क्या पंजाब में अगले विधानसभा चुनावों तक बन सकेगा कोई महागठबंधन?

punjabkesari.in Monday, Jun 03, 2019 - 09:41 AM (IST)

जालंधर (बुलंद): आम आदमी पार्टी (आप) से टूट कर अलग हुए सुखपाल खैहरा ने बड़े जोर-शोर से पंजाबी एकता पार्टी और पंजाब डैमोक्रेटिक अलायंस का गठन किया था पर पंजाब की जनता ने खैहरा और उनके साथियों की इस पहल को सिरे से दरकिनार कर दिया है। ‘आप’ को भी पंजाब की जनता ने नकार दिया और बस भगवंत मान अपने दम पर संगरूर की सीट निकालने में सफल हो पाए हैं। अगर पूरे देश की बात करें तो सिर्फ एक सीट पर ही ‘आप’ पार्टी जिंदा रह पाई है। 

नतीजों से बाद से ऐसी चर्चाएं छिड़ी हुईं थी कि आगामी विधानसभा चुनावों को लेकर शायद एक बार फिर पंजाब में परंपरागत पार्टियों के खिलाफ महागठबंधन तैयार करने के लिए आप, पी.डी.ए., टकसाली अकाली व बसपा एकजुट हो सकते हैं, लेकिन जमीनी हकीकत देखें तो यह संभव नहीं दिख रहा। असल में सियासी माहिर मानते हैं कि लोकसभा चुनावों की तरह ही विधानसभा चुनावों में भी महागठबंधन की कोशिश तो होगी पर विफल ही रहेगी। लोकसभा चुनावों में जिस प्रकार ‘आप’ पार्टी के नेता भगवंत मान ने सुखपाल खैहरा के  खिलाफ बादल परिवार से मिलकर हरसिमरत को जिताने के लिए बठिंडा से चुनाव लडऩे जैसे बयान दिए थे और जिस प्रकार खैहरा ने आधा दर्जन के करीब आप विधायकों को अपने साथ मिलाकर ‘आप’ पार्टी के पैर पंजाब में कमजोर किए थे, फिर एक सीट के विवाद को लेकर टकसाली अकालियों के साथ ‘आप’ व पी.डी.ए. का कोई समझौता नहीं हो पाया।

ऐसे में पंजाब की राजनीति के विशेषज्ञों का मानना है कि ये छोटे दल व नेता कभी एक स्टेज पर एक सुर में नहीं हो सकते। अभी इस महागठबंधन में सुच्चा सिंह छोटेपुर और बसपा को शामिल करने की बात भी कही जा रही है जो कि असंभव ही है, क्योंकि सवाल यह उठता है कि इतनी पार्टियों के इतने नेता कैसे पंजाब में एकजुट होकर एडजस्ट करेंगे। पंजाब लोकसभा की 13 सीटों पर इन सबकी सहमति नहीं बन सकी। अगर ये सब मिलकर महागठबंधन बनाते तो जरूर कोई बड़ा उलट-फेर कर सकते थे। खडूर साहिब की सीट तो इनकी पक्की हो ही सकती थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। सब अपनी डफली अपना राग गाने वाले नेता हैं।सियासी विशेषज्ञ बताते हैं कि भगवंत मान और सुखपाल खैहरा दोनों ही बड़बोले हैं और कब किसके बारे क्या बोल दें, कुछ नहीं पता। डा. गांधी और छोटेपुर कभी किसी की बात ही नहीं सुन सकते व खुद को ही सही ठहराने की बुरी आदत इनको किसी पार्टी में टिकने नहीं देती है। 

टकसाली अकालियों को यह वहम है कि वे ही पूरे पंजाब और पंथ के हितैषी है, इस लिए वे एक आध सीट के लिए ही समझौते से पीछे हट जाते हैं, बसपा वैसे ही मायावती के इशारे पर चलती है और मायावती वही करेगी जिसमें उसका निजी फायदा होगा। बैंस बंधुओं की बात करें तो इस बार लोकसभा चुनावों में लुधियाना से उनकी हार ने साबित कर दिया है कि जिस लुधियाना में बैंस बंधु अपना वोट बैंक पक्का समझते थे, वहां भी उनकी जमीन खिसक चुकी है। वहीं सूचना यह भी है कि ‘आप’ के खैहरा गुट के कुछ विधायकों के साथ जहां ‘आप’ पार्टी अंदरखाते इनसे संपर्क में है, वहीं भाजपा और अकाली दल भी ‘आप’ के विधायकों पर डोरे डाल रहे हैं। 2 विधायक ‘आप’ के पहले ही कांग्रेस की गोद में बैठ चुके हैं। ऐसे में पंजाब में महागठबंधन तैयार हो पाना ना सिर्फदूर की कौड़ी दिखाई दे रही है, बल्कि राजनीति के माहिर इसे असंभव ही मान रहे हैं। 

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