पंजाब में गहराया यूरिया का संकट, 7 लाख टन की कमी; ऐसा रहा तो इस वर्ष कम होगा गेहूं उत्पादन

punjabkesari.in Saturday, Nov 21, 2020 - 11:29 AM (IST)

जालंधर (सोमनाथ): कृषि सुधार कानून के विरोध में किसान संगठन आंदोलनरत हैं। यात्री और मालगाडिय़ों की आवाजाही बंद पड़ी है और दूसरी तरफ राज्य में गेहूं की बिजाई लगभग हो चुकी है, जो खाद किसानों या फिर डीलरों के पास पड़ी थी, उसका स्टॉक खत्म हो चुका है। हालात यह हैं कि राज्य में 7 लाख टन यूरिया खाद की कमी पैदा हो गई है। अगर यही हाल रहा तो इसका असर जहां इस वर्ष गेहूं के उत्पादन पर पड़ेगा, वहीं गेहूं की कीमत में भी बड़ा उछाल देखने को मिलेगा। ऐसा भी हो सकता है कि इस वर्ष पंजाब में गेहूं की फसल आधी ही रह जाए। 

उल्लेखनीय है कि देश में पंजाब, हरियाणा के सबसे बड़े गेहूं उत्पादक राज्य होने के साथ-साथ अब मध्य प्रदेश में भी पंजाब के लगभाग बराबर गेहूं उत्पादन होने लगा है। केंद्रीय अन्न भंडारण के मामले में 45 प्रतिशत की हिस्सेदारी पंजाब की बताई जाती है और पंजाब के लगभग बराबर ही मध्य प्रदेश की हिस्सेदारी है। फर्क सिर्फ कुछेक प्वाइंट्स का ही है।

इसके अलावा दूसरे प्रदेशों से भी केंद्रीय पूल में गेहूं की सप्लाई बढ़ गई है। पंजाब में करीब 35 लाख हैक्टेयर में गेहूं की बिजाई की जाती है। अगर पंजाब में समय पर यूरिया की सप्लाई नहीं होती तो इसका गेहूं के साथ-साथ अन्य फसलों पर क्या असर पड़ेगा इस संबंध में पंजाब केसरी की तरफ से कृषि विशेषज्ञों, एग्रीकल्चर डायरैक्टर सहित राज्य के किसानों से बात की गई। 

फसलों को यूरिया की कब-कब पड़ती है जरूरत?
यूरिया की सप्लाई प्रभावित होने और इसके गेहूं के उत्पादन पर पडऩे वाले संभावित असर को लेकर कृषि माहिर डॉ. नरेश गुलाटी के साथ बात की गई तो उन्होंने बताया कि राज्य में फर्टिलाइजर बेस्ड खेती हो रही है और हर फसल की ग्रोथ के लिए खादों की जरूरत पड़ती है। मसलन खादों पर निर्भरता ज्यादा हो गई है। एक साल में एक ही जमीन से कई-कई फसलें लेने के कारण जमीन की उपजाऊ शक्ति पर भी असर पड़ा है। जहां गेहूं की फसल का सवाल हो तो अमूमन फसल की बिजाई से लेकर फसल तैयार होने तक तीन बार यूरिया की जरूरत पड़ती है। 

पहले चरण अक्तूबर की बात करें तो किसानों और राज्य के डीलरों के पास जो स्टॉक था उससे पहले चरण की कमी तो पूरी हो गई है लेकिन नवम्बर महीने में दूसरे चरण के लिए यूरिया बड़ी जरूरत है। उन्होंने बताया कि यूरिया फसलों को नाइट्रोजन मुहैया करवाती है जोकि फसल की ग्रोथ के लिए जरूरी होती है। वहीं बहुत ज्यादा खादों का उपयोग होने से हवा में 70 प्रतिशत के करीब नाइट्रोजन की उपस्थिति है।

सिंचाई के समय इस्तेमाल होती यूरिया का करीब 30 प्रतिशत हिस्सा हवा में उड़ जाता है। एक हैक्टेयर में करीब 45 किलो यूरिया इस्तेमाल किया जाता है। यूरिया के साथ-साथ डी.ए.पी. का भी उपयोग होता है। डॉ. गुलाटी ने बताया कि गेहूं के साथ-साथ आलू के उत्पादन के लिए भी यूरिया की बहुत बड़ी जरूरत है।  

10 दिन की देरी से 25 प्रतिशत तक घट सकता है गेहूं उत्पादन
पंजाब में पैदा हुए यूरिया संकट और इससे गेहूं के उत्पादन पर होने वाले असर को लेकर जब पंजाब कृषि विभाग के ज्वाइंट डायरैक्टर  डॉ. बलदेव सिंह से बात की गई तो उन्होंने बताया कि गेहूं की फसल की बिजाई के 30 दिन के भीतर यूरिया के छिड़काव की जरूरत होती है। अगर यूरिया के छिड़काव में 10 दिन की देरी हो जाए तो 25 प्रतिशत के करीब गेहूं का उत्पादन कम हो सकता है और अगर यही देरी 15-40 दिन हो जाए तो गेहूं उत्पादन आधा भी रह सकता है। उन्होंने बताया कि यूरिया की सप्लाई के मामले में पंजाब में इस समय संकट पैदा हो गया है। फिर भी ट्रकों के माध्यम से किसानों तक यूरिया की सप्लाई मुहैया करवाए जाने के प्रयास किए जा रहे हैं।  

अक्तूबर महीने में 4 लाख टन और नवंबर में 4 लाख टन यूरिया की किसानों को जरूरत थी। वर्तमान में 7 लाख टन यूरिया की जरूरत है। एन.एफ.एल. नंगल और बठिंडा से किसानों को यूरिया मुहैया करवाया जा रहा है तथा दूसरे प्रदेशों से भी यूरिया मंगवाया जा रहा है। मालगाड़ियों की आवाजाही बंद होने से असर पड़ रहा है। नंगल और बठिंडा से हर रोज 1000-1500 टन यूरिया सप्लाई हो रहा है। किसानों की सुविधा के लिए बठिंडा में काऊंटर लगाए गए थे लेकिन बठिंडा में विरोध के चलते काऊंटर बंद करना पड़ा है। फिर भी माझा जोन के लिए एन.एफ.एल. बठिंडा से यूरिया की सप्लाई सुनिश्चित की जाएगी। मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेन्द्र सिंह किसानों की इस समस्या को देखते हुए यूरिया की सप्लाई सुनिश्चित करने के लिए हरसंभव प्रयास कर रहे हैं। उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में गहराई हुई समस्या का हल निकल आएगा। -राजेश वशिष्ठ, डायरैक्टर कृषि विभाग पंजाब


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Tania pathak

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