2019 के चुनाव में एन.आर.आई. पंजाबियों का मोहभंग क्यों ?

punjabkesari.in Monday, May 20, 2019 - 11:06 AM (IST)

जालंधर(विशेष): पंजाब की 13 लोकसभा सीटों के लिए मतदान समाप्त हो गया है। हिंसा की कुछ घटनाओं के बीच इस बार मतदान 2014 के मुकाबले कम हुआ है। इन चुनावों में इस बार आप्रवासी भारतीयों (एन.आर.आइज) की कमी भी खली, जबकि पहले पंजाब में होने वाले चुनावों में एन.आर.आइज की खास भूमिका दिखाई देती थी। पंजाब अपनी समृद्ध धरोहर, खानपान, परंपरा और संस्कृति के लिए मशहूर है। 

पंजाबियों ने दुनिया में अमरीका, कनाडा, अस्ट्रेलिया, जर्मनी और इटली सहित कई देशों में अपना घर बना रखा है, जब भी पंजाब में चुनाव होते हैं इन देशों में बसे पंजाबी पंजाब की ओर दौड़ पड़ते हैं ताकि वे लोकतंत्र के उत्सव में भाग ले सकें। बहुत से एन.आर.आइज तो चुनाव अभियान में भी हिस्सा लेते हैं और कभी-कभार उम्मीदवार की आॢथक मदद भी करते दिखाई देते हैं। 2017 में एन.आर.आइज का काफी उत्साह देखने को मिला जब पंजाब की 117 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुआ था। पंजाब में सबसे अधिक संख्या में एन.आर.आइज चुनाव प्रचार करते देखे गए। ये आप्रवासी अपने गांवों-शहरों में डोर-टू-डोर प्रचार करते देखे गए। ‘पंजाब चलो अभियान’ के तहत रोड शो भी किए गए। 2019 के चुनावों में एन.आर.आइज की भागीदारी बहुत कम दिखाई दी। 2 सालों में ऐसा क्या हुआ कि एन.आर.आइज का पंजाब के चुनावों के प्रति प्यार खत्म हो गया।

क्यों हुआ उत्साह कम

2017 के विधानसभा चुनावों को लेकर एन.आर.आइज पंजाबियों में काफी उत्साह था। उन्हें लगता था कि पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बन जाएगी लेकिन यह पार्टी चुनाव से पहले ही अंतर्कलह के चलते बिखरनी शुरू हो गई। धीरे-धीरे इसके नेता पार्टी छोड़कर दूसरे राजनीतिक दलों में जाने लगे। भले ही पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार नहीं बन सकी परंतु फिर भी यह पार्टी विधानसभा में विपक्षी दल के रूप में उभरी लेकिन उसके बाद घटे घटनाक्रमों के चलते ‘आप’ विधायक ही पार्टी छोड़कर जाने लगे। इसका बड़ा कारण था आम आदमी पार्टी के पंजाब के नेता दिल्ली की लीडरशिप से खुश नहीं थे, जोकि हरेक जगह अपना नियंत्रण रखना चाहती थी और पार्टी की वर्किंग में भी पारदर्शिाता नहीं थी। इसका एन.आर.आइज के मन पर बड़ा असर पड़ा और वे अपनी पारंपरिक पाॢटयों की तरफ चले गए। 

नॉर्थ अमेरिकन पंजाबी एसोसिएशन के कार्यकारी डायरैक्टर सतनाम सिंह का कहना है कि कोई भी एन.आर.आई. आम आदमी पार्टी को समर्थन के लिए उत्साहित नहीं था। उन्होंने यह भी कहा कि उन्होंने स्वयं अपने फेसबुक अकाऊंट पर पोस्ट डाली थी कि जो कोई भी एन.आर.आई. स्वेच्छा से पंजाब में चुनाव प्रचार अभियान में हिस्सा लेना चाहता है वह उनसे संपर्क कर सकता है लेकिन कोई रिस्पॉन्स नहीं आया। इसी तरह अमरीका में रहते अमनदीप सिंह ने भी कहा कि 2017 के चुनाव से उन्हें सबक मिला है कि किसी भी पार्टी को समर्थन देने का मतलब है पैसे और समय की बर्बादी।

2017 में एन.आर.आइज का ‘आप’ की ओर झुकाव क्यों?

दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को 70 में से 67 सीटों पर मिली बड़ी जीत के बाद से पंजाबी एन.आर.आइज ने पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनाने के लिए पिच तैयार करनी शुरू की। एन.आर.आइज महसूस करते थे कि अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस सरकारें पंजाब में नशे का खात्मा करने में विफल रही हैं। वहीं 2015 में पंजाब में घटी बेअदबी की घटी घटनाओं के कारण भी एन.आर.आइज के मन में तत्कालीन सरकार के प्रति खटास उत्पन्न हो गई। वहीं एन.आर.आइज का कहना है कि ये सरकारें किसानी के संकट का हल निकालने में भी असफल रही हैं। 
इन कारणों के चलते आम आदमी पार्टी के पक्ष में एन.आर.आइज एक लहर बन गई। कनाडा में रहते एन.आर.आई. जिन्होंने 2014 और 2017 के चुनावों में पंजाब में ‘आप’ के हक में प्रचार अभियान चलाया, ने कहा कि 2017 में आम आदमी पार्टी के हक में बड़ी लहर चली थी। उनका तभी मानना था कि यदि आम आदमी पार्टी की पंजाब में सरकार नहीं बनी तो वे पंजाब को पंजाबियों के लिए छोड़ देंगे। उन्होंने साफ कहा कि इन कारणों से वे पंजाब में प्रचार के लिए नहीं आए। इस बार चुनाव अभियान के लिए पंजाब आए एन.आर.आइज की संख्या 2 डिजिट्स से अधिक नहीं है, जिन्होंने 2017 में पंजाब चलो अभियान चलाया था।

2017 के चुनाव में एन.आर.आइज प्रचारकों की संख्या कितनी थी?
एक अनुमान के अनुसार लगभग 5,000 एन.आर.आइज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक अपनी-अपनी राजनीतिक पार्टियों खासकर ‘आप’ का समर्थन करने के लिए पंजाब आए थे। इन चुनावों में ‘आप’ का प्रदर्शन अच्छा रहा था। इसे अकाली दल-भाजपा और कांग्रेस के विकल्प के रूप में देखा जाता था। एन.आर.आइज ने पंजाब भर में रोड शो भी किए थे। ‘आप’ की तरफ से उस समय एक आधिकारिक बयान जारी कर दावा किया गया था कि 35,000 एन.आर.आइज ने पंजाब के 117 विधानसभा हलकों में पार्टी के लिए प्रचार किया। यह भी कहा गया कि अपने खुद के खर्चे पर यह प्रचार किया गया। 2014 के लोकसभा चुनावों में भी पंजाब में बड़ी संख्या में एन.आर.आइज और राष्ट्रीय स्वयंसेवक पहुंचे थे। इससे पहले संबंधित राजनीतिक पाॢटयों के केवल ओवरसीज सदस्य ही समर्थन करने को पंजाब आते थे। पिछले चुनावों में एन.आर.आइज ने चुनावी फंड के रूप में उम्मीदवारों को खुलेआम आर्थिक मदद भी दी।    

पंजाब में चुनावों में एन.आर.आई. सभा की भूमिका
करीब 55 लाख पंजाबी विदेशों में सैटल हैं। एन.आर.आइज की समस्याओं के समाधान के लिए 1990 में एन.आर.आई. सभा की स्थापना की गई। इसके 25,000 के करीब सदस्य हैं और अब कई एन.आर.आइज इसकी सदस्यता छोड़ चुके हैं। पंजाब में होने वाले चुनावों में एन.आर.आई. सभा अहम भूमिका निभाती आई है। 2-3 साल बाद सभा के इलैक्शन होते हैं लेकिन 2015 के बाद से चुनाव नहीं हुए। जसवीर सिंह गिल इसके अंतिम प्रधान थे जोकि 2017 में पद से रिलीव हुए। वर्तमान पंजाब सरकार के उदासीन रवैये के कारण एन.आर.आई. सभा के चुनाव नहीं हो सके। हर साल होने वाला एन.आर.आई. सम्मेलन और एन.आर.आई. संगत दर्शन भी नहीं हो सका। सरकार के उदासीन रवैये के चलते विदेश में बसे लाखों पंजाबी पंजाब में इन्वैस्टमैंट को तैयार नहीं हैं।

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