अवैध शराब का बड़ा गढ़ बनता जा रहा यह इलाका, दर्जनों लोग इस धंधे में शामिल

punjabkesari.in Tuesday, Jul 19, 2022 - 02:46 PM (IST)

अमृतसर (इंद्रजीत/अवधेस): दशकों से हकीमा वाला गेट के बाहर और अंदर के इलाके शराब का एक बड़ा गढ़ बन गए थे, जहां अवैध शराब तस्करों ने डेरा डाले हुए थे। लेकिन पिछले कुछ सालों में बड़ी संख्या में आसपास के अन्नगढ़ इलाका काफी हद तक सुधर गया है परन्तु गेट हकीमा का इलाका अब फिर से अवैध और देसी शराब विक्री में पहले नंबर पर आ रहा है। इन इलाकों में बड़ी संख्या में ऐसे लोग हैं, जिन्होंने शराब के इस काम को पेशे के तौर पर अपनाया है।

इस धंधे के फलने-फूलने का कारण यह भी है कि शराब के सबसे बड़े मामले में पकड़े गए आरोपियों को तुरंत जमानत मिल जाती है और बाहर निकलकर फिर से वही धंधा शुरू कर देते हैं। पिछले 2 साल से शराब के धंधे से जुड़े खिलाड़ी शराब आदि बनाने के साथ-साथ 'मिथाइल-अल्कोहल' मिलाकर सीधे शराब बनाने लगे हैं। यह अल्कोहल पेंट की तरह काम करता है और सीधे दिमाग पर असर करता है। इसमें ज्यादा बदबू नहीं होती है लेकिन इस पदार्थ से बनी शराब शरीर के लिए काफी हानिकारक मानी जाती है। इसमें व्यापारियों ने इस क्षेत्र में अपने पांव जमा लिए हैं। यहां से बनी शराब ने तरनतारन इलाके में 130 लोगों की जान ले ली थी।

शराब के धंधे में छोटे-बड़े दर्जनों लोग शामिल हैं, जो कथित साहूकारों से दो नंबर की पैसों के लिए काम करते हैं। लगभग सभी सक्रिय शराब व्यवसायी इन साहूकारों के चंगुल में पड़ जाते हैं और उन्हें हर दिन हजारों रुपए ठगते हैं।  गेट हकीमा के आसपास के क्षेत्र में शराब की अवैध बिक्री के साथ-साथ पीने का भी प्रावधान है जहां इसे बेहतरीन कमरों में परोसा जाता है। ज्यादातर शराबी, मजदूर और ड्राइवर आदि 3-4 बार शराब पीने आते हैं। चूंकि सरकारी अधिकृत शराब की दुकान से शराब खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं, लगभग 20-30 गरीब लोग यहां आते हैं और शराब खरीद कर पीते हैं।

जमीन में गुड़ और जिस्ट जैसी सामग्री से बना लहन बेशक शरीर के लिए हानिकारक है लेकिन सीधे तौर पर घातक नहीं है। इसलिए कानून ऐसी शराब बनाने और बेचने के लिए कोई आपराधिक प्रावधान नहीं करता है। इसलिए आबकारी अधिनियम 61/1/14 के तहत मामला दर्ज किया गया है। मिथाइल एल्कोहल से बनने वाली शराब पर गंभीर धाराओं में केस दर्ज करने का प्रावधान है, क्योंकि यह सीधे तौर पर घातक हो जाती है।

जमीन में दबी शराब और देशी शराब की काम करने वाली भट्टी को पकड़ने में पुलिस को ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती, लेकिन रंगों में इस्तेमाल होने वाली मिथाइल एल्कोहल को कानूनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है। यह जानने पर पुली विभाग के अधिकारी रुक जाते हैं, इस शराब को प्लास्टिक के ड्रम आदि में ले जाने वाला व्यक्ति बिल दिखाता है कि यह पेट में काम करने के लिए लाया गया है। जबकि अपराधियों के लिए चंद सेकेंड में शराब बनाने के लिए इसे सीधे पानी में मिलाना मुश्किल होता है, ताकि ऐसी स्थिति में पुलिस उन्हें पकड़ सके।

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News Editor

Kamini

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