राहुल की राह पर सुखबीर: विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़वाने को लेकर अकाली दल की तौबा

punjabkesari.in Thursday, Feb 21, 2019 - 12:23 PM (IST)

लुधियाना(हितेश): एक तरफ  जहां विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़वाने को लेकर कांग्रेस में असमंजस का माहौल बना है, वहीं अकाली दल ने विधायकों पर दाव लगाने की योजना से तौबा कर ली है। यहां बताना उचित होगा कि लोकसभा चुनाव में टिकट देने के लिए कांग्रेस द्वारा जो आवेदन लेने का फार्मूला अपनाया गया है जिससे मौजूदा सांसदों के अलावा कई मजबूत उम्मीदवारों को चुनौती मिल गई है।
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यहां तक कि कई जगह विधायकों ने लोकसभा चुनाव के लिए दावेदारी पेश कर दी है। हालांकि कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने उप-चुनाव के झंझट से बचने के लिए विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़वाने से परहेज करने की सलाह दी है लेकिन कैप्टन अमरेन्द्र सिंह की सिफारिश पर स्टेट इलैक्शन कमेटी की बैठक में जीतने की क्षमता रखने वाले विधायकों को टिकट देने पर विचार करने का प्रस्ताव पास कर दिया गया है।उधर, अकाली दल द्वारा लोकसभा चुनाव में टिकट देने के लिए आवेदन मांगने की जगह अपने अंदरूनी सिस्टम के जरिए ही उम्मीदवारों की स्क्रीनिंग की जा रही है, जिनमें से बठिंडा में हरसिमरत बादल व आनंदपुर साहिब से प्रेम सिंह चंदूमाजरा को दोबारा चुनाव लडऩे की हरी झंडी मिल चुकी है। फिरोजपुर से शेर सिंह घूबाया व खडूर साहिब से एम.पी. रत्न सिंह अजनाला ने अकाली दल के खिलाफ  बगावत का झंडा बुलंद कर दिया है और पटियाला से पिछला चुनाव लडऩे वाले जनरल जे.जे. सिंह ने अकाली दल का साथ छोड़ दिया है।
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इसी तरह संगरूर से पूर्व एम.पी. सुखदेव सिंह ढिंडसा और उनके बेटे परमिन्द्र सिंह ढिंडसा ने लोकसभा चुनाव लडऩे से इंकार कर दिया है। यही बात पिछले चुनाव में लुधियाना से उम्मीदवार रहे मनप्रीत सिंह अयाली बारे भी सुनने को मिल रही है।अब अकाली दल द्वारा 8 सीटों पर नए चेहरों की तलाश की जा रही है, जिनमें पटियाला से सुरजीत सिंह रखड़ा व फरीदकोट से कांग्रेस के पूर्व विधायक जोगिन्द्र सिंह को टिकट मिलने की सबसे ज्यादा सम्भावना है लेकिन कई जगह मौजूदा विधायकों के नाम भी शामिल हैं, जिनमें से पवन टीनू ने पिछली बार जालंधर से चुनाव लड़ा था और साहनेवाल के विधायक शरणजीत ढिल्लों पहले लुधियाना के एम.पी. भी रह चुके हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक राहुल गांधी की तरह सुखबीर बादल ने भी जीत की सूरत में उप-चुनाव के झंझट से बचने के लिए विधायकों को लोकसभा चुनाव लड़वाने से तौबा कर ली है। इसकी एक वजह यह भी है कि पंजाब में अभी 3 साल कांग्रेस की सरकार है और उप-चुनाव में ज्यादातर सत्ताधारी पार्टी की ही जीत होती है, जबकि अकाली दल के पास पहले ही सिर्फ  14 विधायक हैं।


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