कांग्रेस के पास इतिहास रचने का मौका: सही दाव खेला तो पंजाब में क्लीन स्वीप में सक्षम पार्टी

punjabkesari.in Thursday, Apr 04, 2019 - 09:30 AM (IST)

चंडीगढ़(हरिश्चंद्र): लोकसभा चुनाव में कांग्रेस के पास पंजाब में अपना सबसे शानदार प्रदर्शन करने का सुनहरी मौका है। पुनर्गठन के बाद से कांग्रेस कभी भी इस सीमावर्ती राज्य में क्लीन स्वीप नहीं कर पाई है।

इस बार बिखराव के  चलते  कमजोर  हो  चुके  विपक्ष  के  कारण राजनीतिक पंडित भी मानने लगे हैं कि कांग्रेस ने सही दाव खेला तो सभी 13 सीटों पर जीत का परचम फहरा सकती है। दरअसल, कांग्रेस पार्टी वर्ष 1966 के बाद से 1980 और 1992 में 13 में से 12 सीटें जीत क्लीन स्वीप के करीब पहुंची थी लेकिन 1980 दौरान शिरोमणि अकाली दल और वर्ष 1992 में बहुजन समाज पार्टी एक-एक सीट जीत कांग्रेस के रिकार्ड के आड़े आ गए लेकिन इस बार पार्टी हाईकमान को पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस इतिहास रच सकती है। अब तक घोषित आधा दर्जन उम्मीदवारों को देख साफ लगता है कि पार्टी अन्य 7 सीटों पर भी जीत की क्षमता रखने वाले चेहरों पर ही दाव खेलेगी। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह और प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ के बीच जो आपसी सूझबूझ और जुगलबंदी है, उससे उसकी राह आसान भी नजर आती है।


फिरोजपुर और श्री आनंदपुर साहिब में हिंदू वोटरों का दबदबा
फिरोजपुर और श्री आनंदपुर साहिब से यदि कांग्रेस हिंदू समुदाय के उम्मीदवार को चुनावी मैदान में उतारती है तो पार्टी की स्थिति और मजबूत होगी, क्योंकि इन दोनों लोकसभा क्षेत्रों में हिंदू वोटरों का खासा दबदबा रहा है। 

कैप्टन लोकप्रिय नेता
पंजाब में इस समय मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह सर्वाधिक लोकप्रिय नेता हैं। उनके आसपास भी कोई नेता जगह नहीं बना पा रहा है। आम आदमी पार्टी के अंदरूनी सर्वे में भी कैप्टन अमरेंद्र सिंह सबसे लोकप्रिय नेता उभरकर सामने आए हैं। 

अकाली दल अभी तक संभला नहीं
शिरोमणि अकाली दल विघटन के जिस दौर से गुजरा है और उसके कद्दावर नेताओं ने किनारा कर नया राजनीतिक दल गठित किया है उसने चुनावी समर में उतरने से पहले ही पार्टी को कमजोर कर दिया है। शिअद से लोकसभा सदस्य रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, रा’यसभा सदस्य सुखदेव सिंह ढींडसा, पूर्व सांसद डॉ. रतन सिंह अजनाला और पूर्व मंत्री सेवा सिंह सेखवां जैसे टकसाली नेताओं की ओर से किनारा करने से जो झटका लगा है, उससे पार्टी अभी उबर नहीं पाई है। शिअद को इनकी कमी मालवा और माझा में जरूर खलेगी। पार्टी चाहे अब युवा चेहरों को आगे लाकर चुनाव लडऩे जा रही हो लेकिन जैसे हालात बने हैं, उसमें पार्टी को ‘खास उम्मीदवारों’ की सीटों को बचाने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाना होगा। ऐसे में पार्टी नेतृत्व की पहली कोशिश अपना घर बचाने की होगी। पार्टी के शीर्ष नेतृत्व के लिए बाकी उम्मीदवारों के प्रचार के लिए समय निकालना और भी मुश्किल रहेगा।

 

वर्ष  कांग्रेस  शिअद  भाजपा अन्य
1967  9 1*  0
1971 10  1  0* 2
1977 9 3*  1
1980 12 1 0 0
1985 6 7 0 0
1989 2 0 0 11
1992 12  0 0 1
1996 2 8 0 3
1998 8 3 2
1999 8 2 1 2
2004  2  8 3 0
2009 8 4 1 0
2014  3 4 2 4

(* भारतीय लोक दल और जनसंघ)

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