नोटबंदी का दुष्प्रभाव : छोटे नोटों की देश में हुई कमी

punjabkesari.in Friday, Aug 31, 2018 - 06:03 PM (IST)

जालन्धर(धवन): भारतीय रिजर्व बैंक ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चाहे यह दावा किया था कि नोटबंदी के बाद 99.3 प्रतिशत पुराने नोट बैंकिंग प्रणाली में शामिल हो गए थे परन्तु नोटबंदी का एक दुष्प्रभाव यह भी रहा कि देश में छोटे नोटों की कमी हो गई। इसलिए नोटबंदी का एक दुष्प्रभाव यह भी रहा कि 100 रुपए जैसे छोटे नोटों की कमी महसूस की जा रही है। 2017-18 में 100 रुपए के नोटों की सप्लाई में 60 प्रतिशत की कमी देखी गई है।

आंकड़ों से पता चलता है कि मार्च 2018 के अंत में 500 रुपए के नोटों की गिनती देश में कुल करंसी की एक तिहाई थी जोकि मार्च 2015 से 2016 के बराबर थी परन्तु वॉल्यूम के आधार से काफी परिवर्तन देखने को मिले हैं। 500 रुपए से अधिक मूल्य की करंसी का हिस्सा मार्च 2018 में मार्च 2016 की तुलना में अधिक देखा गया है। इसका मुख्य कारण 1000 के नोटों के स्थान पर 2000 के नोटों को सर्कुलेशन में लाना था। देश में करंसी का मूल्य तथा वॉल्यूम दोनों ही नोटबंदी से पहले की स्थिति की तुलना में काफी बढ़ गया है। 

अगर नोटबंदी से पहले लोग 500 रुपए से अधिक की नकद क्रय-विक्रय करते थे तो उन्हें अपने पास कम मात्रा में करंसी रखनी पड़ती थी। नोटबंदी के बाद बड़े नोट आने के कारण लोगों को अब अधिक मूल्य की करंसी रखनी पड़ रही है। अब लोगों को 1000 रुपए के नोट की तुलना में 2000 रुपए का नोट रखना पड़ रहा है। इसलिए रोजाना के क्रय-विक्रय के लिए देश के कई भागों में 100 रुपए के नोटों की कमी अवश्य फल रही है। 2017 तथा 2018 में अनेकों ऐसी रिपोर्टें आई जिसमें बताया गया कि रिजर्व बैंक छोटी करंसी के नोटों की पिं्रटिंग को बढ़ा रहा है।

नोटबंदी के बाद अब यह बात भी जग-जाहिर हो गई है कि अर्थव्यवस्था कैशलैस की तरफ अधिक नहीं बढ़ी है। लोग अब भी करंसी नोटों का ही प्रयोग कर रहे हैं। केवल समाज का कुछ हिस्सा ही क्रैडिट कार्ड या अन्य कार्डों का इस्तेमाल कर रहा है। नोटबंदी को लेकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी कल केंद्र की मोदी सरकार पर जोरदार हमला बोलते हुए कहा कि इससे व्यापार व इंडस्ट्री गिरावट की तरफ चली गई है। नोटबंदी एक प्रकार से पूरी तरह से विफल रही। 
 

Des raj