रिवायती खेती का बढ़िया विकल्प हो सकती है दालों की काश्त

punjabkesari.in Monday, Feb 24, 2020 - 10:15 AM (IST)

गुरदासपुर(हरमन): गेहूं-धान के रिवायती फसली चक्र में फंसे किसानों द्वारा दालों की काश्त करने से मुंह मोड़ लिए जाने के कारण स्थिति यह बनी हुई है कि देश में पैदा की जा रही फसल को संभालने का मामला सरकारों के लिए बड़ा सिरदर्द बना हुआ है। दूसरी तरफ दालों की बढ़ी मांग के मुकाबले देश में इनका उत्पादन कम होने के कारण हरेक साल तकरीबन 4 मिलियन टन दालें विदेशों से मंगवाई जा रही हैं।  ऐसी स्थिति में कृषि विशेषज्ञ यह दावा कर रहे हैं कि यदि पंजाब सहित देश के अन्य हिस्सों में रिवायती फसलों तले  क्षेत्रफल को कम करके दालों की काश्त को प्राथमिकता दी जाए तो न सिर्फ दालों की मांग पूरी की जा सकती है बल्कि इसके साथ मिट्टी, पानी और मानवीय सेहत के साथ जुड़े कई मसले भी हल किए जा सकते हैं। 

हर वर्ष होता है 5.57 मिलियन टन दालों का उत्पादन
भारत में हर वर्ष तकरीबन 9.70 मिलियन हैक्टेयर क्षेत्रफल में दालों की काश्त की जाती है। इस क्षेत्रफल में से लगभग 5 लाख 57 हजार टन दालों का उत्पादन होता है परन्तु दूसरी तरफ एक अनुमान अनुसार देश में दालों का कुल उपभोग 10 लाख टन के करीब है। ऐसी स्थिति में देश में दालों के उत्पादन की मांग के बीच वाले बड़े अंतर को पूरा करने के लिए हरेक साल करीब 4 मिलियन टन दालें विदेशों से मंगवानी पड़ती हैं। इस कारण विशेषज्ञ बार-बार यह अपील कर रहे हैं कि किसान दालों की काश्त करके जहां अधिकतर कमाई कर सकते हैं वहीं देश में दालों की मांग पूरी करने में भी योगदान डाल सकते हैं। 

आसानी से की जा सकती है दालों की खेती
खेती विशेषज्ञों अनुसार 60 दिन में पकने वाली फसल मूंग की दाल और उड़द की काश्त बहुत उपयुक्त है। ग्रीष्म ऋतु की दालों की धान-गेहूं के फसली चक्र में बहुत महत्ता है। ये कम समय में पक जाती हैं जिस कारण किसान फिर रिवायती फसल की काश्त भी कर सकते हैं। मूंग की दाल की काश्त के लिए अच्छे जल निकास वाली जमीन अच्छी होती है परन्तु कलराठी या सेम वाली जमीन मूंग की दाल की फसल के लिए उचित नहीं। पंजाब कृषि यूनिवॢसटी द्वारा मूंग की दाल की एस.एम.एल. 1827, टी.एम.बी. 37, एस.एम.एल. 832, और एस.एम.एल. 668 किस्मों की काश्त करने की सिफारिश की गई है। इन किस्मों की बिजाई से पहले जमीन की 2-3 बार बुवाई कर सुहागा मार कर बिजाई की जा सकती है। इसी तरह उड़द की फसल लगभग हर तरह की जमीन में हो सकती है परन्तु नमकीन-खारिया, कलराठी या सेम वाली जमीनों में उड़द की काश्त नहीं करनी चाहिए। पी.ए.यू. द्वारा पंजाब में उड़द-1137 और उड़द-1008 किस्मों की सिफारिश की गई है। सामान्य रूप से अच्छे हालातों में किसान उड़द की उक्त सिफारिश की किस्मों की काश्त करके करीब 4 से 4.5 किं्वटल प्रति एकड़ पैदावार ले सकते हैं जिससे करीब 20 से 25 हजार रुपए तक अधिकतर कमाई की जा सकती है। 

दालों की खेती से की जा सकती है खादों की बचत
रिवायती फसलों की काश्त से भूमिगत जल का गिर रहा स्तर भी गंभीर ङ्क्षचता का विषय है। प्राप्त विवरणों मुताबिक 1973 में पंजाब में सिर्फ 21 प्रतिशत क्षेत्रफल ही ऐसा था जहां पानी का स्तर काफी नीचे था परन्तु अब यह क्षेत्रफल 80 प्रतिशत के करीब पहुंच गया है इसलिए खेती विशेषज्ञ बार-बार अपील कर रहे हैं कि पानी की उपभोगता कम करने वाली फसलों की काश्त ही की जाए परन्तु इसके बावजूद किसान रिवायती फसलों से मुंह नहीं मोड़ रहे। खेती विशेषज्ञों का मानना है कि यदि किसान ग्रीष्म ऋतु में मूंग की दाल की काश्त करें तो बड़े स्तर पर पानी की बचत की जा सकती है। इसी तरह दालों की काश्त कर खादों की बचत भी की जा सकती है। 

क्या कहना है किसानों का 
इस संबंध में किसान नेता सुखदेव सिंह, गुरदीप सिंह, सतबीर सिंह, बलबीर सिंह रंधावा आदि ने कहा कि कई बार दालों के रेट पूरे नहीं मिलते जिस कारण किसानों को नुक्सान का सामना करना पड़ता है। उन्होंने कहा कि यदि सरकार दालों तले क्षेत्रफल बढ़ाना चाहती है तो फसल के मंडीकरण का उपयुक्त प्रबंध किया जाए। दालों की काश्त करने के लिए किसानों को सख्त मेहनत करनी पड़ती है जिसके बाद यदि फसल का रेट पूरा न मिले तो दोहरा नुक्सान होता है। 

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