राहुल गांधी की युवा सोच ने भी डुबोई कांग्रेस की लुटिया

punjabkesari.in Sunday, Jun 23, 2019 - 11:19 AM (IST)

जालंधर(चोपड़ा): लोकसभा चुनावी नतीजों की नैतिक जिम्मेदारी लेकर राहुल गांधी ने इस्तीफा दे दिया है, जिसके बाद पार्टी में मचे बवाल में हार के कारणों की समीक्षा होने लगी है। इस कड़ी में एक बात यह भी सामने आई है कि राहुल गांधी की युवा सोच ने ही पार्टी की लुटिया डुबोई है। गांधी परिवार के वंशज राहुल ने सक्रिय राजनीति में आने के बाद यूथ कांग्रेस में संगठनात्मक चुनाव करवाने का निर्णय लिया। राहुल का मानना था कि देश का नौजवान कांग्रेस के फ्रंट्रियल संगठनों में चुनाव लड़ कर ही पद हासिल करे और एक सशक्त नेता के तौर पर उभर कर पार्टी में कार्यभार संभाले। 

पंजाब से शुरू की गई यूथ कांग्रेस के पायलट प्रोजैक्ट की शुरूआत
पार्टी ने भी उनकी सोच को अमलीजामा पहनाते हुए वर्ष 2008 में पायलट प्रोजैक्ट के तौर पर पंजाब से शुरूआत करते हुए देश में यूथ कांग्रेस के पहले चुनाव करवाए गए। उस समय मौजूदा कैबिनेट मंत्री विजयइंद्र सिंगला पंजाब यूथ कांग्रेस के प्रधान थे,वहीं मौजूदा सांसद रवनीत सिंह बिट्टू देश के पहले निर्वाचित प्रदेश अध्यक्ष बने।  2009 में हुए लोकसभा चुनावों में राहुल गांधी ने सिंगला व बिट्टू दोनों को कांग्रेस की टिकट से नवाजा और दोनों नेता जीत हासिल कर सांसद बन गए, जिसके बाद लगता था कि चुनाव प्रक्रिया युवाओं को आगे बढ़ने का मौका देगी। परंतु चंद वर्षों में ही चुनावों के दुष्परिणाम सामने आने शुरू हो गए। 

यूथ कांग्रेस के चुनाव में दिखने लगा धनबल का बोलबाला
यूथ कांग्रेस चुनावों में धनबल, गुटबाजी व अनुशासनहीनता की दीमक ने पार्टी को हरेक स्तर पर खोखला करके रख दिया। संगठन के इन चुनावों में धनबल का बोलबाला दिखने लगा है। पैसे वाले नेता अपने चहेतों को चुनाव जिताने लगे। जीतने वाला भी इस अहम के साथ रहता कि उसे जीतने के बाद अब भला कौन हटाएगा? प्रदेश स्तर पर चुनावों की सारी बागडोर स्थानीय मंत्रियों, विधायकों अथवा बड़े नेताओं के हाथों में आ गई। हरेक नेता अपने पुत्र, रिश्तेदार, समर्थक व विश्वासपात्र युवा को ही उच्च पद पर बैठाने में जुटा गया, जिस कारण केवल यूथ कांग्रेस ही नहीं अपितु समूची पार्टी में गुटबाजी व अनुशासनहीनता चरम सीमा पर पहुंच गई। 

यूथ कांग्रेस के चुनावों में सामने आई गुटबाजी
राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद देश भर में 2 से 3 बार चुनाव सम्पन्न हो चुके हैं और ऐसा एक भी जिला व प्रदेश अछूता नहीं रहा जहां यूथ कांग्रेस के चुनावों के कारण गुटबाजी खुल कर सामने न आई हो। हालात ऐसे हुए कि धीरे-धीरे नौजवानों का संगठन के चुनावों से मोहभंग हो गया। यहां तक कि यूथ कांग्रेस के कार्यक्रमों और धरने-प्रदर्शनों में भी युवाओं की भीड़ घट गई। हालांकि, इसके कुछ अपवाद हैं जो राहुल के प्रयोग को सफल साबित करते दिखे, लेकिन इसका प्रतिशत थोड़ा बहुत नहीं खासा कम है। अब पार्टी की दुर्दशा के बाद एक बड़ा सवाल उठा है कि क्या राहुल गांधी की युवा सोच का ही पार्टी की लुटिया को डुबोने में बड़ा हाथ रहा है। 

