कहीं आपका बच्चा भी तो नहीं ऑनलाइन गेम का शिकार !

punjabkesari.in Thursday, Jan 03, 2019 - 09:40 AM (IST)

नवांशहर(त्रिपाठी): किशोर आयु के युवक ऑनलाइन गेम्स के मक्कड़ जाल में फंसते जा रहे हैं जो उनकी पढ़ाई पर भारी पड़ रही है। ज्यादातर किशोर माता-पिता के सोने के बाद देर रात तक ऑनलाइन गेम्स को खेलते रहते हैं। परीक्षा के समय जहां उन्हें यह समय पढने में लगाना चाहिए। विडम्बना यह है कि गेम्स खेलने वाले किशोर माता-पिता की आंखों में धूल झोंक रहे हैं। इन ऑनलाइन गेम्स को मोबाइल पर खेलने वालों किशोर की आयु 12 से 18 वर्ष तक है। ऑनलाइन गेम खेलने की लत केवल किशोर अवस्था के युवकों में ही नहीं, बल्कि व्यस्कों को भी अपनी चपेट में ले रही है।  

भारत में ही नहीं बल्कि संसार भर में युवक रात के समय ऑनलाइन होकर एक-दूसरे से ऑनलाइन गेम्स में बेहतर रैकिंग हासिल करने के लिए मुकाबलेबाजी करते हैं। ऑनलाइन गेम के मक्कड़ जाल में फंसते जा रहे युवक लगातार मोबाइल फोन पर बने रहने के चलते कई तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। ऑनलाइन गेम की शुरुआती स्टेज से गुजर रही 9वीं कक्षा की एक छात्रा ने बताया कि उसे मोबाइल फोन पर गेम खेलना अच्छा लगता है। मम्मी की डांट के बावजूद भी वह जब भी समय मिलता है, ऑनलाइन गेम खेल लेती है।  

कौन-सी ऑनलाइन खेलें किशोरों को ले रही चपेट में  
नवांशहर के एक युवक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि पब्ज, फोर्ट नाइट, कैंडी क्रश, 8 बाल पूल, क्लैश आफ क्लेन, काऊंटर स्ट्राइक गो तथा लुडो जैसी खेलें आकर्षित करती हैं। गेम खेलने वाले कुछ युवकों ने बातचीत में बताया कि जब उनके अभिभावक रात को सो जाते हैं तो वे इस खेल को खेलना शुरू करते हैं जो देर रात तक चलती रहती है। 

क्या है पब्ज खेल 
एक युवक ने बताया कि ऑनलाइन खेलों में फोर्टनाइट तथा पब्ज जैसी खेलें अधिक प्रचल्लित हैं। इन खेलों में विश्व भर के करीब 100 लोग एक साथ ऑनलाइन जुड़ते हैं, जिसमें 4-4 के ग्रुप में एक टापू पर उतरना होता है। जहां से ए.के. (एम) एक तरह की ए.के. 47, अन्य बारूद, हैलमेट तथा सुरक्षा के अन्य उपकरण हासिल करने के बाद एक-दूसरे गु्रप के साथ युद्ध लड़ा जाता है। दूसरे ग्रुप के  लोगों को मारते हुए जो ग्रुप अथवा ग्रुप का व्यक्ति अंत में अकेला रह जाता है, वह विजेता बनता है। 

रैकिंग न मिलने से यूजर होते हैं मानसिक रोगों के शिकार
मनोचिकित्सक डा. जे.एस. संधू ने कहा कि गेम जीतने के लिए 99 यूजर को मारना होता है, परन्तु रैकिंग न मिलने पर यूजर को झटका लगता है तथा उनकी मानसिक हालत बिगड़ जाती है। ऑनलाइन गेम की लत के शिकार हो रहे नौजवानों को यदि मोबाइल से दूर किया जाए तो उनकी हालत तरस योग्य हो जाती है तथा ऐसा प्रतीत होता है जैसे उनकी कोई चीज छीन ली गई है। ब्ल्यू वेल भी एक ऐसी ही गेम है जो यूजर को आत्महत्या के लिए उत्साहित करती है तथा अपने देश में भी ऑनलाइन खेल के चलते आत्म हत्या के कई मामले पहले भी आ चुके हैं। युवाओं को माता-पिता के सपनों को साकार करने के लिए अपने समय का सदुपयोग करना चाहिए।’ 

क्या कहना है मुख्य अध्यापकों का

*‘अभिभावकों को अपने बच्चों की दिनचर्या का ध्यान रखने की जरूरत है। विशेष तौर पर रात को सोने के बाद भी बच्चों को कभी चैक करते रहता चाहिए कि कहीं बच्चे ऐसी ऑनलाइन खेलों का शिकार तो नहीं हो रहे हैं।’ मधु ऐरी, किरपाल सागर अकादमी प्रिंसीपल। 

*‘जिन बच्चों का पढ़ाई में ध्यान नहीं लगता, उन बच्चों पर अभिभावक ज्यादा ध्यान दें। क्योंकि किशोर ऑनलाइन गेम्स खेलने में मस्त हो जाते हैं और पढ़ाई की तरफ ध्यान नहीं देते हैं। स्कूल में अध्यापक और घर में अभिभावक खुद बच्चों के होमवर्क और पढ़ाई के बारे में पूछा करें। बच्चों को ज्यादा समय तक मोबाइल का प्रयोग न करने दें।’ -राजिन्द्र सिंह गिल, दोआबा आर्य सी.सै. स्कूल प्रिंसीपल।  

*‘देर रात तक ऑनलाइन गेम्स खेलने वाले किशोर सुबह समय पर उठ नहीं पाते हैं। नींद पूरी न होने से उनमें चिडचिड़ापन आ जाता है। ऐसे किशोरों पर अभिभावकों तथा अध्यापकों को ध्यान देने की जरूरत है। अगर आज अभिभावक बच्चों को ध्यान नहीं देंगे तो कल पछताना पड़ेगा, इसलिए सचेत हो जाएं।’ -सुखराज सिंह, डायरैक्टर प्रकाश माडल सी.सै. स्कूल। 

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