2 रातें यहां गुजार कर ‘फुर्र’ हुई ‘पाकिस्तानी लैला’, पुलिस को दे गई ‘चकमा’

punjabkesari.in Thursday, Jan 10, 2019 - 10:57 AM (IST)

अमृतसर(सफर): जब तक अमृतसर पुलिस ‘पाकिस्तानी लैला’ को गिरफ्तार करने के लिए कानूनी सलाह ले पाती तब तक ‘पाकिस्तानी लैला’ अपने मजनूं को छोड़ पुलिस को ‘चकमा’ देते ‘फुर्र’ हो गई। सर्दी के बीच बुधवार को खिली धूप में ‘पंजाब केसरी’ में प्रकाशित खबर ‘ऐसी पाकिस्तानी लैला’ जो ‘मजनूं’ की मोहब्बत में लांघती है सरहद’ को पढ़कर चेहरे पर मुस्कान लाते पाठक पढ़ रहे थे तब तक पाकिस्तानी लैला ‘फुर्र’ हो चुकी थी। उधर, कबूतरों के जांबाज ‘कैप्टन’ (जीरा दबाज) ने अपनी लैला (जोनसरी) की मोहब्बत में दाना-पानी छोड़ दिया है। उधर पुलिस की भी बला टल गई। लैला के जाने के बाद ‘मजनूं’ उदास है। इलाके के ए.डी.सी.पी. लखबीर सिंह खबर पढ़ते हुए बोलेकहानी तो सुपरहिट है, सुपर हिट फिल्म बन सकती है’।     

सर हद हो गई : पक्षी ‘सरहद’ क्या जानें
पाकिस्तानी ‘लैला’ की कहानी आज सोशल मीडिया पर खूब ‘वायरल’ हुई। पुलिस विभाग में तो चर्चा ही छिड़ गई कि अब ‘पाकिस्तानी लैला’ का क्या होगा। कचहरी में भी इसी खबर की चर्चाओं के बीच वकीलों में बातचीत के दौरान बहस ही छिड़ गई। दोस्तों की टोली में बैठी एड. किरपाल कौर बोली ‘कबूतरी का ‘पाकिस्तानी या हिन्दुस्तानी’ होने का डी.एन.ए. कैसे पता चलेगा, पंख पर पाकिस्तान का नक्शा ही है। सवाल यह भी है कि कबूतरी पर मालकियत किसकी है। 

वह पाकिस्तान के किस शहर से आई थी। जब तक मालकियत सामने नहीं आती तब तक ‘पाकिस्तानी लैला’ कहां रहेगी, पुलिस केस ‘लैला’ को कैसे बनाएगी, केस प्रापर्टी बनाकर उसे रखेगी कहां? यह तमाम सवाल हैं। तभी बात आगे बढ़ाते एड. नवदीप कौर बोली ‘सही बात है, अगर वन जीव एक्ट की बात करें तो विदेशी पक्षियों के लिए कोई एक्ट बना ही नहीं है, सबसे बड़ी बात है कि पाकिस्तान के किसी पुलिस स्टेशन पर जब तक जोनसरी (पाकिस्तानी लैला) की गुमशुदगी रिपोर्ट दर्ज नहीं होगी तब तक पाकिस्तान ‘लैला’ पर दावा भी तो नहीं कर सकता’। यह सुनते ही एड. पूनम खिलखिला कर हंस पड़ी और कहने लगी ‘यह बताओ अगर भारत-पाक बंटवारे में आसमान का ‘बंटवारा’ होता तो कैसे होता, ‘सरहद’ हवा को नहीं बांट सकती और हवा के परिंदों को भी। आखिर में बोली ‘सर हद हो गई, पंक्षी सरहद क्या जानें।

‘लवली’ भरे मन से बोला-लैला की मोहब्बत ‘पाक’ है 
लैला के जाने के बाद मजनूं (जीरा दबाज) उदास है, मजनूं के मालिक लवली की आंखें आसमां की तरफ हैं। उसने भरे मन से कहा कि ‘सच में लैला ही थी कबूतरी, पाक मोहब्बत थी मेरे जांबाज की, कबूतरों का ‘कैप्टन’ है, उदास है। मुझे तो आस है कि वह जल्द लौटेगी, लेकिन पहली बार 2 रातें उसने यहां गुजारी हैं। आज धूप अच्छी थी, ठंडक कम थी। कुछ कबूतर-कबूतरी हवा में उड़े उसमें लैला-मजनूं भी थे, लेकिन थोड़ी देर बाद जब छत पर लौटे तो मजनूं अकेला था। पुलिस को सुबह ही जानकारी दे दी गई थी कि पाकिस्तानी लैला ‘फुर्र’ हो गई है, लेकिन मैंने उसका इंतजार सूरज की आखिरी रोशनी तक किया लेकिन ‘पाकिस्तानी लैला’ नहीं लौटी।     

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