पंजाब सरकार के पास बहाने,किसान नाड़ जलाकर भुगत रहे

punjabkesari.in Monday, May 08, 2017 - 10:37 AM (IST)

चंडीगढ़(अश्वनी कुमार): ज्यों-ज्यों धान की रोपाई का समय नजदीक आ रहा है, त्यों-त्यों आबो-हवा में प्रदूषण का स्तर बढ़ता जा रहा है। पंजाब से लेकर हरियाणा और दिल्ली तक लोगों की सांसें फूल रही हैं लेकिन खेत तैयार करने की जल्दबाजी में किसान धड़ल्ले से गेहूं की नाड़ फूंकने पर आमादा हैं। भले ही उन्हें जुर्माना ही क्यों न भुगतना पड़े। 


भारतीय किसान यूनियन ने जुर्माने के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए यहां तक ऐलान कर दिया है कि नाड़ जलाने का सिलसिला तब तक जारी रहेगा, जब तक सरकार इसका विकल्प मुहैया नहीं करवाएगी। यह पहला मौका है जब नैशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एन.जी.टी.) के निर्देश पर सैटेलाइट के जरिए नाड़ फूंकने वाले किसानों पर शिकंजा कसा जा रहा है। सूचना मिलते ही संबंधित अधिकारी किसानों पर प्रति दो एकड़ के हिसाब से 2500 रुपए जुर्माना लगा रहे हैं। अब तक खेत में आग लगने की 788 घटनाएं रिकॉर्ड हुई हैं, जबकि 226 किसानों के चालान किए गए हैं। करीब 8 लाख, 7 हजार 500 रुपए का जुर्माना ठोका गया है, जिसमें से 4 लाख 7 हजार 500 रुपए की रिकवरी भी की जा चुकी है। बावजूद इसके नाड़ जलाने का सिलसिला जारी है।

किसानों का कहना है कि उनके पास नाड़ जलाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। सरकार भी ठोस विकल्प मुहैया नहीं करवा पाई है, जिसके जरिए नाड़ को ठिकाने लगाया जा सके। ऐसे में अगली फसल से पहले खेत तैयार करने का आसान तरीका यही है। बेशक सरकार ने दशकभर पहले राज्य में बड़े स्तर पर बायोमास प्रोजैक्ट्स लगाने की घोषणा की थी लेकिन गिने-चुने प्रोजैक्ट्स को छोड़ बाकी योजनाएं हवा-हवाई हो चुकी हैं। अब किसान के पास इतना धन नहीं है कि खुद मजदूर लगाकर नाड़ को हटाने की पहल करे। सरकार ने नाड़ काटकर खेत तैयार करने वाली सस्ती मशीनें देने का भी वायदा किया था लेकिन यह पूरा मामला अभी तक हवा-हवाई है।

बेपरवाही या जिद, खमियाजा भुगत रहे लोग
सरकार की बेपरवाही कहें या किसानों की जिद लेकिन नाड़ जलाने का खमियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। अच्छी फसल के लिए खेत में डाली जाने वाली एक-तिहाई नाइट्रोजन, सल्फर, 75 फीसदी पोटाश व 25 फीसदी फासफोरस नाड़ में ही रह जाती है। ऐसे में आग लगाने से यह ऑक्सीजन के साथ घुलकर जहरीली ऑक्साइड्स का रूप धारण कर लेते हैं। एक अध्ययन के मुताबिक फसल जलाने की प्रक्रिया के दौरान हवा में बारीक कणों की तादाद करीब 425 मिलीग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच जाती है, जो सामान्य तौर पर 60 मिलीग्राम प्रति घन मीटर होनी चाहिए। यही कण सांस के साथ शरीर में प्रवेश कर दमा, फेफड़ों का कैंसर, सांस नलिका में सूजन जैसी घातक बीमारियां पैदा करते हैं।

पंजाब के किसानों का आरोप
नाड़ जलाने के सिवाय कोई विकल्प नहीं है। राज्य सरकार भी ठोस विकल्प मुहैया नहीं करवा पाई है, जिसके जरिए नाड़ को ठिकाने लगाया जा सके। ऐसे में अगली फसल से पहले खेत तैयार करने का यही एकमात्र आसान तरीका है।

अध्ययन; नाड़ जलाने से किसानों को होता है 500 करोड़ का नुक्सान
एक अध्ययन के मुताबिक नाड़ जलाने से किसानों को करीब 500 करोड़ रुपए का नुक्सान होता है। ऐसा इसलिए है कि करीब एक एकड़ क्षेत्र में नाड़ जलाने से 32 किलो यूरिया, 5.5 किलो डी.ए.पी. और 51 किलो पोटाश खाद जलकर स्वाह हो जाती है। नाड़ जलने से 38 लाख आर्गेनिक कार्बन जलकर भस्म हो जाते हैं जिससे धरती की उपजाऊ शक्ति क्षीण हो जाती है। इसके अलावा मित्र कीट, बैक्टीरिया और फसलों को उपजाऊ बनाने वाली काई तथा अन्य तत्व भी जल जाते हैं।

पंजाब सरकार जब तक नाड़ जलाने की बजाय बंदोस्त की वैकल्पिक व्यवस्था नहीं करती, तब तक यह सिलसिला जारी रहेगा। सरकार को 8 मई तक का अल्टीमेटम दिया है। सरकार ने इस दौरान वैकल्पिक व्यवस्था नहीं की तो 9 मई को प्रदेशभर में सामूहिक स्तर पर नाड़ जलाई जाएगी। इस दौरान अगर जुर्माना लगाया गया तो सरकार के खिलाफ सड़क पर उतरकर विरोध करेंगे। सरकार से महज इतनी मांग की है कि किसानों को मुफ्त में ‘जंतर’ यानी हरी खाद के बीज मुहैया करवाए तथा इनके पोषण के लिए एक महीने तक पानी की मुफ्त सप्लाई सहित कम से कम दो हजार रुपए प्रति एकड़ मजदूरी के तौर पर आर्थिक मदद दे। हरी खाद नाड़ को ठिकाने लगाने का एक अच्छा विकल्प है। हरी खाद से न केवल जमीन की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है बल्कि खेत में लगी नाड़ भी खाद बन जाती है।   -सुखदेव सिंह कोकरी, महासचिव भारतीय किसान यूनियन (एकता-उगराहां)

प्रदूषण की रोकथाम के लिए पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड वचनबद्ध है। नाड़ जलाने वाले किसानों पर लगातार नजर रखने के साथ-साथ उन पर सख्ती भी बरती जा रही है। अब तक बड़े पैमाने पर किसानों पर जुर्माने लगाए गए हैं। इसके अलावा उन्हें जागरूक भी किया जा रहा है। किसानों को यह समझना होगा कि नाड़ जलाने में उनका, उनके परिवार सहित आम जनमानस का नुक्सान है। इस संबंध में बोर्ड ने बाकायदा पूरे पंजाब में जागरूकता मुहिम भी चला रखी है।    -बाबू राम, मैंबर सैक्रेटरी, पंजाब प्रदूषण कंट्रोल बोर्ड


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