एक सियासी चाल से कांग्रेस ने दे डाली सबको पटखनी, लेकिन पिक्चर अभी बाकी है...मेरे दोस्त

punjabkesari.in Tuesday, Sep 21, 2021 - 11:22 AM (IST)

चंडीगढ़ (विशेष): कांग्रेस हाईकमान ने पंजाब में चरणजीत सिंह चन्नी को मुख्यमंत्री बनाकर अपने पारंपरिक वोट बैंक यानी कि दलित वोट को एकजुट करने की सियासी चाल चली है। हालांकि पहली नजर में देखने में यह लग रहा है कि पंजाब में दलित राजनीति पर दाव लगाने की तैयार कर रही भाजपा, आम आदमी पार्टी और अकाली दल को कांग्रेस ने अपने इस कदम के साथ पटखनी दे दी है। लेकिन यदि पंजाब की दलित आबादी और सीटों की संख्या का विश्लेषण किया जाए तो कांग्रेस के लिए आगामी विधानसभा चुनाव में सिर्फ इसी मुद्दे पर वोट बटोरना के लिए अभी और दांव खेलने होंगे। 

पंजाब में दलितों की आबादी 31.94 प्रतिशत है और राज्य की विधानसभा में दलित सीटों की संख्या 34 है। पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने इनमें से 21 सीटों (करीब 60 प्रतिशत) पर जीत हासिल की थी और दलित सीटों पर भारी समर्थन मिलने के साथ साथ कांग्रेस को हिन्दुओं और जाट सिखों का भी भारी समर्थन हासिल हुआ था लेकिन दलित को मुख्यमंत्री बनाए जाने के बाद कांग्रेस का जाट सिख वोट सरक सकता है क्योंकि पंजाब में अब तक 20 प्रतिशत की आबादी वाले जाट सिख समुदाय का व्यक्ति ही मुख्यमंत्री बनता आया है। 

इस लिहाज से कांग्रेस के लिए यह कदम जोखिम भरा भी हो सकता है लेकिन यदि चन्नी के चेहरे के नाम पर दलित आबादी ध्रुवीकरण हुआ तो कांग्रेस 34 एस.सी. सीटों पर अच्छा प्रदर्शन कर सकती है। हालांकि दलित समुदाय के भीतर भी पंजाब में 37 जातियां हैं और सभी जातियों को एक साथ साधना कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगी। चरणजीत चन्नी रविदासिया समुदाय से आते हैं और राज्य की दलित आबादी इस समुदाय की संख्या 26.2 प्रतिशत है। जबकि पंजाब में दलितों की सबसे बड़ी आबादी मजहबी भाईचारे की है और यह कुल दलित आबादी में 31.6 प्रतिशत की भागेदारी रखते हैं। इसके अलावा आधर्मी आबादी 14.9 प्रतिशत और वाल्मीकि आबादी 11.3 प्रतिशत है।

कांग्रेस को दलित सीटों पर बेहतरीन प्रदर्शन के लिए इन जातियों के बीच संतुलन साधना होगा क्योंकि दलित आबादी का मुख्य तौर पर प्रतिनिधित्व करने वाले वाल्मीकि समुदाय और रविदासिया समुदाय के मध्य सत्ता संघर्ष नई बात नहीं हैं। अकाली-बसपा गठजोड़ से दलित वोट में सेंध लगाने की रणनीति अकाली दल ने दलित वोटों को अपनी तरफ खींचने के लिए न सिर्फ दलित डिप्टी सी.एम.बनाए जाने की घोषणा की हुई है, बल्कि बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करके दलितों को एकजुट करने की कोशिश भी की है। 2017 के विधानसभा चुनावों के दौरान हालांकि बहुजन समाज पार्टी का वोट प्रतिशत 1.52 प्रतिशत ही रहा था लेकिन दोआबा की कुछ सीटों पर बसपा का अभी भी अच्छा प्रभाव है और फिल्लौर व फगवाड़ा सीटों पर बसपा के उम्मीदवारों ने अच्छा प्रदर्शन किया था। अकाली दल ने अपने पास रखी सीटों पर भी दलित भाईचारे के प्रभावशाली लोगों को टिकट देने की रणनीति बनाई है।

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Content Writer

Tania pathak

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