अब मिनटों में पता चलेगा Signature असली हैं या नकली

punjabkesari.in Thursday, Dec 05, 2024 - 12:03 PM (IST)

पंजाब डेस्क: पंजाब यूनिवर्सिटी (पीयू) के केम एंथ्रोपोलॉजी एंड फॉरेंसिक साइंस विभाग के शोधकर्ताओं ने असली और जाली हस्ताक्षरों की पहचान करने के लिए एक सॉफ्टवेयर यानी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित मॉडल विकसित किया है। जिसे भारत सरकार के कॉपीराइट दफ्तर ने ए.आई. मॉडल को कॉपीराइट पंजीकरण प्रदान किया। इस मॉडल का उपयोग महत्वपूर्ण दस्तावेजों पर हस्ताक्षर जालसाजी जैसी धोखाधड़ी की पहचान करने के लिए किया जा सकता है। इस सॉफ्टवेयर के जरिए कम हस्ताक्षरों की गिनती के बावजूद यह पहचान कर सकता है कि किसी भी दस्तावेज पर कौन से हस्ताक्षर असली हैं और कौन से नकली हैं। यह सॉफ्टवेयर कुछ ही मिनटों में अपने नतीजे दे देता है।       

जिन दस्तावेजों पर पांच से छह हस्ताक्षर होंगे उनकी पहचान हो पाएगी कि स्ताक्षर असली हैं या नकली जबकि इससे पहले हस्ताक्षर असली है या नकली यह पहचान करने के लिए ड़ी संख्या में हस्ताक्षर की जरूरत होती थी। हस्ताक्षरों की यह संख्या 500 से लेकर एक हजार तक हो सकती है, जिससे इन फर्जी हस्ताक्षरों की पहचान की जा सकती है। 

प्रोफेसर केवल कृष्ण ने बताया कि सॉफ्टवेयर बनाने का काम पिछले साल जून 2023 में शुरू किया गया था। यह सॉफ्टवेयर जून यानी एक साल 2024 में बनकर तैयार हो गया था। बाकी समय इसका कॉपीराइट हासिल करने में लग गया।

90 फीसदी सटीकता हासिल की

ए.आई. मॉडल प्रोफेसर केवल कृष्ण और उनकी शोध टीम राकेश मीना, दामिनी सिवन, पिहुल कृष्णा, अंकिता गुलेरिया, नंदिनी चितारा, रितिका वर्मा, आकांशा राणा, आयुषी श्रीवास्तव द्वारा विकसित किया गया था। इस मॉडल को बनाने में प्रोफेसर अभिक घोष और डॉ. विशाल शर्मा ने भी विद्वानों का मार्गदर्शन किया। पीहुल कृष्णन यू.आई.ई.टी. के पूर्व छात्र और अब स्कूल ऑफ कंप्यूटिंग एंड इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग, भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मंडी, हिमाचल प्रदेश में पीएचडी शोध विद्वान है। ए.आई. मॉडल विकसित करने वाले प्रोफेसर केवल कृष्ण ने बताया कि राकेश मीना ने अपनी पी.एच.डी. शोध के लिए हस्ताक्षर सत्यापन पर काम कर रहे हैं, जो अपनी पीएच.डी. खोज के लिए इस मॉडल का प्रयोग करेंगे। ए.आई. मॉडल एसवीएम (सपोर्ट वेक्टर मशीन), जो एक पर्यवेक्षित मशीन लर्निंग एल्गोरिदम है जो व्यावहारिक स्थितियों में वास्तविक और नकली हस्ताक्षरों को अलग करता है। मॉडल ने 1400 हस्तलिखित हस्ताक्षरों (700 वास्तविक और 700 जाली) पर वास्तविक और जाली हस्ताक्षरों को वर्गीकृत करने में 90 प्रतिशत सटीकता हासिल की।

फोरेंसिक वैज्ञानिकों और दस्तावेज परीक्षकों का बहुमूल्य समय बचेगा

इस सॉफ़्टवेयर का उपयोग फोरेंसिक परीक्षाओं और आपराधिक जांचों में किया जा सकता है जहां हस्ताक्षर की जालसाजी शामिल है। फॉर्म, चेक, ड्राफ्ट, ट्रेजरी दस्तावेज, संपत्ति पंजीकरण और अन्य बैंक दस्तावेज आदि पर हस्ताक्षर की पहचान करने के लिए मॉडल की सीधी उपयोगिता है। इससे निश्चित रूप से फोरेंसिक वैज्ञानिकों और दस्तावेज परीक्षकों का बहुमूल्य समय बचेगा और पहचान के लिए उनका कार्यभार कम होगा। कुलपति प्रोफेसर रेनू विग ने ऐसा व्यवहार्य मॉडल विकसित करने के लिए टीम को बधाई दी है और पी.यू.ए.आई. के अन्य शोधकर्ता और संकाय सदस्य के ज्ञान का उपयोग करने और नए विचार उत्पन्न करने के लिए प्रोत्साहित किया है।

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News Editor

Kalash

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