किसानों के मुद्दे पर आखिर क्यों लिया केंद्र ने बैकफुट

punjabkesari.in Saturday, Nov 20, 2021 - 12:37 PM (IST)

जालंधर: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुपर्व के शुभ अवसर पर देश के लोगों को जब संबोधित करना शुरू किया तो लोगों को लगा था कि शायद प्रधानमंत्री सिर्फ देश को इस पावन अवसर की बधाई देंगे और कुछ इधर-उधर की बातें कर लोगों को अपना संदेश देने की कोशिश करेंगे। लेकिन प्रधानमंत्री ने तीन कृषि बिलों को रद्द करने का ऐलान किया। यह सारा कुछ एकाएक ही नहीं हुआ, बल्कि इसके लिए पिछले करीब एक साल से काम चल रहा था। प्रधानमंत्री के इस ऐलान के बाद सवाल उठ रहे हैं कि आखिर केंद्र को इतने बड़े मसले को लेकर बैकफुट पर क्यों आना पड़ा?

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चर्चा है कि पिछले कुछ समय में कुछ राज्यों में उपचुनाव हुए हैं, जिसके रिजल्ट ने केंद्र की भाजपा सरकार को सोचने पर मजबूर कर दिया है। हरियाणा में जहां भाजपा की अपनी सरकार है जहां ऐलनाबाद सीट पर भाजपा को शिकस्त मिली। यही हालात देव भूमि हिमाचल में भी देखने को मिले, जहां पर पार्टी 4 सीटें हार गई। हिमाचल में एक लोकसभा सीट मंडी तथा 3 विधानसभा सीटों पर चुनाव हुए थे। राज्य के मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर पर कोई भी रिश्वत या किसी तरह का दाग नहीं है, लेकिन इसके बाद भी भाजपा वहां पर जीत नहीं सकी। एक सीट पर तो जमानत ही जब्त हो गई। केंद्रीय मंत्री खुद जाकर वहां पर प्रचार करते रहे और यह हार भाजपा के लिए एक बड़ी खतरे की घंटी थी। इस हार को देखते हुए ही शायद केंद्र को लगा कि बेवजह मामले को और उलझाने से अच्छा है कि इसे खत्म कर दिया जाए।

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लखीमपुर खीरी ने भी खोली आंखें 
केंद्र की मोदी सरकार को लगता था कि जो भी किसानों से जुड़े इन कानूनों का विरोध हैं, वह पंजाब तक ही सीमित है, लेकिन उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी में हुई घटना के बाद जिस तरह से किसान उत्तर प्रदेश में एक्टिव हुए, वह भी भाजपा के लिए बड़ी खतरे की घंटी थी। लखीमपुर खीरी की घटना के बाद भी जिस मंत्री के बेटे पर आरोप लगे हैं, वह आज भी राज्य की योगी सरकार के मंत्रिमंडल का हिस्सा है। अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट संज्ञान हाल ही में उत्तर प्रदेश में पूर्वाचल एक्सप्रेस वे का उद्घाटन भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने किया। इस दौरान फाइटर विमान ने एक्सप्रेस-वे की एमरजैंसी लैंडिंग स्पेस को भी हुआ, लेकिन इस कार्यक्रम के कुछ देर बाद ही अखिलेश यादव ने वहां शक्ति प्रदर्शन कर भाजपा को बड़ी चुनौती देने की कोशिश की। दरअसल उत्तर प्रदेश में दलित वोट बैंक पूरी तरह से बिखरा हुआ है, जिसे समेटने के लिए अब विपक्षी लोग एक्टिव हो गए हैं। लेकिन लखीमपुर खीरी के मामले में जिस तरह से किसान एक्टिव हुआ, तो उसने भाजपा की नींद उड़ा दी। शायद यही कारण रहा कि डेढ़ साल से जिन किसान बिलों पर केंद्र अड़ा हुआ था, उन्हें एकाएक खत्म करने का ऐलान कर दिया।

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News Editor

Kalash

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