बड़ा सवाल... क्या होगा वरियाणा डंप की जमीन का?

punjabkesari.in Wednesday, Dec 30, 2020 - 01:34 PM (IST)

जालंधर (सोमनाथ): वरियाणा डंप पर लगे करीब 8 लाख मीट्रिक टन कूड़े के पहाड़ को बायोमाइनिंग प्रोजैक्ट के तहत खत्म करने की तैयारियां चल रही हैं। यह काम स्मार्ट सिटी के तहत होगा। डंप को खाली करवाने को लिए 41 करोड़ रुपए खर्च होंगे। 41 करोड़ रुपए खर्च कर भले ही वरियाणा डंप की जमीन खाली हो भी जाए लेकिन यह जमीन आगे किस काम आएगी इस बारे रिसर्च के बाद ही पता चल सकता है। फिलहाल इस कूड़े के पहाड़ से आसपास की जमीन और भूजल प्रदूषित होने आशंका है।

इस आशंका के निराकरण के लिए नगर निगम की तरफ से आई.आई.टी. रोपड़ से एनवायरमैंट स्टडी एनालिसिस करवाया जा रहा है। पिछले दिनों आई.आई.टी रोपड़ की टीम ने वरियाणा डंप का दौरा कर जांच के लिए सैंपल लिए थे। इससे पहले पंजाब पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड की तरफ से एन.आई.टी. से एनवायरमैंट स्टडी करवाने के लिए कहा गया था लेकिन एन.आई.टी. द्वारा संसाधनों की कमी का हवाला देकर इस पर अध्ययन से मना कर दिया गया था। इसके बाद कुछ प्राइवेट एजैंसियों ने इस पर स्टडी करने के लिए टैंडर भरा था लेनिक अंतत: स्टडी के लिए आई.आई.टी. रोपड़ का चुना गया। आई.आई.टी. रोपड़ की तरफ से इस अध्ययन के लिए नगर निगम से 27 लाख रुपए मांगे गए हैं। अध्ययन के बाद ही इस कूड़े के पहाड़ से आसपास की जमीन और भूजल के प्रदूषित होने बारे कुछ कहा जा सकता है।  

न बिजली बनेगी, न खाद अब डंप साफ करना ही एकमात्र रास्ता
नगर निगम की तरफ से करीब 20 वर्ष से वरियाणा डंप से कभी खाद बनाने तो कभी बिजली पैदा करने के दावे किए जाते रहे हैं लेकिन अब न तो इससे बिजली बनाई या रही है और न ही खाद, अब तो एकमात्र रास्ता बायोमाइनिंग के जरिए इस डंप के साफ करना ही बचा है। 
उल्लेखनीय है कि डंप के नजदीक जमीन पर सफेदे के पेड़ लगाने वाले एडवोकेट हरविंदर सिंह ने नैशनल ह्यूमन राइट कमिशन में शिकायत दी थी कि डंप के कारण उनके दर्जनों सफेदे के पेड़ सूख गए हैं। इसके लिए उन्होंने नगर निगम से मुआवजा मांगा था। इस पर कमिशन द्वारा निगम को नोटिस के जरिए 3 लाख रुपए मुआवजा देने को कहा गया था। इसके बाद ही वरियाणा डंप को लेकर एनवायरनमैंट स्टडी करवाए जाने का फैसला हुआ। हालांकि पंजाब का बागवानी विभाग अध्ययन उपरांत क्लीन चिट दे चुका है कि डंप के कारण ग्राउंड वाटर और मिट्टी को कोई नुकसान नहीं हुआ है। 

क्या कहते हैं विशेषज्ञ डा. जगतार सिंह धीमान?
वरियाणा डंप पर दशकों से आ रहे कूड़े और इस कूड़े के पहाड़ की मिट्टी कितनी उपयोगी हो सकती है। इस संबंध में पंजाब केसरी की तरफ से पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के पूर्व एडीशनल डायरैक्टर रिसर्च (नैचुरल रिसोर्स एंड प्लांट हैल्थ मैनेजमैंट) व वर्तमान में सी.टी. यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार डा. जगतार सिंह धीमान से बात की तो उनका मानना है कि कुदरती तौर पर डंप में दशकों से पड़े कूड़े की न तो खाद उपयोगी हो सकती है और न ही मिट्टी। उन्होंने तर्क दिया कि दशकों से जब नगर निगमों/कौंसिलों ने लैंडफिल में कूड़ा फैंकने शुरू किया तो उस समय इस बारे में सोचा नहीं गया कि इसके नुक्सान भी हो सकते हैं।

उन्होंने कहा कि शुरू में कूड़े को गड्ढे भरने के लिए फैंका जाने लगा था लेकिन धीरे-धीरे निगमों की तरफ से अपनी जमीनें खरीदकर वहां कूड़ा डंप किया जाने लगा। प्लास्टिक के उपयोग से पहले तक तो सब ठीक था लेकिन धीरे-धीरे कूड़े में प्लास्टिक लिफाफे और प्लास्टिक निर्मित अन्य सामान के साथ रबड़, कपड़े, टायर, मैटल आदि भी डंपों पर आने लगा। अब इस कूड़े में कौन-कौन से जहरीले कैमिकल मिल चुके हैं इसके बारे में कुछ भी सही नहीं कहा जा सकता है। जहां तक खाद की बात है तो शुरू में ही कूड़े की सैग्रीगेशन जरूरी है, जैसा कि नगर निगम की तरफ से अब प्रयास किए जा रहे हैं और कंपोस्ट पिट्स बनाए जा रहे हैं। इसके लिए लोगों को भी इसमें भागीदार बनना चाहिए। अब तक इस कूड़े में कौन-से कैमिकल मिक्स हो चुके हैं और उससे जमीन और भूजल को क्या नुक्सान हो सकता है उसके बारे में स्टडी के बाद ही कुछ कहा जा सकता है और स्टडी करवाया जाना जहां तक जमीन और भूजल के लिए आवश्यक है, वहीं मानवीय जीवन के भी हित में होगा। 
 

Tania pathak