दुखी मन से बोला गुरनाम सिंह का बेटा ‘30 वर्ष भोगा दुख , बाकी वाहेगुरु जी की मर्जी ’

punjabkesari.in Wednesday, May 16, 2018 - 10:25 AM (IST)

पटियाला (बलजिन्द्र): 30 वर्ष पहले गुरनाम सिंह की मौत के बाद जिस तरह का माहौल देवीगढ़ रोड से कुछ मीटर दूरी पर स्थित घलोड़ी गांव में था, उसकी समूची यादें आज फिर से इस गांव के उम्र दराज लोगों को देखने को मिलीं। पूरा गांव अचानक सुनसान हो गया था। गुरनाम सिंह का 1984 का बना घर आज फिर से 30 साल पुरानी कहानी को दोहरा रहा था।

हालांकि इस परिवार ने साथ ही एक नई कोठी भी डाली जिसे ताला लगाया हुआ था। पुराने घर में सुनसान माहौल था। लगातार 30 साल से मीडिया किसी न किसी रूप में इस परिवार व गांव के सम्पर्क में रहा और जब भी केस की बात सामने आई तो परिवार ने जिस तरह इंसाफ की लड़ाई लड़ी उसी तरह डटकर हर मोड़ पर अपनी प्रतिक्रिया भी दी। आज दोनों हालात बिल्कुल उलट थे।  एक तो नवजोत सिद्धू की सजा खत्म करके उसे सिर्फ जुर्माना हुआ, दूसरा आज परिवार ने भी जहां इसे वाहेगुरु की मर्जी माना, वहीं किसी तरह की प्रतिक्रिया देने से इंकार कर दिया। 

सुबह से ही गांव घलोड़ी में नैशनल मीडिया का बड़ा जमावड़ा लगा हुआ था। सिद्धू रोड रेज केस में 4 केंद्र बिंदू थे, एक दिल्ली में माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले का केंद्र, दूसरा चंडीगढ़ में कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू की सरकारी रिहायश , तीसरा नवजोत सिंह सिद्धू का अमृतसर में स्थित घर और चौथा मृतक गुरनाम सिंह के गांव घलोड़ी में घर का केंद्र। सुबह चारों ही केंद्रों पर चुप्पी थी। दोपहर 11 बजे के बाद माननीय सुप्रीम कोर्ट से फैसला आया, किसी तरह उनके पुत्र नरवेंद्र सिंह के साथ बातचीत की गई तो उन्होंने केवल यही कहा कि 30 वर्ष तक बहुत दुख भोगा, बाकी वाहेगुरु जी की मर्जी है।  उन्होंने कहा कि जिसके पिता की मौत हो जाए, उससे क्या सवाल पूछे जा सकते हैं। इतना कहते ही उन्होंने फोन बंद कर दिया।

खुशदिल और धार्मिक विचारों वाले थे गुरनाम सिंह : दर्शन सिंह
मृतक गुरनाम सिंह के घर काम कर रहे दर्शन सिंह ने बातचीत करते हुए बताया कि वह स्व. गुरनाम सिंह के घर में पिछले लंबे समय से काम कर रहे हैं। वह बहुत ही खुशदिल और धार्मिक विचारों वाले थे। वह रोजाना गुरबाणी का पाठ करते थे, उसके बाद ही कोई अन्य काम करते थे। इस मौके उन्होंने पुरानी बातों को याद करते हुए बताया कि 27 दिसम्बर 1988 वाले दिन सुबह 10-11 बजे का समय होगा, जब वह खेतों में काम कर रहा था तो उसी दौरान उन्हें पता लगा कि सरदार जी की मौत हो गई है, उसी दौरान घर में मातम छा गया। उन्होंने बताया कि उसी दिन से स्व. गुरनाम सिंह का पुत्र नरवेंद्र सिंह उर्फ गोली इंसाफ की लड़ाई लड़ता आ रहा है।
 

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