पी.पी.पी. मोड पर संभाली जाएंगी सड़कों पर घूमती लावारिस गाएं: कथीरिया

punjabkesari.in Thursday, Jul 18, 2019 - 11:14 AM (IST)

जालंधर(नरेश): राष्ट्रीय कामधेनु आयोग के चेयरमैन वल्लभ भाई कथीरिया ने कहा है कि कामधेनु आयोग देश की सड़कों पर खुलेआम घूम रहे गौधन की रक्षा के लिए आने वाले समय में विशेष प्रयास करने जा रहा है और इस मकसद से देश के सारे शहरों में पी.पी.पी. मोड पर गायों के लिए गौशालाएं स्थापित की जाएंगी और खुले में घूमने वाली गायों को इन गौशालाओं में आश्रय दिया जाएगा। इसके साथ ही देश में देशी गाय की नस्ल पर काम करके उसे ज्यादा दुधारू बनाया जाएगा ताकि देशी गाय के दूध के उपयोग से बीमारियों से बचा जा सके। पंजाब केसरी के साथ विशेष बातचीत में कथीरिया ने कामधेनु आयोग की पूरी योजना पर विस्तार से चर्चा की। पेश हैं कथीरिया से हुई पूरी बातचीत :-

प्र. : कामधेनु आयोग के गठन का मकसद क्या है? 
उ. :
फरवरी में एन.डी.ए. सरकार ने बजट के दौरान इस आयोग का गठन किया था और इस आयोग के लिए 500 करोड़ रुपए के बजट की भी घोषणा की गई थी। अब नई सरकार के सत्ता में आने के बाद आयोग ने काम करना शुरू कर दिया है। हमारा मकसद गौधन की रक्षा के साथ-साथ इसका उपयोग कृषि क्षेत्र के लिए करने का है।  

प्रश्न : गौ भक्तों के चलते चमड़ा उद्योग कच्चे माल की कमी की शिकायत कर रहा है, आप क्या कहेंगे
उ. क्या गाय को मार कर ही चमड़ा मिलेगा। जो गाय प्राकृतिक तरीके से मृत्यु का शिकार हो रही हैं। उसका चमड़ा इस्तेमाल करने पर कोई रोक नहीं है और सिर्फ गाय का चमड़ा ही उद्योग में इस्तेमाल नहीं होता बल्कि अन्य पशुओं का चमड़ा भी तो इस्तेमाल किया जा सकता है। गाय हमारी परम्परा में पूजनीय है और उसका वध नहीं होने दिया जाएगा। 

प्र. : देशी गाय कम दूध देती है, ऐसे में किसान इसे कैसे अपनाएंगे?
उ. : यह महज एक धारणा है कि देशी गाय कम दूध देती है। जबकि असलियत यह है कि देशी गाय का दूध अंग्रेजी गाय के मुकाबले ज्यादा पौष्टिक है। हमने देश के अलग-अलग हिस्सों में देशी गायों की करीब 4 दर्जन नस्लों की पहचान की है जिन्हें जैनेटिक रूप से विकसित किया जाएगा और ऐसी नस्लें तैयार की जाएंगी जिनकी दूध देने की क्षमता दो से चार गुना बढ़ जाएगी। इस काम को कम से कम 6 साल लग सकते हैं क्योंकि एक गाय 3 साल में जवान होकर बछड़े को जन्म दे देती है और तीसरी जैनरेशन की गाय से पैदा होने वाले बछड़े ज्यादा दूध देने में सक्षम होंगे।

 प्र.: दूध के अलावा गाय का  अन्य इस्तेमाल क्या होगा?
उ. : दरअसल गाय सिर्फ दूध के काम नहीं आती बल्कि उसके गोबर और गौमूत्र से कई प्रकार की दवाइयां तैयार की जा सकती हैं। इसके साथ ही इसका इस्तेमाल बायो पैस्टीसाइड्स और बायो फर्टीलाइजर के रूप में भी किया जा सकता है। हम किसानों को इस तरफ प्रेरित करेंगे और इसके लिए जन मुहिम चलाई जाएगी। इससे न सिर्फ किसानों का खाद और कीटनाशकों पर होने वाला खर्च बचेगा बल्कि साथ ही कृषि की तस्वीर भी सुधरेगी और कीटनाशकों के कारण होने वाली बीमारियों के चलते होने वाले इलाज का खर्च भी बचेगा।

प्र. : सड़कों पर घूमते लावारिस  गौधन के लिए क्या योजना है?
उ. : यह पूरे देश में चिंता का विषय है क्योंकि अक्सर लोग ऐसे गौधन को आवारा छोड़ देते हैं जो दूध देने में सक्षम नहीं होता। हम पी.पी.पी. मोड पर राज्य सरकारों और स्वयंसेवी संगठनों के साथ मिलकर शहरों में ओपन गौशाला का निर्माण करेंगे। ऐसी गौशाला में छत के साथ-साथ पानी और चारे की व्यवस्था भी होगी। ऐसे तमाम आवारा पशुओं को इन गौशालाओं में रखा जाएगा और इन पशुओं के गोबर और गौमूत्र से बायो फर्टीलाइजर और बायो पैस्टीसाइड्स तैयार किए जाएंगे। इनमें से ही कुछ अच्छी बछडिय़ों को चुन कर लोगों को दिया जाएगा और दूध देने लायक ये बछडिय़ां जब गाएं बन जाएंगी तो ये लोगों की आय का साधन भी बनेंगी। 

प्र. : इन योजनाओं को जमीनी स्तर पर लागू कैसे किया जाएगा?
उ. : फिलहाल इस पूरी योजना का ब्ल्यू प्रिंट तैयार हो रहा है और लोगों को इस बारे में जागरूक किया जाएगा और बच्चों के पाठ्यक्रम में भी गाय के महत्व को लेकर पाठ शामिल किए जाएंगे। लोगों को यह बताया जाएगा कि गाय का दूध गुणकारी है और उसमें कैंसर रोधी तत्व भी है जोकि भैंस अथवा दूसरे दूध में नहीं होता।  हम फिलहाल गाय के दूध के अलावा अन्य वैल्यू एडीशन के विकल्पों पर काम कर रहे हैं और जल्द ही देश को इसके नतीजे देखने को मिलेंगे। 

प्र.: इतने बड़े स्तर पर बायो खाद का निर्माण कैसे होगा?
उ. : इस योजना पर काम चल रहा है। केंद्र सरकार की एजैंसियां कृभको और इफको खाद का काम करती हैं। हम इन दोनों एजैंसियों के जरिए देश में खपत होने वाली कुल खाद में से 10 फीसदी बायो फर्टीलाइजर बनाने की योजना बना रहे हैं। पहले चरण में देश में इस्तेमाल होने वाली कुल खाद के 10 फीसदी हिस्से को बायो खाद से परिवर्तित करने की योजना है। लम्बी अवधि में हम 60 फीसदी बायो खाद का खेतों में इस्तेमाल करने का खाका तैयार कर रहे हैं। इसको कुछ समय लग सकता है लेकिन हम जैविक खेती की तरफ बढऩे की योजना बना रहा हैं और इसमें केंद्र सरकार के तमाम विभागों के अलावा राज्य सरकारों का भी सहयोग लिया जाएगा। 

Author

Naresh Kumar