गढ़ बचाने में लगे सुखबीर बादल को कांग्रेस के शेर सिंह घुबाया से मिल रही चुनौती

punjabkesari.in Tuesday, May 14, 2019 - 04:09 PM (IST)

फिरोजपुरः पंजाब की सीमावर्ती फिरोजपुर लोकसभा सीट पर अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर बादल को अकाली दल छोड़कर कांग्रेस में गए निवर्तमान सांसद शेर सिंह घुबाया से कड़ी टक्कर मिल रही है। बादल फिरोजपुर सीट की जलालाबाद विधानसभा क्षेत्र से विधायक हैं तथा यह सीट 1998 से लगातार 2014 तक अकाली दल के पास रही है । घुबाया तथा बादल की अनबन के चलते 2017 के विधानसभा चुनाव में उन्होंने अपने बेटे को कांग्रेस में शामिल करा दिया था जो अब कांग्रेस के विधायक हैं । चुनाव से पहले ही घुबाया अकाली दल छोड़ कांग्रेस में शामिल हो गए । वह इस सीट से 2 बार सांसद रहे हैं तथा राय सिख बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं ।



भारत-पाक सीमा से लगी इस ग्रामीण बहुल सीट विकास की दौड़ में काफी पिछड़ी है तथा लोगों में जात पात का ज्यादा असर है जबकि शहरी लोग पर इसका असर कम है ।  बादल के समक्ष अपने गढ़ को बचाने की चुनौती है ,वहीं घुबाया को चुनाव में उतारकर कांग्रेस इस सीट को अकाली दल से छीनना चाहती है । गुरू हरसहाय विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के खेल मंत्री राणा गुरमीत सोढी सहित कुछ अन्य कांग्रेसी घुबाया को टिकट दिए जाने से नाराज थे और उनका कहना था कि उनके कार्यकर्ता घुबाया से नाखुश हैं क्योंकि अकाली दल में रहते उन्हें बहुत कुछ सहन करना पड़ा जिसे वे अब तक नहीं भूले हैं । मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह के हस्तक्षेप के बाद वे घुबाया को समर्थन देने पर राजी हो गए ,तब से कांग्रेस की स्थिति मजबूत होती जा रही है । वैसे भी इस क्षेत्र की 9 विधानसभा सीटों में से एक पर सुखबीर बादल तथा एक भाजपा के पास है । इससे स्पष्ट है कि कांग्रेस के सात विधायक भी कांग्रेस की जीत सुनिश्चित करने में जुटे हैं । कांग्रेस आलाकमान का हर विधायक तथा मंत्री को फरमान जारी होने के बाद सभी कांग्रेसी एकजुट होकर  घुबाया को जिताने के लिए काम कर रहे हैं । आलाकमान का आदेश था कि कांग्रेस प्रत्याशी की हार का ठीकरा उस इलाके के मंत्री तथा विधायकों पर फूटेगा ।

अकाली दल के प्रधान सुखबीर बादल ने फिरोजपुर का गढ़ बचाने के लिए मजबूत उम्मीदवार के अभाव में खुद ही चुनाव मैदान में उतरना उचित समझा । अकाली कार्यकर्ताओं के समक्ष इस सीट को निकालना चुनौती से कम नहीं क्योंकि उनके पास अपने तथा भाजपा के केवल दो ही विधायक हैं । श्री बादल पाटर्ी की मुखिया तथा स्टार प्रचारक होने के नाते बड़ी जिम्मेदारी है । वो भाजपा -अकाली सीटों पर भी प्रचार कर रहे हैं। उनके लिये पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल प्रचार में जुटे हैं । हालांकि श्री बादल की उम्र ज्यादा काम करने की इजाजत नहीं देती फिर भी वो बठिंडा (हरसिरत कौर बादल) तथा अन्य सीटों पर प्रचार कर रहे हैं । अकाली दल की खासियत रही है कि वो साल भर लोगों से संपकर् बनाने का काम करता है जिससे उसे प्रचार के समय ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती । वैसे भी पिछले कई चुनावों से यह अकाली दल की सीट रही है जिससे जीत का भरोसा बना हुआ है। बादल का कहना है कि हमारी सरकार का प्रदर्शन और अमरिंदर सरकार का कामकाज देख लीजिये । कांग्रेस सरकार ने तो किया ही कुछ नहीं ,जबकि वादे तो बड़े -बड़े किए । वह सबसे असफल मुख्यमंत्री हैं जो पंजाब ने पहले कभी नहीं देखा ।

कैप्टन सिंह खालिस्तानियों को बढ़ावा दे रहे हैं ,हमारा विरोध करने वाले बरगाडी मोर्चा की अगुवाई करने वाले खालिस्तानी ही हैं । मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के अनुसार फिरोजपुर में सुखबीर बादल तथा बठिंडा में उनकी पत्नी हरसिमरत बादल की हालत खराब है क्योंकि कांग्रेस से उन्हें कड़ी टक्कर मिल रही है । अकालियों ने लोगों का सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश की तथा कोटकपूरा और बरगाडी फायरिंग सहित धार्मिक ग्रंथों की बेअदबी की घटनाओं लोग भूले नहीं हैं । लोग इन दोनों लोकसभा सीटों पर अकालियों का सफाया कर देंगे । इस सीट पर आम आदमी पार्टी ने हरजिंदर सिंह काका तथा भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के हंसराज गोल्डी चुनाव मैदान में हैं लेकिन मुख्य मुकाबला कांग्रेस तथा अकाली दल के बीच है । अकाली दल को बरगाड़ी तथा बहबलकलां बेअदबी मामले तथा फायरिंग घटना को लेकर सिख मतदाताओं के आक्रोश का सामना करना पड़ रहा है । डेरा सच्चा सौदा के अनुयायियों का भी प्रभाव है तथा ग्रामीण इलाकों में राय सिखों की संख्या है । इनकी संख्या सीमा से लगे इलाकों में अधिक है और घुबाया इसी बिरादरी के हैं । इस क्षेत्र में कुल मतदाता 14 लाख 77 हजार 262 हैं । इनमें से चालीस फीसदी दलित तथा बीस फीसदी पिछड़ा वर्ग के हैं । अकाली दल के कार्यकर्ता बादल के प्रचार की कमान संभाले हैं तथा सभी नौ हलकों में रात दिन काम कर रहे हैं । अपने प्रधान को जिताने की बड़ी जिम्मेदारी लेकर वे फख्र महसूस करते हैं । भाजपा कार्यकर्ता भी अपने सहयोगी अकाली दल के लिए काम कर रहे हैं ताकि नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री बनाने के लिये अधिक सीटें उनकी झोली में डाल सकें । मतदान 19 मई को होना है ।
 

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