सज्जन कुमार को सजा भाजपा को पंजाब में दे सकती है ऑक्सीजन

punjabkesari.in Monday, Dec 17, 2018 - 09:57 PM (IST)

जालंधर(रविंदर): पंजाब की सियासत आने वाले दिनों में कई तरह की दिशा तय करने वाली है। एक तरफ अकाली दल व आम आदमी पार्टी में टूटन लगातार जारी है तो वहीं भाजपा खामोशी से पंजाब में अपने राजनीति पांव जमाने के प्रयास कर रही है। केंद्र में सत्ताधारी भाजपा आने वाले दिनों में पंजाब की सियासत को गंभीरता से लेने जा रही है और 1984 दंगों के आरोपियों को कड़ी सजा दिलाकर भाजपा पंजाब में अपने पांव जमाना चाहती है। 

2007 से लेकर 2017 तक पंजाब की सियासत में भाजपा ने सत्ता सुख जरूर भोगा, मगर अकाली दल का छोटा भाई बनकर। ऐसे में भाजपा के कई दबंग नेता सरकार में रहते हुए अच्छे फैसले लेना चाहते थे, मगर सुखबीर बादल के आगे उनकी एक न चल सकी। भाजपा मंत्रियों व नेताओं की चुप्पी के कारण लगातार पंजाब में भाजपा का ग्राफ गिरता चला गया और अकाली दल के खिलाफ लोगों की नाराजगी का गुस्सा भाजपा को भी चुकाना पड़ा। भाजपा पंजाब विधानसभा में मात्र 3 सीटों पर सिमट कर रह गई। यानी माझा, दोआबा और मालवा में भाजपा के पांव जमीन से उखड़ गए और तीनों रिजन में एक-एक सीट ही भाजपा के खाते में आई, वह भी तब जब देशभर में मोदी लहर चल रही थी। 

बरगाड़ी कांड के बाद से जिस तरह से अकाली दल की सियासत लगातार कमजोर हो रही है तो भाजपा ने पंजाब में अपने राजनीतिक भविष्य की जमीन मजबूती से तैयार करनी शुरू कर दी है। बरगाड़ी कांड और विधानसभा चुनाव में बुरी हार के बाद अकाली दल व भाजपा के बीच सब कुछ अच्छा नहीं चल रहा है। भाजपा ने अकाली दल की हर गतिविधि से खुद को काफी हद तक अलग कर लिया है। अकालियों के किसी भी धरने में भाजपा का कोई भी नेता न तो अपनी मौजूदगी दिखा रहा है और न ही किसी तरह से अकाली दल को भाजपा का कहीं साथ मिल रहा है। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि अगर केंद्र में मोदी सरकार की दोबारा वापसी होती है तो पंजाब के बारे में भाजपा गंभीर फैसला ले सकती है और यह फैसला अकाली दल से अलग होने का भी हो सकता है।

इसकी जमीन अभी से तैयार की जा रही है। पहले बरगाड़ी कांड से खुद को अलग कर भाजपा न केवल पंजाब में अपने सिख वोट बैंक को बचा रही है, बल्कि दूसरी तरफ 1984 दंगों के मामलों में आरोपियों के खिलाफ सख्ती से पैरवी करने के मामले में भी भाजपा सिख वोट बैंक का दिल जीतने में सफल साबित हो रही है। यह भाजपा के तीखे तेवरों का ही असर रहा कि 34 साल बाद कांग्रेस के बड़े नेता सज्जन कुमार को 1984 दंगों के लिए दोषी ठहराया गया और उम्रकैद की सजा का ऐलान किया गया। भाजपा इस मुद्दे को पंजाब में खासा भुना सकती है और पंजाब समेत देश भर के सिख वोट बैंक को अपने खाते में कर सकती है। 

भाजपा लोकसभा चुनाव से पहले इस बात का प्रचार जोर-शोर से करने जा रही है कि कांग्रेस के नेताओं ने ही 1984 सिख दंगों को अंजाम दिया था और दूसरी तरफ यह भी प्रचार किया जा रहा है कि 34 साल तक आरोपियों को कांग्रेस ही केंद्र में बचाती रही। इन तीखे तेवरों के साथ न केवल देशभर का सिख वोट बैंक अपनी तरफ करने की भाजपा की कोशिश रहेगी, बल्कि आने वाले 2022 विधानसभा चुनाव से पहले पंजाब में राजनीतिक पांव मजबूती से जमाने के प्रयास भी होंगे। 

कांग्रेस की नाकामियों के बल पर एक तरफ भाजपा पंजाब में ङ्क्षहदू वोट बैंक को अपनी तरफ करने का प्रयास करेगी तो दूसरी तरफ श्री करतारपुर कॉरीडोर की मंजूरी से लेकर बरगाड़ी कांड में अकाली दल का साथ न देने को लेकर भी भाजपा प्रदेश के सिखों का दिल जीतने का भरपूर प्रयास करेगी, मगर प्रदेश में भाजपा की सियासत आने वाले 2019 लोकसभा के नतीजों पर टिकी रह सकती है। 

Vaneet