पंजाब की सियासत में चल रहा है जीरो से हीरो बनने का खेल

punjabkesari.in Tuesday, Dec 04, 2018 - 09:35 AM (IST)

जालंधर(रविंदर): पंजाब की राजनीति 2019 लोकसभा चुनाव से पहले अजीब सी करवट ले रही है। पंजाब की तीनों प्रमुख राजनीतिक पार्टियां उठापठक के दौर से गुजर रही हैं। तीनों पार्टियों के भीतर जीरो से हीरो बनने का खेल चल रहा है।

बरगाड़ी कांड को लेकर जहां अकाली दल की राजनीति को बुरी तरह से फटका लग चुका है, वहीं सुखपाल खैहरा समेत अन्य नेताओं को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा कर आम आदमी पार्टी भी प्रदेश में अपना वजूद बचाने में जुटी हुई है। मगर सबसे हैरानी की बात यह है कि रिकार्ड तोड़ सीटें लेकर पंजाब की राजनीति पर काबिज होने वाली कांग्रेस के भीतर भी कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। विकास के काम न होने व पंजाब के लगातार पिछडऩे को लेकर कैप्टन सरकार पहले ही जनता के कटघरे में है, मगर अब पार्टी के भीतर ही वाक्युद्ध से लेकर मतभेदों व मनभेदों का खेल चल रहा है।

ताजा घटनाक्रम श्री करतारपुर साहिब कोरिडोर को लेकर है। धार्मिक मुद्दे के जरिए चाहे यह लगने लगा था कि भारत व पाकिस्तान दोनों देशों के बीच लंबे समय से बंद पड़ी बातचीत शुरू हो सकती है, मगर जिस तरह से पाकिस्तान के कुछ नेताओं के भारत विरोधी बयान आए, उसने पूरे मामले पर छंटी धूल को दोबारा जमा दिया है। अगर बात प्रदेश कांग्रेस की राजनीति की करें तो यहां पार्टी 2 दिग्गज नेताओं के बीच बंटकर रह गई है। कैप्टन अमरेंद्र सिंह जहां खुले मंच से पाकिस्तान आर्मी चीफ बाजवा को धमकी भरे लहजे में चैलेंज देते हैं, हीं उनकी की कैबिनेट के मंत्री बाजवा से जफ्फी डालते हैं। कैप्टन जहां आतंकवाद न थमने तक पाकिस्तान न जाने की बात कहते हैं तो सिद्धू पकिस्तान को हर हालत में गले लगाने की बात करते हैं। बात यहां तक तो ठीक थी, क्योंकि यहां माइलेज सिद्धू लेकर चल रहे थे और अधिकांश कांग्रेस के नेता भी कैप्टन के स्टैंड को सही न मानकर सिद्धू के पाकिस्तान जाने के स्टैंड को सही करार दे रहे थे, मगर इसके बाद जब सिद्धू का कैप्टन विरोधी बयान आया तो पार्टी के भीतर चल रही उठापठक की सारी परतें जनता के सामने साफ हो गई।

कैप्टन पर वार होते ही कैप्टन धड़ा दोबारा एकजुट हो गया और सिद्धू को हर तरह से घेरने की योजना बनाने लगा है। फिलहाल हाईकमान के इशारे पर चाहे दोनों नेताओं के बीच चल रही तनातनी को ठंडे बस्ते में डालने के प्रयास शुरू हो गए हैं, मगर इस एपिसोड ने पंजाब में कांग्रेस की भविष्य की राजनीति की तरफ इशारा साफ कर दिया है। कांग्रेस का वर्कर बुरी तरह से पशोपेश में है। वह यह समझ नहीं पा रहा कि वह कैप्टन के साथ जाएं या सिद्धू के साथ। दूसरी कतार के नेता भी असमंजस में है। उन्हें लगता है कि सिद्धू के साथ खड़े होने पर उन्हें आने वाले समय में कोई भी ओहदा नहीं मिल पाएगा तो दूसरी तरफ इस बात का भी डर है कि सिद्धू को अगर कल अहम जिम्मेदारी मिलती है तो फिर कैप्टन के साथ खड़े होने का खमियाजा भुगतना पड़ सकता है। कुल मिलाकर पंजाब की सियासत इस समय तीनों पाटियों के भीतर लंबे हिचकोले खा रही है।

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