क्यों नहीं खालसे का जन्मदिवस श्री आनंदपुर साहिब में राष्ट्रीय स्तर पर मनाया जाता ?

punjabkesari.in Friday, Apr 13, 2018 - 11:39 AM (IST)

रूपनगर(विजय): सिख इतिहास में 13 अप्रैल, 1666 ईस्वी का दिन (बैसाखी पर्व) विशेष स्थान रखता है। इस दिन दशम पातशाह गुरु गोबिंद सिंह जी ने श्री आनंदपुर साहिब में खालसा पंथ की स्थापना की थी। इन्हीं कारणों के चलते यहां बैसाखी मेला बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। वहीं दूसरी ओर सिख पंथ की तरफ से बैसाखी का मुख्य आयोजन गुरु की काशी तलवंडी साबो (बठिंडा) में किया जाता है।

गौरतलब है कि 1704 ईस्वी में किला आनंदपुर साहिब छोडऩे के बाद श्री आनंदपुर साहिब पर मुगलों का कब्जा हो गया। गुरु जी समूचे परिवार की शहादत के उपरांत श्री मुक्तसर साहिब की अंतिम लड़ाई लडऩे के बाद तलवंडी साबो (बठिंडा) पहुंचे जहां उन्होंने करीब 18 महीने का समय व्यतीत किया। 13 अप्रैल, 1706 ई. को इसी धरती पर गुरु साहिबान की मौजूदगी में बैसाखी का आयोजन खालसाई रिवायतों के अनुसार मनाया गया और इस समय भारी संख्या में संगत ने अमृतपान किया। इसके उपरांत खालसा सृजन दिवस श्री दमदमा साहिब में मनाए जाने की परम्परा का आगाज हुआ और यह परम्परा आज तक जारी है। दूसरी ओर मुगलों द्वारा गुरु जी के प्रस्थान के उपरांत श्री आनंदपुर साहिब को वीरान कर दिया गया। सिख साम्राज्य स्थापित होने के बाद तथा बाबा बंदा सिंह बहादुर की बाईधार क्षेत्र में आमद के बावजूद हालात सामान्य न हो सके, जिसके कारण खालसा पंथ अपना जन्मदिवस इस धरती पर नहीं मना सका। हालांकि 13 अप्रैल, 1999 को खालसा पंथ के स्थापना दिवस की 300 वर्षीय शताब्दी को इस धरती पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मनाया गया।

श्री आनंदपुर साहिब में बैसाखी का त्यौहार 3 दिन मनाए जाने की परम्परा 1972 में उस समय शुरू हुई जब 1872 में ज्ञानी दित्त सिंह द्वारा स्थापित सिंह सभा लहर की 100 वर्षीय शताब्दी पर 1972 में सिंह सभा शताब्दी कमेटी के तत्कालीन प्रमुख व लोकसभा के स्पीकर हुकम सिंह ने शताब्दी समारोह आयोजित करके उक्त स्थान पर बैसाखी मनाने की परम्परा स्थापित की। वर्णनीय है कि श्री आनंदपुर साहिब को सोढी वंश से संबंधित गुलाब राय तथा सोढी शाम सिंह ने भले आबाद कर दिया था परंतु उस समय भी संगत का रुझान इस धरती पर बड़े स्तर पर बैसाखी आयोजन संबंधी प्रेरित न हो सका। 
-प्रिंसीपल सुरेन्द्र सिंह, मैंबर एस.जी.पी.सी. श्री आनंदपुर साहिब

गुरु जी के जीवनकाल के दौरान अंतिम बैसाखी का आयोजन होने के साथ-साथ श्री दमदमा साहिब की पवित्र धरती के साथ यह भी तथ्य अहम रूप से जुड़ा है कि गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का पावन स्वरूप उक्त स्थान पर भाई मनी सिंह जी तथा बाबा दीप सिंह जी से स्वयं लिखवाया। यहीं पर गुरु जी ने श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी का टीका किया तथा 48 सिखों ने अर्थ सुने। माता साहिब कौर तथा माता सुंदर कौर के मिलाप के अलावा अन्य कई पहलू ऐतिहासिक तौर पर श्री दमदमा साहिब से जुड़े हुए हैं। 
-ज्ञानी हरपाल सिंह, हैड ग्रंथी गुरुद्वारा श्री फतेहगढ़ साहिब

 

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