श्रीराम नवमी का दिन केवल पूजन का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का है : श्री अनंतगुरु ॐ वरुण अंतःकरण

punjabkesari.in Sunday, Apr 06, 2025 - 07:37 PM (IST)

जालंधर : राम नवमी केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा के जागरण, संयम, और सच्चे धर्म की पुनः स्मृति का पर्व है। यह वह दिन है, जब त्रेता युग में भगवान श्रीराम ने मानव रूप में जन्म लिया, परंतु उनका आगमन केवल राक्षसों के विनाश के लिए नहीं था — वे आए थे हमें अपने भीतर की सीमाओं को पहचानने और उन्हें पार करने की प्रेरणा देने।

मर्यादा पुरुषोत्तम — जीवन के मार्गदर्शक 
भगवान श्रीराम का सम्पूर्ण जीवन एक आदर्श है — एक पुत्र का, एक राजा का, एक शिष्य का और सबसे बड़ा एक मनुष्य का। उन्होंने हर संबंध में मर्यादा को निभाया, हर परिस्थिति में धर्म को चुना और हर संघर्ष में धैर्य को अपनाया। पिता के आदेश पर राजतिलक के समय राज्य त्यागना हो, सुग्रीव से  बलशाली होते हुए भी बाली का अधर्मी कृत्य ध्यान में रखते सुग्रीव का साथ देना, मदद मांगने से पहले मदद करना, मदद करने के बाद भी मदद मिलने का धैर्य से इंतेज़ार करना, समुद्र सुखाने तो ताकत होते हुए भी समुद्र से तीन दिवस तक निवेदन करना। रावण को परम ब्राह्मण जान उसे ही हरण की पूजा में उसे पुरोहित बुलाना, लंका जितने से पहले ही रावण के भाई का राज तिलक कर लंका पर अधीनता नहीं करने का संकल्प लेना, आक्रमण से पहले संधि प्रस्ताव देना, प्रजा की रक्षा के लिए युद्ध के बीच भी समर्पण का अवसर देना, जीत के बाद लक्ष्मण जी को रावण के ज्ञान का आदर करते हुए उससे ज्ञान प्राप्ति के लिए भेजना, घर वापिस आते ही कौशल्या नंदन का प्रथम माता कैकई से मिलना, हर पग पर श्री राम ने मर्यादा, धर्म, धैर्य, स्थिरता, शांति, ज़िम्मेदारी, पारिवारिक एकता और कर्तव्य पालन का ज्ञान दिया है। इस ज्ञान सूत्र को जीवन में उतारने अनिवार्य है।

श्री अनंतगुरु ॐ वरुण अंतःकरण जी कहते हैं,  कि "राम हमारे भीतर छिपी उस चेतना का नाम है, जो हर क्षण हमें सही राह पर चलने की प्रेरणा देती है। राम को बाहर मत खोजो, उन्हें अपने आचरण में लाओ।"

आधुनिक युग में श्रीराम की प्रासंगिकता
आज की पीढ़ी, जो तकनीक, भौतिकता और तात्कालिक सुख की दौड़ में आत्म-संवाद खो रही है, उसके लिए श्रीराम का जीवन एक जीवंत उदाहरण है कि कैसे कर्म करते हुए भी आत्मशांति और उद्देश्यपूर्ण जीवन जिया जा सकता है।  उनकी स्थिरता, निर्णय लेने की क्षमता, सहनशीलता और हर परिस्थिति में करुणा की भावना — यही आज के युवाओं को चाहिए।

श्रीराम नवमी का दिन केवल पूजन का नहीं, बल्कि आत्मचिंतन का है। क्या हम अपने भीतर के रावण — क्रोध, लोभ, अहंकार — को पहचान पाए हैं? क्या हम अपने जीवन में रामत्व को जागृत कर पाए हैं?

गुरुजी कहते हैं,  कि "हर मनुष्य के भीतर एक अयोध्या है, जहाँ राम बस सकते हैं — आवश्यकता है उसे निर्मल और सत्पथ पर लाने की। श्री राम नवमी मनाना तभी सार्थक है जब श्री राम हमारे हृदय में जन्म लें।"

उपसंहार
राम नवमी हमें याद दिलाती है कि धर्म कोई ग्रंथ नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक कला है — जो श्रीराम ने हमें अपने जीवन से सिखाई। आइए इस पावन अवसर पर हम भी संकल्प लें कि हम अपने जीवन में श्रीराम के आदर्शों को अपनाकर इस धरती को प्रेम, संयम और सद्भाव से भर देंगे।


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Content Editor

Subhash Kapoor

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