पंजाब ने 2014 की तरह मोदी वेव को फिर नकारा

punjabkesari.in Thursday, May 23, 2019 - 04:15 PM (IST)

जालंधर(धवन): पंजाब ने 2014 की तरह मोदी वेव को एक बार फिर से नकार दिया है। 2014 में पूरे देश में मोदी के पक्ष में हवा चली थी परन्तु पंजाब में मोदी को भरपूर समर्थन नहीं मिल सका था। इस बार भी लगभग वैसी ही स्थिति देखने को मिली है। पंजाब में 2014 में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह अमृतसर लोकसभा सीट से चुनावी मैदान में उतरे थे। इस बार पंजाब की कमान स्वयं मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के हाथों में थी। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की राष्ट्रवादी छवि ने मोदी वेव को हावी नहीं होने दिया। यद्यपि शहरों में वोटें विभाजित हुई हैं परन्तु इसके बावजूद शहरी क्षेत्रों में पलड़ा कांग्रेस का भारी रहा। पंजाब ने एक बार फिर से केन्द्र के उलट फैसला दिया है। 

राजनीतिक विशेषज्ञों का भी मानना है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की राष्ट्रवादी छवि हावी रही है। भारतीय वायुसेना ने जब पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर हमला किया था तथा उसका श्रेय लेना केन्द्र सरकार ने शुरू किया था तो उस समय पंजाब की सीमा पर भी युद्ध के बादल मंडरा रहे थे। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने स्वयं भारत-पाक सीमा पर जाकर एक तरफ जहां भारतीय जवानों का हौसला बढ़ाया था, तो दूसरी तरफ उन्होंने सीमावर्ती क्षेत्रों में बसे लोगों के साथ मिलकर उनका मनोबल भी ऊंचा किया था। ऐसा करने से कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की राष्ट्रवादी छवि सामने आई थी। कैप्टन जो स्वयं भारतीय फौज में काम कर चुके हैं, ने पाकिस्तान के खिलाफ भारतीय वायुसेना के हमले को सराहते हुए सीधा पाकिस्तान पर हमला बोला था। कैप्टन लगातार पाकिस्तान के खिलाफ बोलते रहे। इससे उनकी राष्ट्रवादी छवि और मजबूत होती गई। लोगों के अंदर यह संदेश गया कि एक तरफ जहां प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी केन्द्र में एक मजबूत नेता हैं, तो दूसरी तरफ पंजाब में कैप्टन अमरेन्द्र सिंह एक मजबूत नेता हैं, जो राष्ट्र पर संकट आने के समय स्वयं आगे आकर काम करना पसंद करते हैं। 

पंजाब में 2014 में कांग्रेस ने 4 सीटें जीती थीं परन्तु अब कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपनी सीटों की गिनती को दुगना करते हुए 8 सीटें जीत ली हैं। देश में जहां 20 से अधिक रा’यों में कांग्रेस एक भी सीट जीत नहीं पाई है, तो दूसरी तरफ पंजाब में कैप्टन के नेतृत्व में कांग्रेस का प्रदर्शन सराहनीय आंका जा रहा है। कैप्टन ने लोकसभा चुनाव के दौरान भी लगातार कांग्रेस उम्मीदवारों के पक्ष में धुआंधार चुनावी रैलियां कीं तथा भाजपा व अकाली दल पर जमकर सियासी प्रहार किए। इससे कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं व नेताओं का मनोबल मजबूत हुआ। पंजाब के कांग्रेसियों ने भी राहत की सांस ली कि चाहे देश में मोदी वेव के कारण अनेकों रा’यों में चुनावी नतीजे भाजपा के पक्ष में एकतरफा रहे परन्तु पंजाब उससे अछूता रहा। कैप्टन की स्थिति कांग्रेस नेतृत्व के सामने भी और मजबूत हुई क्योंकि पंजाब में कैप्टन सरकार को बने 2 वर्ष से अधिक का समय हो चुका है। जिन रा’यों जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की अभी दो महीने पहले ही सरकारें बनी थीं, वहां कांग्रेस का प्रदर्शन बिल्कुल निराशाजनक रहा। दूसरी ओर कैप्टन सरकार ने छोटे किसानों के 2-2 लाख रुपए के कर्जे माफ करदिए तो उद्योगों के लिए भी 5 रुपए प्रति यूनिट बिजली देनी शुरू कर दी थी। अब चुनावों के बाद नौजवानों को स्मार्ट फोन भी मिलने का रास्ता साफ हो गया है। 

पंथक सीटों पर भी जीत का परचम फहराया
कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अपनी राष्ट्रवादी छवि के कारण शहरी क्षेत्रों में कांग्रेस के पक्ष में वोटें डलवाने में सफलता हासिल की है तो दूसरी तरफ देहाती क्षेत्रों में उन्होंने पूर्व अकाली सरकार के समय धार्मिक ग्रंथों की हुई बेअदबी के मामले को पूरी तरह से जोर शोर से उछाला, जिसका मुकाबला अकाली दल करने में असफल रहा। यही कारण था कि कांग्रेस ने पंथक कहलाने वाली सीटें श्री खडूर साहिब व श्री फतेहगढ़ साहिब को भी जीत लिया। कभी श्री खडूर साहिब सीट को अकाली दल अपनी पक्की सीट मान कर चलता था, परन्तु इस बार अकाली दल को कांग्रेस ने पंथक सीटों पर हाशिए में धकेल दिया है। पंजाब में मोदी वेव को फेल करके कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने अपनी सियासी स्थिति और मजबूत की है। अकाली दल ने यद्यपि 1984 के दंगों के मुद्दे को उठाने की कोशिशें की परन्तु इसके विपरीत धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी का मामला भारी सिद्ध हुआ। सिख समुदाय ने अभी इस मामले को भुलाया नहीं है। 

मंत्रियों व विधायकों की जिम्मेदारियां तय करने का भी पड़ा असर
मुख्यमंत्री अमरेन्द्र सिंह ने चुनावों के दौरान स्पष्ट कर दिया था कि जो मंत्री व विधायक अपने क्षेत्रों में कांग्रेस को बढ़त नहीं दिलवा सकेंगे, उनके लिए सियासी भविष्य अधिक उज्जवल नहीं होगा। मुख्यमंत्री ने तो यह भी कह दिया था कि जो विधायक अपने हलकों में हारेंगे, उन्हें अगली बार पार्टी टिकट नहीं देगी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की तरफ से यह संदेश अमरेन्द्र ने पूरे प्रदेश में फैला दिया, जिसका सकारात्मक असर देखने को मिला। मुख्यमंत्री के बयान के बाद कांग्रेसी विधायकों व नेताओं पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ गया था जिसके बाद उन्होंने अपने अपने हलकों में कमान संभाल ली थी। 

Vaneet