87 वर्ष पहले शहीदी पाने वाले भगत सिंह आज भी जिंदा,पढ़ें उनके जीवन के कुछ अनसुने किस्से

punjabkesari.in Friday, Mar 23, 2018 - 09:45 AM (IST)

लुधियानाः 23 मार्च 1931 में शहीद भगत सिंह ने शहादत पाई। 87 साल पहले इसी दिन लाहौर में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी दी गई थी।    शहीदी पाने के बाद भी भगत सिंह लोगों में दिलों में जिंदा है।


एक समाचार पत्र के संवाददाता ने जब सरदार भगत सिंह के भांजे सरदार जगमोहन सिंह से बातचीत की तो उन्होंने भगत सिंह के जीवन से जुड़ी कई अनसुनी कहानियां बताईं। सरदार जगमोहन सिंह लुधियाना में रहते हैं। वह एक कॉलेज से कम्प्यूटर साइंस के प्रोफेसर पद से रिटायर्ड हुए हैं।


बहन के सीने पर रख दी थी जलती लालटेन
सरदार जगमोहन सिंह ने बताया "8 साल की उम्र में एक बार जब सरदार भगत सिंह अपनी छोटी बहन के साथ बैठ कर पढ़ाई कर रहे थे। उस दौरान भगत सिंह कोई किताब पढ़ रहे थे। उसी समय उत्सुकता से छोटी बहन ने उनकी किताब देखने की कोशिश की। इसी समय भगत सिंह ने अपनी 4 साल की बहन के सीने पर जलती लालटेन रख दी जिससे लालटेन से वह कई जगह झुलस गई। जैसी ही वह चिल्लाईं भागत सिंह ने बहन का मुंह बंद करते हुए कहा कि चिल्लाना नहीं मैं तो देखना चाहता था कि तुममे कितनी सहन शक्ति है। जब सहन शक्ति होगी तभी देशभक्ति की राह में आगे चल पाओगी। भगत सिंह से यह बात सुनकर छोटी बहन ने अपनी पीड़ा को सहते हुए चिल्लाना बंद कर दिया।

पेन चुभा कर पैर कर दिया था लहूलुहान
सरदार जगमोहन सिंह ने बताया "यह किस्सा तब का है जब मां (भगत सिंह की बहन) 10 साल की थीं। मामा भगत सिंह काफी गंभीरता से बैठे कुछ लिख रहे थे। उसी दौरान उनकी मां दौड़ती हुई आईं और उनकी कॉपी देखने लगीं। उन्होंने उसी पेन को मां के पैर में चुभा दिया। पैर से खून निकलने लगा और वो दर्द से चीख पड़ीं। फिर से मामा ने चुप कराते हुए कहा कि मैं तुम्हें पीड़ा नहीं दे रहा। बस यह देखना चाहता था कि दो साल बीतने के बाद तुम्हारी सहनशक्ति कितनी बढ़ी।"


मां से रही जीवन भर एक शिकायत
सरदार जगमोहन सिंह ने बताया, "भगत मामा बचपन से ही शारीरिक कसरत के बेहद शौकीन थे। वे लाहौर में हुई लट्ठबाजी प्रतियोगिता के चैम्पियन भी रहे। एक बार वो अपनी मां (मेरी नानी) के साथ तांगे से कहीं जा रहे थे। कुछ दूर चलने के बाद तांगा एक गड्ढे में पलट गया, जिससे मामा के सीने की दो पसलियां दब गईं। उसी किस्से की वजह से वे नानी से कहते रहते थे- मैं इतनी कसरत करता हूं, लेकिन मेरी सीना पूरा नहीं फूलता। आपकी वजह से मेरी दो पसलियां दब गईं। आप मुझे लेकर नहीं गई होतीं तो शायद मेरी पसलियां न दबतीं और मेरा सीना पूरा फूलता।"


अंग्रेजी सेना में थे भगत सिंह के चचेरे भाई
सरदार जगमोहन सिंह ने बताया, "भगत सिंह के ताऊ सरदार दिलबाग सिंह के बेटे अंग्रेजी सेना में थे। वे अक्सर घर आकर अंग्रेजों की तारीफ के पुल बांधते थे। उनके मुताबिक अंग्रेज इंसाफ पसंद थे। यह बात भगत सिंह को हैरान करती थी, क्योंकि उनके पिता और चाचा अंग्रेजो को निर्मम व क्रूर बताते थे। उनके दिल में यह जिज्ञासा हमेशा बनी रहती थी कि आखिर दोनों में सही कौन है?"


सच जानने पहुंच गए थे जलियांवाला बाग
जगमोहन सिंह बताते हैं, "1919 में हुए जलियांवाला बाग हत्याकांड के वक्त भगत सिंह 12 साल के थे। घटना का पता चलते ही वे घर से बिना किसी को बताए जलियांवाला बाग पहुंच गए। वहां उन्होंने खून से सनी मिट्टी को एक शीशी में भरा और वापस आ गए। उन्होंने अपनी छोटी बहन यानी मेरी मां अम्बर कौर को वो मिट्टी दिखाई और बोले कि देखो ताऊजी व बड़े भैया कितना झूठ बोलते हैं। खून से सनी ये मिट्टी अंग्रेजों की क्रूरता का उदाहरण है।"


एक दिन के थानेदार बने थे भगत सिंह के पिता
सरदार जगमोहन सिंह बताते हैं, "हमारे नाना (भगत सिंह के पिता) सरदार किशन सिंह को भी अंग्रेजी सेना में थानेदार की नौकरी मिली थी। पहले दिन ही वे नौकरी पर गए और उनके थाने में एक हत्या का मुकदमा आया। एक विधवा महिला के बेटे का मर्डर हुआ था। महिला अपने सारे जेवर लेकर थाने पहुंची और नाना के पैरों पर गिरकर बोली- साहब सारे जेवर ले लो, लेकिन इंसाफ दिलवाओ। वे कुछ बोल पाते उससे पहले ही दूसरा पक्ष भी थाने पहुंच गया और ढेर सारे सोने के सिक्के देने के एवज में मदद की मांग करने लगा। इस घटना ने उन्हें इतना झकझोर दिया कि उन्होंने उसी दिन नौकरी छोड़ दी।"

 

लोगों को बचाते-बचाते गल गया था पैर
जगमोहन सिंह बताते हैं, "भगत सिंह तैराकी और नौका चलाने के बेहद शौकीन थे। वे कितने भी गहरे पानी में बांस के सहारे चल सकते थे। 1926 में कानपुर में भीषण बाढ़ आई। तब उन्होंने ने बीके दत्त के साथ मिलकर बाढ़ पीड़ितों को बचाने के लिए काफी दिनों तक कम किया था। मेरी मां बताती थीं कि लौटते वक्त उनके पैर का निचला भाग लगातार पानी में रहने के कारण गल गया था।"

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