PGI ने हासिल की नई कामयाबीः इस Technic से मरीज का इलाज करने वाले बहुत ही कम देश

punjabkesari.in Friday, Apr 22, 2022 - 10:38 AM (IST)

चंडीगढ़ (पाल): पी.जी.आई. एडवांस कार्डियोलॉजी डिपार्टमैंट ने अपने सातवें हार्ट ट्रांसप्लांट करने के बाद एक फिर नई कामयाबी हासिल की है। पी.जी.आई. कार्डियोलॉजिस्ट ने एक मरीज की बिना हार्ट सर्जरी के ही परक्यूटेनियस अप्रोच (टैक्नीक का नाम )से हार्ट वॉल्व की लीकेज को कंट्रोल कर दिया। 

पी.जी.आई. के लिए यह एक बड़ी अचीवमैंट है इससे पहले पी.जी.आई. ने इस तरह का केस पहले नहीं किया था। न सिर्फ पी.जी.आई. बल्कि दुनिया भर में इस टैक्नीक से मरीज का इलाज करने वाले बहुत ही कम देश हैं, जिन्होंने इसकी मदद से मरीज का इलाज किया है। देश में अपनी तरह के शुरूआती केसों में पी.जी.आई. के एडवांस कार्डियक सैंटर के डॉक्टर्स की टीम ने नया टी.आर.आई.सी. वॉल्व यंत्र 80 साल के मरीज में इंप्लांट किया है। वह बार-बार हार्ट फैलियर से पीड़ित था। पी.जी.आई. के कार्डियोलॉजी विभाग हैड प्रो. यशपाल शर्मा के नेतृत्व में एसोसिएट प्रोफैसर डॉ. हिमांशु गुप्ता ने इस सर्जरी को किया है। डॉ. गुप्ता ने बताया कि मरीज ओपन हार्ट सर्जरी के लिए शारीरिक रूप से मजबूत नहीं था। इस प्रोसैस के बाद मरीज पूरी तरह ठीक है, रिकवरी अच्छी हो रही है। रूटीन चैकअप के दौरान उसमें अब हार्ट फैलियर के कोई भी सिम्टम्स नहीं देखे गए हैं।

सर्जरी काफी मुश्किल थी, लेकिन टीम ने बेहतर काम किया
डॉक्टर्स के मुताबिक यह दिल के दो दाएं चैंबर्स के बीच में ट्राइकसपिड वॉल्व में लीकेज के कारण दिल में दाएं तरफ बार-बार होने वाला हार्ट फैलियर एक बहुत ही रेयर बीमारी होती है। इस बीमारी के होने के चांस उम्रदराज लोगों में ज्यादा होते हैं। साथ ही उन लोगों को भी इसका खतरा ज्यादा होता है जिनकी पहले वॉल्व सर्जरी हो चुकी होती है। मुश्किल यह होती है कि ऐसे मरीजों के इलाज में होने वाली टैक्नीक बहुत कम है। हमारे पास इलाज के ज्यादा ऑप्शन नहीं होते। ऐसे में हमें ओपन हार्ट सर्जरी ही करनी होती है, लेकिन मरीज की उम्र इसमें मुश्किल बढ़ा देती है। मरीज का वॉल्व बदलना ही एक ऑप्शन होता है जो काफी हाई रिस्क माना जाता है। इसमें मरीज की जान भी जा सकती है। डॉ. गुप्ता के मुताबिक सर्जरी काफी मुश्किल थी, लेकिन टीम ने एक बेहतर काम किया है जिसकी बदौलत मरीज की जान बच पाई है।

मरीज हैल्दी हो तो खतरा कम होता है
इस प्रोसैस में दिल के विनोस इनफ्लो सिस्टम में दो वॉल्व को इंप्लांट किया जाता है। इससे वॉल्व की लीकेज कम हो जाती है। दिल बेहतर तरीके से काम करने लगता है। वाल्व इंप्लांटेशन परक्यूटेनियस अप्रोच (त्वचा के जरिए) के तहत भी किया जा सकता है। इसमें ओपन हार्ट प्रक्रिया की जरूरत नहीं पड़ती। इस थैरेपी को ज्यादा वक्त नहीं हुआ हाल ही में इसे मंजूरी दी गई थी। ट्राइकसपिड रिगर्जिटेशन की वजह से बार बार दाएं तरफ के हार्ट फेल होने वाले मरीजों का इलाज किया जा सकता है। इस सर्जरी में खतरा कम होता है, लेकिन इसे तभी किया जाना चाहिए जब मरीज हैल्दी हो। मरीज इसकी प्रोसेस को झेल सके। 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Writer

Vatika

Recommended News

Related News