बंद होगी यूथ कांग्रेस की चुनाव प्रक्रिया
कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं से लेकर साधारण वर्कर से बात की जाए तो सबसे बड़ी बात सामने आती है कि यूथ कांग्रेस में चुनाव कराने से कांग्रेस को युवा वर्ग में खासा नुक्सान हुआ है। आलाकमान को देश भर में मिल रहे फीडबैक के बाद पार्टी में मंथन चल रहा है। अब लंबे अरसे के बाद  मोतीलाल वोरा सहित अनेक  वरिष्ठ नेता यूथ कांग्रेस और एन.एस.यू.आई. के चुनाव नहीं करवाना चाहते हैं । पार्टी नेता देशभर से मिल रहे फीडबैक के बाद मामले को सोनिया गांधी व राहुल गांधी के समक्ष उठाएंगे कि अगर कांग्रेस को पुन: पैरों पर खड़ा करना है तो सबसे पहले यूथ कांग्रेस में चुनाव प्रक्रिया को बंद करना होगा। 

पंजाब में यूथ कांग्रेस के चुनावों पर संशय की स्थिति बनी

पार्टी की मौजूदा स्थिति को लेकर कांग्रेस में बवाल मचा हुआ है। इसी कड़ी में यूथ कांग्रेस में अब चुनाव प्रक्रिया जारी रहेगी या बंद होगी, इसको लेकर भी नौजवानों में  संशय की स्थिति बनी हुई है। ऑल इंडिया यूथ कांग्रेस का कोई भी वरिष्ठ पदाधिकारी संशय की इस स्थिति को स्पष्ट करने में असमर्थ है, जिस कारण टीम राहुल कहे जाने वाले यूथ कांग्रेस के पदाधिकारियों व नेताओं का अपना भविष्य अंधकारमय  दिख रहा है। जिक्रयोग्य है कि लोकसभा चुनावों से पूर्व पंजाब में यूथ कांग्रेस के आंतरिक चुनाव प्रक्रिया के अंतर्गत मैंबरशिप ड्राईव चलाई गई थी। पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया में कई बदलावों के साथ  चुनाव मैदान में उतरने के इच्छुक युवा कांग्रेस वर्करों के लिए ऑफलाइन अथवा ऑनलाइन मैंबरशिप फॉर्म भरना अनिवार्य किया गया था।  इस बार के चुनावों में लोकसभा हलका प्रधान के स्थान पर शहरी और देहाती क्षेत्रों के लिए दो अलग-अलग प्रधानों का चुनाव करवाने का फैसला लिया था। करीब 2 महीनों चली मैंबरशिप ड्राईव में वोट डालने का अधिकार हासिल करने को अपने साथ 4 युवाओं के फार्म भरने वाला युवा ही एक्टिव वोटर बना सकता था, जिसे खुद चुनाव लडऩे या जिला से लेकर प्रदेश स्तर के पदाधिकारियों के चुनाव में मतदान डालने का अधिकार मिलता। अब राष्ट्रीय प्रधान को लेकर पार्टी में छाए घनघोर बादलों के छंटने के बाद ही  इस दिशा में कोई फैसला होगा। 

ऑफलाइन-ऑनलाइन मैंबरशिप से पार्टी ने बटोरे करोड़ों रुपए 

यूथ कांग्रेस की मैंबरशिप ड्राईव के दौरान पार्टी ने चुनाव प्रक्रिया को हाईटैक करते हुए ऑफ लाइन मैंबरशिप प्राप्त करने के लिए 125 रुपए फीस निर्धारित की थी जबकि ऑनलाइन मैंबरशिप के लिए फीस को 75 रुपए रखा था। 5 दिसम्बर 2018 को सदस्यता अभियान की समाप्ति के बाद आलाकमान ने ऑनलाइन मैंबरशिप जारी रखते हुए इसकी फीस बढ़ाकर 140 रुपए कर दी थी। यूथ कांग्रेस में 2,70,000 के करीब नौजवान एक्टिव मैंबर बने। फार्मों की स्क्रूटनिंग के दौरान त्रुटि पाए जाने पर करीब 20000 फार्म रद्द किए गए। अब अगर 2, 70,000 मैंबरों की मैंबरशिप फीस निर्धारित राशि के हिसाब से कुल रकम करोड़ों में बनती है। परंतु पार्टी में पद पाने की लालसा में ज्यादातर यूथ नेताओं ने धड़ाधड़ फार्म भरे और अनेक युवाओं ने समर्थकों द्वारा भरे फार्मों की बनती सारी फीस खुद की जेब से जमा करवाई ताकि उक्त नेता द्वारा बनाए एक्टिव मैंबर उसके इशारे पर अपनी वोट का इस्तेमाल करें। अब अगर चुनाव प्रक्रिया खत्म होती है तो उन्हें अपनी इंवैस्टमैंट अधर में फंसती दिख रही है। 

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