लड़ाई अफसरों की, अक्स खराब कप्तान का

punjabkesari.in Wednesday, Apr 11, 2018 - 09:29 AM (IST)

जालंधर (राकेश बहल, सोमनाथ कैंथ): पिछले साल पंजाब में विधानसभा चुनावों के दौरान दूसरे मुद्दों के साथ नशा एक बड़े मुद्दे के रूप में सामने आया था। या यूं कहें कि सारा चुनाव ही नशे के मुद्दे पर लड़ा गया था। खुद कैप्टन अमरेन्द्र सिंह ने सत्ता में आने पर एक महीने में पंजाब में नशा खत्म करने का दावा किया था। अप्रैल, 2017 में नशे का खात्मा करने के लिए एस.टी.एफ. का गठन भी किया गया लेकिन नशा खात्मा करते-करते खुद पंजाब पुलिस के अफसरों के बीच आरोपों की लड़ाईशुरू हो गई है।

अफसरों के बीच हाई लैवल पर चल रही लड़ाई और पॉवर पॉलीटिक्स पिछले एक साल के दौरान कैप्टन सरकार की जनता के बीच बनी छवि खराब करने में भूमिका निभाने लगी है। अफसरों के बीच पहली लड़ाई एस.टी.एफ. द्वारा पिछले साल पंजाब पुलिस के इंस्पैक्टर इंद्रजीत सिंह के आवास से हैरोइन और हथियारों की बरामदगी के बाद जांच में मोगा के एस.एस.पी. राजजीत सिंह को शामिल किए जाने की बात से और दूसरी लड़ाई अमृतसर के इंद्रप्रीत सिंह आत्महत्या प्रकरण में डी.जी.पी. (एच.आर.डी.) सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय को शामिल किए जाने के बाद शुरू हुई। दोनों पुलिस अफसर इन मामलों में खुद को झूठा फंसाए जाने की बात कह हाईकोर्ट की शरण में हैं।  

क्या होगा नुक्सान
पुलिस में जारी इस लड़ाई से पुलिस का मनोबल कम हुआ है। ड्रग्स के खिलाफ मुहिम को धक्का लगा है। पिछले कुछ समय से पंजाब में ड्रग्स पर कुछ हद तक नकेल कसी गई थी लेकिन इस लड़ाई से सबसे ’यादा खुश ड्रग माफिया है जिसको अब एक बार फिर खुलकर खेलने का मौका मिल सकता है। 

डिपार्टमैंटल पॉलिटिक्स, कोर्ट की शरण
पिछले साल पंजाब पुलिस के इंस्पैक्टर इंद्रजीत सिंह से हैरोइन और हथियारों की बरामदगी हुई। एस.टी.एफ. प्रमुख हरप्रीत सिंह सिद्धू द्वारा इंद्रजीत सिंह से पूछताछ के बाद मोगा के एस.एस.पी. राजजीत सिंह को जांच में शामिल होने को कहा गया। राजजीत सिंह यह आरोप लगाते हुए हाईकोर्ट की शरण में चले गए कि उन्हें डिपार्टमैंटल पॉलीटिक्स का शिकार बनाया जा रहा है। हाईकोर्ट में याचिका दायर होने पर कोर्ट ने इस मामले की जांच के लिए डी.जी.पी. (एच.आर.डी.) सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय के नेतृत्व में एक एस.आई.टी. गठित कर दी। एस.आई.टी. में 2 और अधिकारी आई.बी. डायरैक्टर प्रबोध कुमार और आई.जी.पी. कुंवर विजय प्रताप सिंह को शामिल किया गया। कोर्ट के आदेश पर डी.जी.पी. सिद्धार्थ चट्टोपाध्याय करीब 4 महीने से एस.एस.पी. राजजीत के मामले की जांच कर रहे थे कि पिछले दिनों वह भी खुद यह आरोप लगाते हुए कि हाईकोर्ट की शरण में चले गए कि उन्हें अमृतसर के इंद्रप्रीत सिंह चड्ढा आत्महत्या प्रकरण में जांच में शामिल होने को कहा जा रहा है। इंद्रप्रीत सिंह आत्महत्या की जांच के लिए गठित एस.आई.टी. प्रमुख आई.जी. एल.के. यादव द्वारा तीखे सवाल पूछे जाने के बाद चट्टोपाध्याय ने हाईकोर्ट में दी याचिका में पंजाब पुलिस के डी.जी.पी. सुरेश अरोड़ा और डी.जी.पी. (इंटैलीजैंस) दिनकर गुप्ता पर ह्रास करने का आरोप लगाया है कि यह अधिकारी उन्हें झूठे केस में फंसाना चाहते हैं। 

