मिसाल: 13 साल की उम्र में हादसे का हुई थी शिकार, अब Oxford में पढ़ेगी भारत की पहली दिव्यांग युवती

punjabkesari.in Monday, Jul 20, 2020 - 03:43 PM (IST)

होशियारपुर:  कहते हैं यदि हौसले बुलंद होने तो मनुष्य ज़िंदगी की बड़ी से बड़ी मुश्किल को पार कर अपनी मंजिल तक पहुँच जाता है। ऐसा ही कुछ होशियारपुर की रहने वाली 21 वर्षीय प्रतिष्ठा ने करके दिखाया है, जिसने इंग्लैंड में ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी में दाख़िला हासिल किया है। अपने बलबूते पर यह बड़ी उपलब्धी हासिल करने वाली वह भारत की पहली दिव्यांग लड़की बनी है। अब यह ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी से पब्लिक पॉलिसी में मास्टर डिग्री की पढ़ाई करेगी, प्रतिष्ठा की इस उपलब्धि पर पंजाब के कैप्टन अमरिंदर सिंह ने वीडियो काल करके उसका हौसला बढ़ाया है। प्रतिष्ठा का मकसद आईएएस अधिकारी बनना है। मुख्यमंत्री की शाबाशी ने उसमें ओर ज़्यादा उत्साह बढ़ा दिया है। प्रतिष्ठा बचपन से ही सिविल सेवा में जाना चाहती थी।

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13 साल की उम्र में हुई थी हादसे का शिकार
एक हादसे ने उसकी उम्मीदों को तोड़ने का प्रयास जरूर किया परन्तु उसके हौसले को टूटने नहीं दिया। 2011 में जब प्रतिष्ठा 13 वर्ष की थी तो चंडीगढ़ जाते समय कार हादसे में ज़ख़्मी हो गई थी। इस हादसे में उसकी छाती का निचला हिस्सा पैरालाईज़ हो गया था। वह तब से लेकर अब तक व्हीलचेयर पर है।

12वीं में भी किया था टॉप
प्रतिष्ठा के पिता मुनीश शर्मा होशियारपुर में ही डीएसपी स्पैशल ब्रांच तैनात हैं और माँ अध्यापिका है। प्रतिष्ठा दिव्यांगों के अधिकारों को लेकर भी सक्रिय भूमिका निभा रही है। व्हीलचेयर पर होने के बावजूद भी प्रतिष्ठा ने कभी भी मेहनत का दामन नहीं छोड़ा। उसकी मेहनत रंग लाई और उसने जेम्स कैंब्रिज इंटरनेशनल स्कूल होशियारपुर से 12वीं कक्षा में टॉप किया। इस के बाद वह पढ़ाई के लिए दिल्ली चली गई। वह महिला श्रीराम कॉलेज फार वूमैन दिल्ली यूनिवर्सिटी से राजनितिक शास्त्र में बी. ए. कर रही है। तीन सालों से वह अकेले ही रह रही है।

मुख्यमंत्री ने भी बढ़ाया हौसला 
कैप्टन अमरिंदर सिंह ने शाबाशी देते हुए अपनी फेसबुक पर लिखा है,''पंजाब की बेटी प्रतिष्ठा की इच्छा शक्ति और हिम्मत सचमुच प्रेरणादायक है। प्रतिष्ठा भारत की पहली बच्ची है जो व्हीलचेयर पर होने के बावजूद मास्टर प्रोगराम के लिए आक्सफोर्ड जा रही है और यह उस हर नौजवान के लिए प्रेरणात्मक बात है, जो अपनी ज़िंदगी में कुछ करने की इच्छा रखता है। मैं इस प्यारी बच्ची को सुनहरे भविष्य के लिए शुभकामनाएँ देता हूँ और मुझे पूरा यकीन है कि यह आगे जा कर भारत देश का नाम ओर रौशन करेगी। वाहिगुरू आपके ऊपर सदा मेहर बनाए रखे बेटा।''

 

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सफर था कठिन परन्तु फिर भी किया तय
प्रतिष्ठा कहती है कि उसका दिल्ली जाने का फ़ैसला बहुत ही मुश्किल था। माता-पिता होशियारपुर में रहते थे, फिर सोचा ज़िंदगी में कुछ करना है तो रिस्क तो लेना ही पड़ना है। यह सोच कर उसने दिल्ली जाने का फैसला किया। वहां उसे व्हीलचेयर के हिसाब के साथ घर की खोज करने में लगभग 6 महीने लग गए। कोई साधन न मिलने पर 8 से 10 किलोमीटर का सफ़र व्हीलचेयर पर ही तय किया। व्हीलचेयर लेकर बस से सफ़र करना मुमकिन नहीं है। कैब ही एक मात्र रास्ता होता था। पर प्रतिष्ठा बताती है कि इन मुश्किलों ने उन्हें और अपनी मंजिल के करीब पहुंचाने में मदद की है। इन चुनौतियों से लड़कर ही वो मुसीबतों का मजबूती से सामना करने में सक्षम हो पाई है।  


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Edited By

Tania pathak

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