सिद्धू की सक्रियता ने राजनीतिक पार्टियों में मचाई हलचल

punjabkesari.in Tuesday, Mar 03, 2020 - 08:49 AM (IST)

जालंधर(चोपड़ा): कांग्रेस के स्टार प्रचारक व तेज-तर्रार नेता नवजोत सिंह सिद्धू के कुछ माह अज्ञातवास काटने के उपरांत एकाएक राजनीति में सक्रिय होने से कांग्रेस ही नहीं बल्कि प्रदेश भर की राजनीतिक पार्टियों में हलचल मच गई है।  जहां एक तरफ आम आदमी पार्टी नवजोत सिद्धू को अपने साथ जोडऩे की कवायद में उन्हें भविष्य के मुख्यमंत्री पद का प्रलोभन दे रही है, वहीं अकाली दल बादल से टूट कर अलग ग्रुप बनाने वाले सुखदेव सिंह ढींडसा व उनके पुत्र परमिन्द्र सिंह ढींडसा ने भी सिद्धू को न्यौता दिया है कि वह उनके दल में शामिल हों और पंजाब की अगली सरकार का नेतृत्व करें। 

सोनिया व प्रियंका से मुलाकात का अभी खुलासा नहीं 

इन प्रलोभनों के विपरीत सिद्धू ने अभी अपनी चुप्पी नहीं तोड़ी है। फिलहाल सभी की निगाहें अब सिद्धू के अगले फैसले पर टिकी हुई हैं क्योंकि सिद्धू का पंजाब के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के साथ चल रहा मनमुटाव किसी से छिपा नहीं है। चंद दिन पहले सिद्धू ने कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी व राष्ट्रीय महासचिव प्रियंका गांधी से मुलाकात कर उनसे लंबी मंत्रणा की है। मीटिंग में किन बातों पर चर्चा हुई इसका खुलासा नहीं हो सका है। अब प्रदेश से संबंधित राजनीतिक दलों व जनता की निगाहें सिद्धू के अगले कदम पर हैं। यही चर्चा चल रही है कि सिद्धू अब कौन सा धमाका करेंगे। 

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दिल्ली विधानसभा चुनावों से सिद्धू ने बनाई रखी दूरी 

राजनीतिक माहिरों का मानना है कि सिद्धू ने जिस प्रकार दिल्ली के विधानसभा चुनावों में स्टार कैम्पेन कमेटी में शामिल होने के बावजूद चुनाव प्रचार से दूरी रखी उससे यह संकेत जाता है कि शायद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल व ‘आप’ के प्रति उनके दिल में चलते साफ्टकार्नर की वजह से उन्होंने दिल्ली विधानसभा चुनावों से अपनी दूरी बनाए रखी। सिद्धू ने पूरे चुनाव प्रचार में एक भी मीटिंग को संबोधित नहीं किया।  अंतत: चुनाव परिणाम ‘आप’ के पक्ष में गए हैं और पार्टी को दिल्ली की 70 सीटों में से 63 सीटें हासिल हुई हैं। ऐसे में पंजाब में ‘आप’ प्रधान भगवंत मान का बयान भी खास महत्व रखता है । उन्होंने कहा है कि अगर सिद्धू ‘आप’ में शामिल होते हैं तो वह उनका सबसे पहले स्वागत करेंगे। 

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सिद्धू की जनहित नीतियों की आज भी सराहना करती है पंजाब की जनता

आज पंजाब में लोगों को रेत मुफ्त देने के मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के फैसले के कयासों के चलते नई चर्चा शुरू हो गई है कि अगर पंजाब सरकार रेत मुफ्त बांटने का कदम उठाती है तो क्या ऐसा महत्वपूर्ण निर्णय कांग्रेस हाईकमान के आदेशों पर तो नहीं लिया जा रहा? क्या इस फैसले की जमीन सिद्धू की सोनिया व प्रियंका की मीटिंग में तो नहीं तैयार की गई? मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह व नवजोत सिद्धू के विवाद के चलते जब सिद्धू का मंत्रालय बदला गया तब सिद्धू ने नया मंत्रालय संभालने से इंकार कर दिया था। परन्तु पंजाब की जनता आज भी सिद्धू द्वारा बनाई गई जनहित की नीतियों की सराहना करती है। 

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सिद्धू की माइनिंग पालिसी लागू होती तो करीब 1500 करोड़ का रैवेन्यू आता 

सिद्धू ने अपनी पालिसियों में रेत खनन, शहरों व गांवों का विकास करवाने सहित निकाय विभाग से संबंधित ऐसे ठोस फैसले लिए थे जिसको लागू करने से पंजाब का खोया हुआ स्वरूप वापस लौट सकता था। उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान फुलप्रूफ माइनिंग पालिसी के तहत 99 करोड़ की डी.पी.आर. तैयार की थी जिसमें ऐतिहासिक शहरों के सौंदर्यीकरण का काम होना था। इसमें पर्यटकों व श्रद्धालुओं को सुविधाएं मुहैया करवाई जानी थीं। सिद्धू ने फुलप्रूफ माइनिंग पालिसी बनाने के लिए देश के 13-14 राज्यों की रिपोर्ट्स स्टडी की थीं। इसमें तेलंगाना की माइनिंग पालिसी का माडल सिद्धू को सबसे बेहतर लगा। इस माडल के तहत पंजाब में महंगी बोलियां नहीं लगवाई जानी थीं। इसमें रेत खनन में लगने वाले वाहनों की टैगिंग होनी थी और रेत स्टोर करने के लिए यार्ड बनाए जाने थे। इस पालिसी के तहत रेत खनन के माध्यम से सरकार को 1500 करोड़ के करीब रैवेन्यू एकत्रित होने की संभावना थी। 

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अगर सिद्धू की पालिसी होती लागू तो होना था लाभ

अगर सिद्धू की बनाई पालिसियां लागू हो जातीं तो पंजाब में अवैध माइनिंग बंद होनी थी और पालिसी के मुताबिक लोगों को सस्ते दामों में रेत व बजरी उपलब्ध होनी थी। लेकिन कांग्रेस के ही कुछ मंत्रियों व विधायकों द्वारा खुलेआम सिद्धू का विरोध करना माइनिंग माफिया से उनकी कथित मिलीभगत को उजागर करता है क्योंकि ये लोग नहीं चाहते थे कि पंजाब में अवैध खनन बंद हो। अगर रेत मुफ्त देने जैसा सरकार बड़ा फैसला लेती है तो इसका श्रेय भी नवजोत सिद्धू को ही जाएगा। 


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