कुर्सी खोने के चक्कर में अफीम की खेती को वैध नहीं करना चाहती सरकार

punjabkesari.in Wednesday, May 01, 2019 - 11:59 AM (IST)

जालंधर(सूरज ठाकुर): आने-जाने वाली पंजाब सरकारें इतनी लाचार हो गई हैं कि न तो प्रदेश को नशाखोरी से मुक्त कर पा रही हैं और न ही किसानों को कर्ज से उभार पा रही हैं। महज कुर्सी खोने और पाने के खेल में सरकारें प्रदेश में अफीम और भुक्की की खेती को वैध करने के वादे से पीछे हट जाती हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि पंजाब में अफीम और भुक्की की खेती को वैध कर दिया जाए तो यहां के किसान मालामाल हो सकते हैं। कर्ज में डूबे किसान अफीम और भुक्की की खेती करके आर्थिक संकट से उभरना चाहते हैं। विदित है कि आत्महत्या करने वाले किसान नशा करके नहीं मरे, वे कर्ज से मरे हैं। 

क्या कहते हैं किसान नेता
सोसाइटी के अध्यक्ष डा. रणजीत सिंह कहते हैं कि अफीम एक ऐसी खेती है जो किसानों को मालामाल कर सकती है।  इसके लिए सरकार लाइसैंस जारी करती है जो काफी सीमित मात्रा में होते हैं। अफीम की खेती में फूल से लेकर दाने, छिलके समेत सभी प्रोडक्ट की बिक्री हो जाती है । इससे काफी कमाई होती है। सरकार के अलावा ब्लैक मार्कीट में पोस्त के किसी भी प्रोडक्ट की बिक्री करने पर 1985 के नशा निरोधक कानून (एन.डी.पी.एस.) के तहत सजा का प्रावधान है जोकि उम्रकैद से लेकर फांसी तक हो सकता है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और गुजरात की तरह अगर पंजाब व बाकी राज्यों में भी अफीम की खेती से पाबंदी खत्म कर दी जाए तो राज्य के किसानों को बड़ा मुनाफा होगा।

राजनीतिक दलों की मजबूरी
सरकारें निजी हितों और कुर्सी से बंधी रही हैं। भाजपा-अकाली सरकार इस मुद्दे पर खामोश रही क्योंकि सरकार का एक मंत्री ड्रग्स रैकेट में आरोपी पाया गया। दूसरा 2017 से पहले राहुल गांधी ने जो ड्रग्स एडिक्शन के आंकड़े पेश किए उससे विधानसभा चुनाव में कांग्रेस सत्ता में आई। पंजाब के 2 राजनीतिक दलों की मजबूरी हो गई कि अफीम-भुक्की के मसले से दूर ही रहा जाए। कैप्टन अमरिन्द्र की मजबूरी यह है कि वह जनता को किए प्रदेश से 4 सप्ताह में नशा खत्म करने के वायदे में खुद ही घिर गए हैं। सरकार के पास अपनी सियासत चलाने के लिए सीमांत किसानों को 2 लाख रुपए ऋण माफी के अलावा विकल्प नहीं बचा। डा. रणजीत सिंह कहते हैं कि यह समस्या का स्थायी हल नहीं है।

दबी जुबान में उठता है यह मुद्दा
पंजाब किसान खुशहाल वैल्फेयर सोसाइटी समेत करीब 6 किसान यूनियनों ने संगरूर के डिप्टी कमिश्रर को ज्ञापन सौंप कर अफीम और भुक्की की खेती को वैध करने की मांग की थी। सोसाइटी का मानना है कि ऐसा करने से राज्य में सिंथैटिक ड्रग्स पर भी अंकुश लग पाएगा। चुनाव से पहले हाल ही में किसान खुशहाल वैल्फेयर सोसाइटी समेत कई संगठनों ने दबी जुबान में यह भी ऐलान किया था कि जो सांसद बनने के बाद संसद में इस मुद्दे को उठाएगा हम उसे ही वोट देंगे।

दलों की लड़ाई में मंत्री फंसे 
दरअसल पंजाब में ड्रग्स का मुद्दा 2 बड़े सियासी दलों की लड़ाई है। किसान खुदकुशी ड्रग्स के कारण नहीं कर रहे हैं। विदित है कि बैंकों के कर्ज तले डूबे हैं, जबकि हकीकत तो यह है कि धान और गेहूं की खेती से प्रदेश में भू-जल स्तर गिरता जा रहा है। कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी राज्य में अफीम और भुक्की की खेती के पक्षधर हैं। वहीं सांसद धर्मवीर गांधी मामले को संसद में उठा चुके हैं।

सिद्धू भी कर चुके हैं वकालत
किसानों का भी यह कहना है कि प्रयोगात्मक स्तर पर पंजाब में केंद्र सरकार को कुछ इलाकों में अफीम और भुक्की की खेती करनी देनी चाहिए। यदि ऐसा करने से किसानों की आॢथक दशा सुधरती है तथा सिंथैटिक ड्रग्स का प्रयोग कम होता है तो फिर इसे बड़े पैमाने पर भी लागू करना चाहिए। एक मीडिया रिपोर्ट में आयुर्वैदिक डाक्टर डा. गुरिंदर सिंह अटवाल कहते हैं कि सिंथैटिक ड्रग के कारण हजारों परिवार बर्बाद हो गए हैं। अफीम और चूरा-पोस्त को कानूनी दर्जा दिया जाना चाहिए। इन दोनों को दवा के तौर पर पहले इस्तेमाल किया जाता था। इनका नियमित इस्तेमाल भी किसी तरह का कोई नुक्सान नहीं करता। 

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