Students के लिए घातक साबित हो रही ‘नंबर Game’, Parents को भुगतना पड़ रहा खामियाजा

punjabkesari.in Saturday, Jul 18, 2020 - 05:22 PM (IST)

बठिंडा: शिक्षा के क्षेत्र में इन दिनों चल रही नंबर गेम विद्यार्थियों के लिए घातक सिद्ध हो रही है। परीक्षाओं में नंबर कम आने से परेशान विद्यार्थी खुदकुशी जैसे कदम उठा लेते हैं जिसका खामियाजा बाद में अभिभावकों को ही भुगतना पड़ता है। पूरी शिक्षा प्रणाली ने विद्यार्थियों को अंकों के प्रतिशत में उलझा दिया है व उम्मीद से कम अंक आने पर विद्यार्थी इसे सहन नहीं कर पाते क्योंकि अभिभावकों व समाज की नजरों में वह खुद को गिरा हुआ महसूस करते हैं। इस प्रकार के घटनाक्रम के लिए शिक्षा प्रणाली के साथ-साथ अभिभावक, अध्यापक व शिक्षण संस्थान सभी बराबर के हिस्सेदार हैं जो बच्चों पर अधिक नंबर लाने के लिए इतना अधिक दबाव डालते हैं कि बच्चा इस दबाव को सहन नहीं कर पाता। 

प्रतिवर्ष 10 हजार विद्यार्थी करते हैं आत्महत्याएं 
एन.सी.आर.बी. के डाटा के अनुसार हर साल लगभग 10 हजार विद्यार्थी आत्महत्याएं करते हैं जिनमें से 25 फीसदी विद्यार्थी केवल परीक्षा में कम अंक आने के बाद ये कदम उठाते हैं। वर्ष 2018 के दौरान देश भर में कुल 1.3 लाख आत्महत्याएं हुईं थीं जिनमें से 8 फीसदी केवल विद्यार्थी थे। इनमें से 25 फीसदी विद्यार्थियों  ने उम्मीद से कम अंक आने के बाद ही आत्महत्या की।एन.सी.आर.बी. के अनुसार हर साल विद्यार्थियों की खुदकुशियों की संख्या बढ़ रही है। 2016 में 9478 , 2017 में 9905 तथा 2018 के दौरान 10,159 विद्यार्थियों ने खुद को मौत के मूंह में झोंक दिया। 

अभिभावक बनाएं बच्चों को स्ट्राँग
बठिंडा विकास मंच के अध्यक्ष व पूर्व अध्यापक राकेश नरूला ने कहा कि अंकों की इस गेम ने विद्यार्थियों को मानसिक तौर पर परेशान कर दिया है। इस पूरी व्यवस्था के लिए हमारी मौजूदा शिक्षा प्रणाली जिम्मेवार है। विद्यार्थियों  को उनकी रुचि के अनुसार पढऩे देना चाहिए व अधिक अंक लेने के लिए उन पर किसी प्रकार का दबाव नहीं डालना चाहिए। बच्चों को मानसिक तौर पर स्ट्राँग बनाना चाहिए ताकि वह जिंदगी की हर जंग लड़ सके। उन्हें जिंदगी की अहमियत के बारे जानकारी देनी चाहिए। बच्चों में मुकाबले की दौड़ अच्छी बात है लेकिन मुकाबले की दौड़ के अंजामों को जरूर ध्यान में रखा जाना चाहिए।

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