कहानी का एक राजनीतिक एंगल
इस सारी कहानी का एक राजनीतिक एंगल भी है। ऐसा कहा जा रहा है कि एस.टी.एफ. प्रमुख ए.डी.जी.पी. हरप्रीत सिंह सिद्धू की एक बड़े नेता के साथ नजदीकियों से मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह खुश नहीं हैं। इसी कारण पहले उनकी रिपोर्टिंग डी.जी.पी. को दी गई और बाद में उन से बार्डर रेंज का चार्ज वापस लेकर उनका कद छोटा कर दिया गया। मामला यही नहीं थमा कद छोटा करने के साथ-साथ सिद्धू के कुछ खास अफसरों को भी उनसे अलग कर दिया गया। राजनीतिक सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री के पास कुछ ऐसी सूचनाएं पहुुंचीं कि सिद्धू के कारण उनकी छवि को धक्का लगा है। इसका बड़ा कारण मजीठिया को लेकर रिपोर्ट का लीक होना भी बताया जा रहा है। इसके बाद ही कैप्टन किचन कैबिनेट के खास सदस्य माने जाने वाले हरप्रीत सिंह सिद्धू का वजन कम होना शुरू हो गया।

डैमेज कंट्रोल शुरू 
मुख्यमंत्री कै. अमरेन्द्र सिंह ने हालांकि डैमेज कंट्रोल की प्रक्रिया शुरू कर दी है और संबंधित अफसरों चीफ पिं्रसीपल सैक्रेटरी सुरेश कुमार और गृह सचिव एन.एस. कलसी के साथ बातचीत कर रहे हैं तथा बीच का रास्ता निकालने की कोशिश की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि आने वाली पोसिं्टग ट्रांसफरों में दोनों पक्षों को संतुष्ट किया जा सकता है और ऐसे अफसरों को हटाया जा सकता है जिनके कारण यह समस्या पैदा हुई है। 

बड़े शिकार करने की फिराक में थे सिद्धू
अंदर की बात जो निकल कर आ रही है कि हरप्रीत सिंह सिद्धू ड्रग तस्करी से जुड़े बड़े शिकार की फिराक में थे। बीते कुछ महीनों में वह एक बार फिर से फार्म में आए थे। मुख्यमंत्री ने खुद अफसरों के साथ मीटिंग कर यह संदेश दिया था कि अब नशे के खिलाफ बड़ा अभियान शुरू होने वाला है। सूत्रों का कहना है कि सिद्धू को बड़े माफिया के बारे में लीड तो मिली थी लेकिन उन्हें लोकल लैवल पर पुलिस से सपोर्ट नहीं मिली थी। मुख्यमंत्री के खुद इस मामले में एक्टिव होने के बाद सिद्धू दोबारा फोरम में आ गए थे।   

कैप्टन के अपने ही हुए अपनों के दुश्मन
 इस कहानी का रोचक तथ्य यह भी है कि जिन अफसरों को कैप्टन के नजदीकी माना जा रहा है वही अफसर एक-दूसरे के खिलाफ खुलकर लड़ाई लड़ रहे हैं। इस मामले में भी डी.जी.पी. रैंक के अधिकारियों के बीच चल रही लड़ाई में भी यही बात सामने आई। ये तीनों अफसर कैप्टन की गुड बुक्स से माने जाते थे। यहां तक हरप्रीत सिंह सिद्धू का सवाल है सरकार बनते ही कैप्टन खुद उन्हें डैपुटेशन से वापस लाए थे। इसी तरह से डी.जी.पी. सुरेश अरोड़ा भी कैप्टन की गुड बुक्स में है। इसी कारण उन्हें सरकार बनने पर विधायकों के विरोध के बावजूद हटाया नहीं गया था। जहां तक दिनकर गुप्ता का सवाल है वह भी कैप्टन के खास माने जाते हैं। सूत्रों का कहना है कि इस लड़ाई की मेन वजह कुछ ऐसे अफसर हैं जो अपने हित के लिए बड़े अफसरों का इस्तेमाल कर रहे हैं। 

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