विटामिन-डी की कमी से आती है हड्डियों में कमजोरी

punjabkesari.in Thursday, May 09, 2019 - 11:02 AM (IST)

रूपनगर(कैलाश): सभी व्यक्तियों तथा जीव-जंतुओं के लिए प्रकृति ने सभी प्रकार के आवश्यक विटामिन्स व मिनेरल्स संबंधी तरह-तरह के खाद्य पदार्थ बनाए हैं ताकि उनके सेवन से स्वस्थ जीवन जिया जा सके। लेकिन एक ऐसा विटामिन जो खाद्य पदार्थों में कम और प्राकृतिक स्रोत से अधिक प्राप्त होता है, वह केवल विटामिन-डी माना जाता है। यदि आप विटामिन-डी युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन भी करते हैं तब भी विटामिन-डी की कमी का खतरा बना रह सकता है। क्योंकि केवल आहार के माध्यम से विटामिन-डी की पूर्ति शरीर में नहीं हो सकती। विटामिन-डी की आपूर्ति व्यक्ति को खाद्य पदार्थों से केवल 10 फीसदी होती है जबकि 90 फीसदी व्यक्ति को प्राकृतिक तौर पर सीधा धूप की किरणों से होती है।विटामिन-डी हड्डियों के स्वास्थ्य के लिए अत्यंत आवश्यक माना गया है। शरीर में विटामिन-डी की कमी होने से कैल्शियम की भी कमी हो सकती है, क्योंकि विटामिन-डी की सहायता से ही कैल्शियम का शरीर में अवशोषण होता है और यह कैल्शियम को पचाने में सहायता करता है। 


विटामिन-डी की कमी के लक्षण 

  • विटामिन-डी की कमी सीधा हड्डियों पर विपरीत प्रभाव डालती है।
  • विटामिन-डी की कमी से व्यक्ति का उदास रहना या उसमें चिड़चिड़ापन आ जाता है।
  • कुछ लोगों में विटामिन-डी की कमी से अचानक वजन बढ़ना भी शुरू हो सकता है।
  • मोटे व्यक्ति को विटामिन-डी की अधिक जरूरत पड़ती है।
  • विटामिन-डी व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता को मजबूत करता है।
  • विटामिन-डी की कमी से थकान भी महसूस होती है।
  • आप्रेशन एवं चोट लगने के बाद घाव भरने में लगने वाली देरी भी विटामिन-डी की कमी का संकेत करती है। 
  • विटामिन-डी की कमी से हड्डियां में फ्रैक्चर होने का खतरा बढ़ जाता है।
  • सिर में पसीना आना भी विटामिन-डी की कमी का शुरूआती लक्षण माना जाता है।

विटामिन-डी की कमी के कारण 

  • व्यक्ति को रोजाना लगभग 15 मिनट सूर्य की सीधी किरणें लेनी चाहिए।
  • आहार में विटामिन-डी की पर्याप्त मात्रा न लेना या विटामिन-डी का शरीर में अवशोषित न हो पाना।
  • लिवर व किडनी द्वारा विटामिन-डी को सक्रिय रूप में परिवर्तित न कर पाना।
  • गैस्ट्रिक बायपास सर्जरी वाले लोगों में भी विटामिन-डी की कमी होने का खतरा बना रहता है।
  • स्तनपान करने वाले शिशु में विटामिन-डी की कमी का खतरा अधिक होता है। 
  • 5 वर्ष से कम आयु वाले बच्चे में भी विटामिन-डी की कमी की संभावना अधिक होती है।
  • मोटापा, थायराइड रोग, टी.बी. के मरीज ङ्क्षलफोमा जैसे कैंसर के मरीज आदि में भी विटामिन-डी की कमी हो सकती है।
  • अधिक आयु वाले लोगों में भी विटामिन-डी की कमी का खतरा अधिक होता है। 
  • व्यक्ति का शरीर धूप में पूर्ण रूप से विटामिन-डी लेने में असमर्थ होने लगता है। 

कैसे हो सकता है बचाव 
रोजाना 15 से 20 मिनट तक धूप लेना और विटामिन-डी युक्त पौष्टिक आहार के सेवन से विटामिन-डी की कमी से बचा जा सकता है। व्यक्ति को अपना वजन संतुलन बनाए रखने की जरूरत होती है। रोजाना व्यायाम करें व सैर करें। यदि व्यक्ति के पेट, लिवर व किडनी में कोई रोग है तो उसका उपचार करवाना जरूरी है क्योंकि इनसे विटामिन-डी अवशोषण हो सकता है। सभी प्रकार के डेयरी उत्पाद जिनमें दूध, पनीर आदि शामिल हैं, के सेवन से विटामिन-डी की कमी से बचाव हो सकता है। संतरे का जूस, सोया मिल्क तथा अनाज आदि में भी विटामिन-डी की भरपूर मात्रा रहती है। मछली का तेल, मशरूम तथा नान वैज भी विटामिन-डी का अच्छा स्रोत माना जाता है। 

डाक्टर की राय

विटामिन-डी की कमी से व्यक्ति को कई प्रकार की समस्याएं आ जाती हैं। सर्वप्रथम तो व्यक्ति की हड्डियां कमजोर होने लगती हैं और उनके टूटने का खतरा भी बना रहता है। इसके अतिरिक्त महिलाओं में विटामिन-डी की कमी से बांझपन की शिकायत, बच्चों में अस्थमा की शिकायत, बच्चों में सूखा रोग जिसमें बच्चों की हड्डियां मुडने लग सकती हैं, का खतरा हो सकता है। इसके अतिरिक्त विटामिन-डी की कमी से व्यक्ति को हृदय रोग भी हो सकता है। अधिक आयु वाले व्यक्तियों का दिमाग भी कमजोर हो सकता है। विटामिन-डी एक वसा में घुलनशील विटामिन होता है और जो भी विटामिन-डी दिन में लिया जाता है, वह व्यक्ति के शरीर में मौजूद रहता है। विटामिन-डी की कमी हो जाने से व्यक्ति को पौष्टिक आहार के साथ-साथ विटामिन-डी के फूड सप्लीमैंट भी दिए जाते हैं और बच्चों को विटामिन-डी तरल के रूप में दिया जाता है। विटामिन-डी की मात्रा कितनी लेनी चाहिए, यह अलग-अलग चीजों पर निर्भर करता है। मार्कीट में विटामिन-डी की गोलियां लिक्विड तथा इंजैक्शन भी उपलब्ध रहते हैं तथा रोगी की आवश्यकता के अनुसार उसे विटामिन-डी की खुराक दी जाती है।-डा. गोपीनाथ,  हड्डी रोग विशेषज्ञ रूपनगर।

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