एक माह बाद भी सिद्धू के विभाग न ज्वाइन करने से दुविधा में कैप्टन सरकार

punjabkesari.in Wednesday, Jul 03, 2019 - 09:25 AM (IST)

पठानकोट (शारदा): पंजाब में कांग्रेस की राजनीति लोकसभा में 8 सीटें जीतने के बाद भी मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह व कैबिनेट मिनिस्टर नवजोत सिंह सिद्धू प्रकर्ण के चलते शथिलता की ओर बढ़ रही है जो सरकार एवं पार्टी दोनों के लिए शुभ संकेत नहीं है। निश्चित रूप से पंजाब की जनता का ऐसी स्थिति में चिंतित होना स्वाभाविक है और इसका प्रभाव हर हालत में दिनचर्या पर पड़ता है। प्रशासन असमंजस की स्थिति में चला जाता है और निर्णय लेने की क्षमता कम हो जाती है। एक माह पहले इन 2 दिग्गजों के बीच चल रही इस आर-पार की लड़ाई का पटाक्षेप इतना लम्बा हो जाएगा कि शायद इसका अंदाजा किसी ने नहीं लगाया था। एक माह के बाद स्थिति यह है कि मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह इस मुद्दे पर सरकार के दृष्टीकोण से निर्णय लेने में दौचित्ती में फंसे हुए नजर आ रहे हैं और सरकार की इस कमजोरी की धीरे-धीरे जग हंसाई होनी शुरू हो गई है।

सरकार और पार्टी के लिए गले की फांस बना सिद्धू प्रकरण
सर्वविदित तथ्य है कि जब मुख्यमंत्री ने सभी मंत्रियों को जिनके विभाग बदले गए थे, को दो-तीन दिन के अंदर ही अपने नए विभागों को ज्वाइन करने के निर्देश दिए थे, परंतु 2 को छोड़कर सभी ने उनके निर्देशों का पालन किया और अपने-अपने विभागों को संभाल लिया, चाहे मंत्री नए विभाग मिलने से खुश थे या नाराज। परिस्थितियां बद से बदतर होती गईं, मुख्यमंत्री ऐसी दुविधा में फंस गए हैं कि वह निर्णयहीनता की स्थिति का तोड़ नहीं ढूंढ पा रहे। मुख्यमंत्री अभी तक सिद्धू के महकमे का चार्ज किसी और को न देने के चलते विभाग में अनिश्चितता की स्थिति को बल दे रहे हैं, कहीं अच्छा होता कि वह किसी अन्य मंत्री को अतिरिक्त रूप से ऊर्जा विभाग दे देते और जब सिद्धू के साथ बात खत्म होती तो उन्हें पुन: यह विभाग दे दिया जाता। अब वह इस मुद्दे पर अहमद पटेल से भी मिल चुके हैं और मुख्यमंत्रियों की मीटिंग में राहुल गांधी से भी, हो सकता है कि वह इस विषय पर राहुल गांधी के साथ वार्तालाप न करना चाहते हों परंतु एक मंत्री जो उनके मंत्रिमंडल का सदस्य है उनका कहना नहीं मान रहा, उस स्थिति को न निपट पाना सरकार और पार्टी के लिए गंले की फांस बनने वाला है।

सुनील जाखड़ का इस्तीफा देना प्रदेश की राजनीति के लिए बड़ा धक्का
सुनील जाखड़ एक सुलझे हुए दूर दृष्टि वाले नेता हैं, उनका हार के बाद बिना मुख्यमंत्री से परामर्श किए इस्तीफा देना प्रदेश की राजनीति के लिए एक बड़े धक्के के समान है। मुख्यमंत्री ने उनके इस्तीफे को अनावश्यक माना परंतु तब तक इस्तीफा राहुल गांधी जी के पास पहुंच चुका था। अब राहुल गांधी खुद इस्तीफा दे चुके हैं और वहां भी कांग्रेस की राजनीति दिशाहीन होती हुई एक चौराहे पर खड़ी है कि आगे किस और जाना है, किसी को नहीं पता। ऐसी परिस्थितियों में पंजाब प्रधान के पद का इस्तीफा ज्यों का त्यों ही पड़ा हुआ है। अगर जाखड़ साहिब ने इस्तीफा न दिया होता तो वह इतने संवेदनशील हैं कि उन्होंने इस मुद्दे को आर या पार कर दिया होना था। उनकी कार्यशैली ऐसी है कि वह पार्टी का नुक्सान होते हुए नहीं देख सकते। अब वह चाहकर भी कैप्टन अमरेन्द्र सिंह और सिद्धू के डैडलॉक को तोडऩे की स्थिति में नहीं। प्रताप सिंह बाजवा जो पंजाब के  वरिष्ठ नेता हैं वह पहले ही कह चुके हैं कि राहुल गांधी के हाथ मजबूत करने के लिए सभी प्रदेशों से वरिष्ठ कांग्रेसी तथा सी.डब्ल्यू.सी. के सदस्य भी इस्तीफा सौंप दें। पंजाब की प्रभारी आशा कुमारी पहले ही कैप्टन अमरेेन्द्र सिंह के हक में चट्टान की भांति खड़े हैं परंतु वह भी हाईकमान से यह निर्णय नहीं करा पाए कि सिद्धू ने अपना विभाग मुख्यमंत्री के कहने पर ज्वाइन नहीं किया इसलिए उसे मंत्रिमंडल से निकालने की स्वीकृति दी जाए। इतनी अनिर्णयहीनता कांग्रेस के भविष्य के लिए कोई शुभ संकेत नहीं।

हाईकमान ने सिद्धू को उसके भाग्य पर छोड़ दिया है!
लम्बे समय से मैडीटेशन में लीन सिद्धू ने जो अपना टैंपरामैंट दिखाया है वह काबिले तारीफ है, न तो वह मीडिया से मिल रहे हैं और न ही सोशल मीडिया से। अब उन्होंने कुछ लोगों से सलाह मशवरा करना शुरू कर दिया है। अपने गुट के लोगों को वह वेट एंड सी का मंत्र दे रहे हैं परंतु जिस प्रकार से परिस्थितियां बन रही हैं वह अगले सप्ताह कोई राजनीतिक निर्णय सुना सकते हैं। एक माह बाद उसी विभाग को ज्वाइन करना उनके लिए अब नामुमकिन सा है। यह एक तरफ से दुर्भागय पूर्ण स्थिति है कि अब एक म्यान में दो तलवारें नहीं रह सकतीं वाली स्थिति बन गई है। इसका परिणाम पंजाब एवं कांग्रेस पार्टी को किस प्रकार से प्रभावित करेगा यह तो आने वाला समय ही बताएगा। अभी सरकार एक माह से इस मुद्दे के चलते कोई भी राजनीतिक निर्णय नहीं ले रही।  जिस प्रकार की खबरे आ रही हैं कि राहुल गांधी शीघ्र ही विदेश जाने वाले हैं तो उस स्थिति में यह मामला और लम्बा चलेगा। इसका अभिप्राय यह है कि हाईकमान ने सिद्धू को उसके भाग्य पर छोड़ दिया है। खुद लड़ो और जो निर्णय हो उसे स्वीकार कर लो। 

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