केवल खादों की कमी से पीली नहीं होती गेहूं की फसल

punjabkesari.in Monday, Dec 23, 2019 - 09:20 AM (IST)

गुरदासपुर(हरमनप्रीत): तापमान में गिरावट आने सहित अन्य कई कारणों से गेहूं की फसल पीली पडऩी शुरू हो गई है।  इसलिए फसल के पीलेपन को दूर करने के लिए कई तरह की खादें और दवाओं का प्रयोग किया जा रहा है, जबकि फसल के पीले होने के असली कारणों से अधिकांश किसान अनजान हैं।खेती विशेषज्ञों अनुसार गेहूं के पीले होने के अनेक कारण हैं जिनमें से कई कारण तो मौसम की तबदीली से संबंधित हैं, जबकि कुछ कारण पोषक तत्वों की कमी से संबंधित होते हैं। किसान प्राय: यही समझते हैं कि गेहूं में यूरिया की कमी के कारण पीलापन आ गया है या फिर पीली कुंगी रोग का हमला है। इस कारण किसान या तो यूरिया खाद का धड़ाधड़ प्रयोग शुरू कर देते हैं या फिर वे पीली कुंगी रोग की रोकथाम हेतु कई अनावश्यक दवाएं छिड़कने लगते हैं जिससे किसानों पर फालतू आर्थिक बोझ पड़ता है। 

कीड़ों का हमला भी बनता है पीलेपन का कारण
खेती विशेषज्ञों के अनुसार गेहूं की फसल के पीले पडऩे के कई कारण हैं जिनमें मुख्य रूप से गेहूं के बीज की किस्म, बिजाई का ढंग, फसल में इस्तेमाल की गई खादों की मात्रा, खेत की मिट्टी की किस्म, मौसम का प्रभाव, खेत में नमी और सेम का प्रभाव आदि कारण शामिल हैं। इसी तरह कुछ बीमारियां और कीड़ों का हमला भी पीलेपन का कारण बनता है। इनमें से मौसम और पानी से संबंधित कारणों के चलते पीली हुई गेहूं की फसल तो मौसम में परिवर्तन के बाद अपने आप ठीक हो जाती है। उक्त समस्याओं के अलावा पराली को आग लगाए बिना हैप्पी सीडर से बीजी गई गेहूं के पौधे भी शुरुआती दौर में कई बार पीले पड़ जाते हैं। यह समस्या जल्द ठीक न होने पर पौधों की शाखाएं कम निकलती हैं और पौधे का कद छोटा रह जाता है। इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए एक एकड़ खेत में एक किलो यूरिया को 100 लीटर पानी में घोल कर छिड़का जा सकता है। 

खनिज की कमी भी कारण
रेतीली और खारेपन वाली जमीन में जिंक की कमी से पौधों का विस्तार रुक जाता है और पत्तों का कुछ हिस्सा बीचों-बीच पीला पडऩा शुरू हो कर टूट जाता है, जबकि मैगनीज की कमी से पौधों के बीच वाले पत्तों की नाडिय़ों के मध्य वाली जगह पर हलके पीले सलेटी रंग व गुलाबी, भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इस कमी को दूर करने के लिए 1 किलो मैगनीज सल्फेट 200 लीटर पानी प्रति एकड़ के अनुसार घोल की स्प्रे करनी चाहिए। इसी तरह यदि खेत में गंधक की कमी आ जाए तो गेहूं के नए पत्तों का रंग पीला पड़ जाता है, जबकि पौधों की पत्तों का रंग नोक को छोड़ कर हलका पीला पडऩा शुरू हो जाता है। ऐसी स्थिति में पौधों के निचले पत्ते लंबे समय तक हरे ही रहते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए 100 किलो जिप्सम प्रति एकड़ के हिसाब से डालना चाहिए। 

पीलेपन का बड़ा कारण है दीमक
दीमक भी गेहूं की फसल के पीलेपन का बड़ा कारण है। दीमक के हमले से पौधों का रंग ही पीला नहीं होता बल्कि इसके हमले से पौधे सूखने भी शुरू हो जाते हैं क्योंकि दीमक पौधों की जडें खा लेते हैं। चेपा और गुझियांभूंडी और भूरी जूं का हमला भी गेहूं की फसल का रंग बदल देता है। 

मौसम और पानी की समस्या
बंजर मिट्टी में बीजी गई फसल भी इस समस्या का शिकार हो जाती है। किसी इमारत या पेड़ की छाया में रहने वाली गेहूं की फसल पीली पड़ जाती है। यदि मौसम साफ न रहे और कई दिनों तक बदली रहे व धुंध-कोहरा पड़े तो भी गेहूं की फसल पीली पडऩी शुरू हो जाती है। यह समस्या मौसम साफ होने पर आसानी से ठीक हो जाती है। धुंध और कोहरे के दिनों में फसल को थोड़ा-सा पानी लगा कर ठंड की मार से बचाया जा सकता है। 

गंभीर समस्या है पीली कुंगी रोग
दिसम्बर के दूसरे पखवाड़े से जनवरी के आधे तक पीली कुंगी रोग के हमले की संभावना बढ़ जाती है। इससे बचाव के लिए गेहूं की उन किस्मों की ही काश्त करनी चाहिए जो इस बीमारी का मुकाबला कर सकती हैं। नीम पहाड़ी इलाकों में पी.बी.डब्ल्यू.-725, उन्नत पी.बी.डब्ल्यू. 550, पीबी डब्ल्यू-752 और पी.बी.डब्ल्यू.-660 आदि किस्मों की ही प्रयोग करना चाहिए। इन क्षेत्रों में गेहूं की अग्रिम बिजाई नहीं करनी चाहिए क्योंकि अग्रिम बिजाई से बीमारी के जल्दी शुरू होने की संभावना बढ़ जाती है। पीली कुंगी रोग के हमले से पत्तों पर हल्दी जैसे पीले रंग से भूरे रंग की धूड़ेदार धारियं पड़ जाती हैं और यदि बीमारी वाले पत्ते को हाथ से छुं तो पीला पाऊडर हाथों को लग जाता है। ऐसी समस्या से बचाव के लिए खेती विशेषज्ञों की सलाह लेकर टिलट 25 ई.सी.जे. बंपर 25 ई.सी.जे. शायन 25 ई.सी.जे. मारकजोल 25 ई.सी.जे. कंमके पास 25 ई.सी.जे. स्टिलट 25 ई.सी. (1 मिली लीटर एक लीटर पानी के हिसाब से) या नटीवो (0.6 ग्राम प्रति लीटर पानी) का छिड़काव किया जा सकता है। 

अधिक बारिश भी हानिकारक
खेत में पानी का निकास सही न होने व अधिक बारिश पडऩे की सूरत में नमी की मात्रा बढ़ जाती है तो भी फसल पीली पडऩी शुरू हो जाती है। पौधों के सभी पत्ते नोंक  से नीचे की ओर पीले पड़ जाते हैं और पौधे की वृद्धि रुक जाती है। 

swetha