गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी कांड में घिरने के बाद दोनों पार्टियों में आई राजनीतिक दरार

punjabkesari.in Tuesday, Sep 18, 2018 - 08:38 AM (IST)

जालंधर (रविंद्र): गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी बारे जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट विधानसभा में रखे जाने के बाद पंजाब की राजनीति में काफी बदलाव आ गया है। एक तरफ अकाली दल का पंथक एजैंडा भटकता हुआ दिखाई दे रहा है तो दूसरी तरफ अकाली दल को अपनी सहयोगी पार्टी भाजपा का भी साथ नहीं मिल रहा है। कुल मिलाकर अकाली दल की भविष्य की राजनीति कुछ बिखरी हुई नजर आ रही है।


भाजपा ने न केवल बेअदबी कांड रिपोर्ट आने के बाद अकाली दल की पोल खोल रैली से दूरी बना रखी है, बल्कि जिला परिषद व पंचायत चुनावों में भी अकाली दल को भाजपा वर्करों का साथ नहीं मिल रहा है, जिसका सीधा फायदा इन चुनावों में कांग्रेस को मिल सकता है।जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट में पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल व पूर्व डी.जी.पी. सुमेध सैनी का नाम आने के बाद भाजपा ने प्रदेश में अपनी गठजोड़ पार्टी अकाली दल से कन्नी काटनी शुरू कर दी है। चुप्पी साध कर भाजपा यह जताने का प्रयास कर रही है कि बेअदबी कांड के दौरान चाहे वह सत्ता में भागीदार थी, मगर निर्णय सारा पूर्व मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल का ही था। हैरानी की बात तो यह है कि भाजपा के किसी भी सीनियर नेता ने पहली बार बादलों के हक में कोई खुलकर बयान नहीं दिया है। भाजपा कोर कमेटी की पिछले दिनों मीटिंग हुई थी, जिसमें वर्करों को गुरु ग्रंथ साहिब बेअदबी के साथ संबंधित घटनाओं से दूरी बनाए रखने को कहा गया है।

बताया जाता है कि अपनी रैलियों को सफल बनाने के लिए अकाली दल ने भाजपा के वर्करों को अपने स्तर पर पोल खोल रैली में पहुंचने के संदेश दिए थे। मगर हाईकमान का इशारा न मिलने के कारण भाजपा का निचला कैडर इन रैलियों में नहीं गया और न ही भाजपा के किसी बड़े नेता ने वर्करों की पोल खोल रैली में जाने की ड्यूटी निर्धारित की। भाजपा बेअदबी कांड को पंथक मसला कह कर इससे दूरी बनाना चाहती है और अकाली दल के पाप की भागीदार खुद नहीं बनना चाहती है। जिला परिषद व पंचायत समितियों के चुनावों में भी अकाली दल को भाजपा का साथ नहीं मिल रहा है। हालांकि शिरोमणि अकाली दल व भाजपा की संयुक्त कोर कमेटी ने पंचायत चुनावों के लिए टिकटों का आपसी बंटवारा किया है। जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट में बादलों का नाम आने के बाद पंजाब की जनता भी अकाली दल व भाजपा को ’यादा समर्थन नहीं दे रही है। चुनाव नतीजे भी इसी कारण एकतरफा रहने के ही आसार हैं।


यह पहली बार है कि चुनावों से पहले ही सत्ताधारी दल के काफी उम्मीदवार बिना लड़े ही विजेता करार दिए जा चुके हैं। हालांकि केंद्र की भाजपा हाईकमान व पंजाब भाजपा ने आने वाले 2019 लोकसभा चुनाव एक साथ लडऩे का ऐलान किया है मगर जिस तरह से अंदरखाते भाजपा के वर्कर अकाली दल से दूरी बना रहे हैं, से अकाली दल की परफार्मैंस पर तो फर्क पड़ेगा ही, साथ ही 2022 तक की जमीन का रास्ता भाजपा अकेले तय करने की मंशा पर भी काम करने जा रही है। पंजाब भाजपा इकाई के एक सीनियर नेता का कहना है कि मीटिंग में यह निर्णय लिया गया है कि बेअदबी मामले में पंथक मसले को लेकर दूरी बनाए रखने, मगर अकाली दल के साथ अभी सांझ न तोडऩे का फैसला लिया गया है। भाजपा नेता का यह भी कहना है कि अकाली दल के कई टकसाली नेता अंदरखाते बादलों के इस मामले में घिरने से बेहद खुश दिखाई दे रहे हैं, क्योंकि 10 साल की सत्ता के दौरान सुखबीर बादल ने इन टकसाली अकालियों को दरकिनार किए रखा था। 

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