केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दी दलील: जहां से गिराया वहीं 200 वर्ग मीटर में बनेगा रविदास मंदिर

punjabkesari.in Friday, Oct 18, 2019 - 12:29 PM (IST)

नई दिल्लीः केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट को शुक्रवार को बताया कि वह दक्षिण दिल्ली में पहले वाली जगह पर ही गुरु रविदास मंदिर के निर्माण के लिए श्रद्धालुओं की एक समिति को 200 वर्ग मीटर जगह सौंपने का इच्छुक है। न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एस. रविंद्र भट की पीठ ने केंद्र की ओर से पेश हुए अटार्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल के प्रस्ताव को दर्ज किया और मंदिर के निर्माण की मांग कर रहे पक्षकारों से कहा कि यदि उन्हें कोई आपत्ति है तो वे सोमवार तक दर्ज कराएं।वेणुगोपाल ने शुरूआत में कहा कि उन्होंने सभी पक्षकारों के साथ विचार-विमर्श किया। इस पर केंद्र स्थल के लिए श्रद्धालुओं की आस्था एवं संवेदनशीलता को देखते हुए भूमि का वही टुकड़ा देने के लिए सहमत हो गया। 

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5 याचिकाकत्र्ताओं ने जताई सहमति
वेणुगोपाल ने कहा कि मंदिर के निर्माण के लिए श्रद्धालुओं की एक समिति को स्थल का वही 200 वर्ग मीटर का क्षेत्र सौंपा जा सकता है। उन्होंने बताया कि मंदिर को ध्वस्त किए जाने के खिलाफ न्यायालय का दरवाजा खटखटाने वाले 7 में से 5 याचिकाकत्र्ताओं ने इस प्रस्ताव पर सहमति जताई है। 

4 को सर्वमान्य हल का दिया था आदेश
शीर्ष अदालत ने दिल्ली के तुगलकाबाद वन क्षेत्र में गुरु रविदास मंदिर के पुनर्निर्माण की अनुमति का अनुरोध करने संबंधी याचिका के संबंधित पक्षकारों से 4 अक्तूबर को कहा था कि वे मंदिर के लिए सर्वमान्य समाधान के साथ  वापस आएं। 

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मंदिर की ऐतिहासिकता और प्रमाणिकता
एडवोकेट सतपाल विरदी, एडवोकेट इंद्रजीत सिंह, नैशनल शैड्यूल्ड कास्ट अलायंस के अध्यक्ष परमजीत सिंह कैंथ, आदि धर्म मिशन खुरालगढ़ साहिब के संत सतविन्द्र सिंह हीरा के अनुसार तुगलकाबाद स्थित श्री गुरु रविदास मंदिर 600 वर्ष पुराना मंदिर है। इस मंदिर की जमीन दिल्ली के सम्राट सिकंदर लोधी ने दी थी। सिकंदर लोधी हर हाल में श्री गुरु रविदास जी का धर्मांतरण कर उन्हें मुस्लिम बनाना चाहता था लेकिन जब किसी भी तरह वह सफल नहीं हो पाया तो बादशाह के आदेश पर श्री गुरु रविदास महाराज को जेल में डाल दिया गया। इसके जवाब में चंबर वंश के क्षत्रियों ने दिल्ली को घेर लिया था। इससे भयभीत होकर सिकंदर लोधी ने गुरु महाराज को छोड़ दिया।यही नहीं, गुरु महाराज की शिक्षाओं से प्रभावित होकर स्वयं बादशाह सिकंदर लोधी ने 800 कनाल (लगभग 12 बीघा और 7 बिस्वा) जमीन उपहार स्वरूप दी थी, जिस पर गुरु महाराज के अनुयायियों ने 600 साल पहले मंदिर बनाकर सत्संग शुरू किया था।  एडवोकेट विरदी ने बताया कि 1959 में स्वयं उपप्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम इस मंदिर में गए और मंदिर का पुनरुद्धार करवाया। यही नहीं, दिल्ली रैवेन्यू रिकार्ड में इस मंदिर का इंदराज दर्ज है। 1964 में इस मंदिर की जमीन को दिल्ली विकास प्राधिकरण ने अपने कब्जे में ले लिया और कोर्ट में केस चला गया।


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