Bye Bye 2018: सत्ता से बाहर होने के बावजूद पंजाबियों के विरोध का केंद्र रहा अकाली दल

punjabkesari.in Friday, Dec 28, 2018 - 08:34 AM (IST)

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): कुछ दिनों के बाद राजनीतिक, धार्मिक और सामाजिक पक्ष से महत्वपूर्ण स्मृतियां छोड़ कर जा रहा वर्ष-2018 शिरोमणि अकाली के लिए सब से भारी सिद्ध हुआ है। इस वर्ष के दौरान खास बात यह रही कि इस बार पंजाब में कांग्रेस की सरकार होने के बावजूद भी शिरोमणि अकाली दल ना सिर्फ पंजाबियों के निशाने पर रहा, बल्कि वर्ष के अंतिम महीनों में अकाली दल को अपनों के विरोध का भी बुरी तरह से सामना करना पड़ा। यहां तक कि करीब 98 साल पुरानी इस पार्टी द्वारा जब 2 वर्ष के बाद अपना 100वां स्थापना दिवस मनाने की तैयारियां की जा रही थीं तो न सिर्फ इस अवसर पर अकाली दल के कई सीनियर टकसाली नेताओं ने पार्टी प्रधान सुखबीर सिंह बादल की अध्यक्षता के विरुद्ध बगावत करके इस्तीफे दे दिए, बल्कि इन नेताओं ने नई पार्टी भी बना ली। इस तरह जहां यह पार्टी जत्थेबंदक नेतृत्व से जुड़े मामले को लेकर अपने विरोधियों से जूझती रही, वहीं 6 महीने चले बरगाड़ी मोर्चा और जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट ने भी अकाली दल की समस्याओं में विस्तार किया।

5 महीने भी सक्रिय नहीं रहे 5 बार बने मुख्यमंत्री
इस वर्ष पार्टी के सुप्रीमो और 5 बार बन चुके पंजाब के मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल ने पार्टी के लिए 5 महीने भी काम नहीं किया क्योंकि बहुत समय पार्टी की सरगर्मियों की बागडोर सुखबीर सिंह बादल ने संभाले रखी। यहां तक कि कांग्रेस के विरुद्ध दिए गए धरनों में भी स. बादल उपस्थित नहीं हुए, परन्तु जब पार्टी के सीनियर नेताओं ने सुखबीर के विरुद्ध बगावत का बिगुल बजाया और साथ ही जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट ने अकाली लीडरशिप की किरकिरी करवाई तो प्रकाश सिंह बादल ने कुछ सरगर्मियों शुरू कीं, परन्तु मुख्य तौर पर पार्टी की कमान फिर भी सुखबीर के हाथों में ही रही।

खोए हुए जन आधार की खोज में जुटा रहा अकाली दल
वर्ष के शुरू से ही शिरोमणि अकाली दल लोगों में अपना खोया हुआ जन आधार ढूंढने का यत्न करता रहा जिसके अंतर्गत सुखबीर बादल और बिक्रम मजीठिया सहित अन्य नेताओं ने विभिन्न हलकों में जा कर लोगों के साथ संबंध कायम करने की कोशिश की। यहां तक कि विभिन्न स्थानों पर अकाली वर्करों पर हुए पर्चों और किसानों की मांगों को लेकर खुद बादल भी कई धरनों में शामिल हुए। खास तौर पर वर्ष के अंत में गन्ना काश्तकारों के पक्ष में गुरदासपुर में जिला प्रधान गुरबचन सिंह की अध्यक्षता में गुरदासपुर में दिए गए धरने में सुखबीर और मजीठिया सहित समूची लीडरशिप ने पहुंच कर हाजिरी भरी। इसी तरह जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट के कारण हुए नुक्सान की भरपाई के लिए अकाली दल ने अबोहर, फरीदकोट और पटियाला शहर में रैलियां करने जैसी कई कोशिशें कीं, परन्तु इसके बावजूद पार्टी पूरी तरह पैरों पर खड़ी होने की बजाए कई चुनौतियोंं से जूझती रही। 

भविष्य संबंधी संदेह जारी
अकाली दल के संबंध में यह माना जाता है कि पंजाब में अकाली दल का काफी बोलबाला रहा है। इसमें भी कोई शक नहीं है कि मौजूदा समय दौरान शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी पर अकाली दल की पूरी पकड़ है और पार्टी ने इस बार इस समिति के प्रधान के चुनाव के अवसर पर भी कानूनी ढंग अपनाए जाने का प्रभाव देने की कोशिश की है। इतना ही नहीं, श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह की जगह पर ज्ञानी हरप्रीत सिंह को कार्यकारी जत्थेदार के तौर पर नियुक्त किए जाने को भी इसी कोशिश के साथ जोड़ा जा रहा है। इस के बाद अकाली लीडरशिप ने श्री दरबार साहिब में नतमस्तक हो कर न सिर्फ सेवा की बल्कि श्री अखंड पाठ साहिब के भोग उपरांत पार्टी की चढ़दी कला के लिए अरदास करके अपनी भूलें भी माफ करवा लीं, परन्तु यह देखने वाली बात होगी कि आने वाले समय में पंजाब के लोग 1966 के बाद से सब से अधिक समय कर राज करने वाली इस पार्टी को स्वीकार करते हैं?


बहुत भारी रहे वर्ष के अंतिम महीने
श्री गुरु ग्रंथ साहिब की बेअदबी व बहबल कलां गोलीकांड संबंधी इंसाफ की मांग को लेकर करीब 6 महीने चले बरगाड़ी मोर्चों ने सीधे तौर पर अकाली दल को बड़ा नुक्सान पहुंचाया। खास तौर जब जस्टिस रणजीत सिंह की रिपोर्ट पेश हुई तो अकाली दल दृढ़ता दिखाने की बजाय और बिखरता दिखाई दिया। इसी प्रकार प्रकाश सिंह बादल और सुखबीर सिंह बादल को न सिर्फ एस.आई.टी. ने तलब कर लिया बल्कि कांग्रेस और विरोधी दलों ने भी इस मुद्दे पर अकाली दल को राजनीतिक नुक्सान पहुंचाने का कोई अवसर  हाथों से नहीं जाने दिया। पंजाब में कई स्थानों पर लगे धरनों के अलावा विधान सभा में भी कांग्रेसी विधायकों और मंत्रियों सहित आप विधायकों ने दोनों बादलों के विरुद्ध कार्रवाई करवाने पर पूरा जोर लगा दिया।

टकसालियों की बगावत ने उलझाया अकाली दल को
जस्टिस रणजीत सिंह कमीशन की रिपोर्ट के कारण पैदा हुए संकट में से निकलने की कोशिश कर रहे अकाली दल को उस समय पर और झटका लगा जब पटियाला में रखी रैली से पहले पार्टी के दिग्गज टकसाली नेता सुखदेव सिंह ढींडसा ने एकदम त्याग पत्र दे दिया। उस के कुछ दिनों बाद रणजीत सिंह ब्रह्मपुरा, सेवा सिंह सेखवां, रत्न सिंह अजनाला जैसे टकसाली नेताओं की बगावत भी पार्टी के लिए किसी बड़ी मुसीबत से कम नहीं रही। और तो और, इन्हीं नेताओं द्वारा सुखबीर बादल के खिलाफ लगाए गए गंभीर आरोपों के अलावा नया अकाली दल (टकसाली) बना लिए जाने के मुद्दे को भी पार्टी के लिए बड़ा नुक्सान माना जा रहा है।

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