक का चुनाव प्रचार में सियासीकरण हुआ तो इस पप सियासी दलों ने ने बवाल मचा दिया। मोदी ने अहमदाबाद में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा था कि "मैं ज्यादा लंबा इंतजार नहीं करता, चुन-चुनकर हिसाब लेना मेरी फितरत है। पुलवामा हमले और उसके बाद के घटनाक्रम को लेकर उन्होंने कहा था कि "अब घर में घुसकर मारेंगे, उन्होंने कहा कि भारत में आतंकवादी हमलों के लिए जिम्मेदार लोग अगर पाताल में भी छिपे होंगे तो वह उन्हें खोज निकालेंगे"। अमित शाह ने गुजरात में ही चुनावी सभा में कहा था कि, "उरी हमले के बाद हमारी सेना ने पाकिस्तान में घुसकर सर्जिकल स्ट्राइक को अंजाम दिया था। पुलवामा हमले के बाद सरकार ने 13वें दिन एयर स्ट्राइक कर 250 से ज्यादा आतंकी माग गिराए"।

राजीव गांधी से 1984 के दंगों तक 
छटे चरण के चुनाव तक आते-आते पीएम मोदी ने बहुत ही आक्रामक रुख अख्तियार कर लिया था। उन्होंने अपने भाषण में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के बारे में कहा कि उनका अंत नंबर वन भष्ट्राचारी के रूप में हुआ। उनके इस बयान की सोशल मीडिया में जमकर निंदा हुई। बात यहीं नहीं रुकी उन्होंने राजीव गांधी पर एक और आरोप जड़ा और कहा कि राजीव गांधी जब प्रधानमंत्री थे तो गांधी परिवार युद्धपोत आईएनएस विराट का उपयोग ''निजी टैक्सी'' के रूप में करता था। जबकि रिटायर्ड वाइस एडमिरल विनोद पसरिचा ने भी इस बात को सिरे से खारिज कर दिया है कि राजीव गांधी ने अपने दोस्तों और इतालवी सास के लिए इसका निजी इस्तेमाल किया था। खैर इस बात की सफाई भी पीएम मोदी ने दोबारा नहीं दी। 1984 के सिख जनसंहार पर कांग्रेस की ओवरसीज इकाई के अध्यक्ष सैम पित्रोदा के बयान पर छटे चरण के चुनाव से पहले पीएम मोदी को एक बार फिर मुद्दा मिल गया। रोहतक में एक जनसभा में उन्होंने कहा कि देश पर सबसे ज्यादा समय तक राज करने वाली कांग्रेस कितनी असंवेदनशील रही है उसका प्रतीक सिख दंगों पर पार्टी के तीन शब्द हैं..'हुआ तो हुआ'। पीएम मोदी ने कहा कि इससे पार्टी (कांग्रेस) का चरित्र पता चलता है।

कांग्रेस का चुनाव प्रचार में रहा एक सूत्रीय फार्मूला
इस चुनाव में कांग्रेस का गरीबी हटाने को लेकर एक सूत्रीय फार्मूला रहा। अध्यक्ष राहुल गांधी ने देश से गरीबी मिटाने का संकल्प लेते हुए घोषणा की कि कांग्रेस की सरकार बनी तो देश के 20 फीसदी सबसे गरीब परिवारों को हर साल 72,000 रुपये दिए जाएंगे। अपनी दादी इंदिरा गांधी के 'गरीबी हटाओ' की तर्ज पर उन्होंने दावा किया कि हम देश से गरीबी को मिटा देंगे। उन्होंने बताया कि न्यूनतम आय की यह योजना चरणबद्ध तरीके से लागू की जाएगी और गरीबों के बैंक खातों में सीधे पैसा डाला जाएगा। कांग्रेस की इस योजना को मनरेगा पार्ट-2 माना जा रहा है। इसके अलावा उन्होंने सरकारी सेक्टर में 22 लाख लोगों को रोजगार देने और पंचायत में युवओं को रोजगार के अवसर प्रदान करने पर भी चुनाव प्रचार में बल दिया। नोटबंदी, जीएसटी और बेरोजगारी के मुद्दे पर कांग्रेस ने मोदी सरकार को पूरे चुनाव में घेर कर रखा।

किसकी बनेगी सरकार
लोकतांत्रिक महापर्व 19 मई को चुनाव के सातवें चरण के साथ समाप्त हो जाएगा। 23 मई को नतीजों से यह भी साफ हो जाएगा की सरकार किस पार्टी की बनने वाली है। फिलवक्त कई तरह के सर्वे और विश्लेषण नतीजों को लेकर सामने आ रहे हैं। पर यहां कहना उचित होगा कि विपक्षी दलों की राह इतनी आसान नहीं है कि मोदी सरकार को सत्ता के बाहर का रास्ता दिखा सके। इसके लिए विपक्ष को एकजुट होना पड़ेगा। यहां यह भी उल्लेखनीय है कि मोदी सरकार के साथ कारपोरेट जगत तो साथ खड़ा ही है और बहुमत न आने पर सत्ता के लिए जोड़-तोड़ करना पड़ा तो आरएसएस भी पीछे नहीं हटेगी।

Suraj Thakur