निर्भया: जेलों में सजा काट रहे हैं 10,892 बलात्कारी, अदालतों में लाखों केस हैं विचाराधीन

punjabkesari.in Tuesday, Jan 07, 2020 - 06:01 PM (IST)

जालंधर (सूरज ठाकुर): रेप के अभियुक्तों को जेल होने पर किसी भी पीड़िता के परिजनों को कितना सुकून मिलता है इसका अंदाजा लगाना तो मुश्किल है, लेकिन निर्भया के आरोपियों को फांसी की सजा के निर्णय से इस तरह का जघन्य अपराध करने से पहले अपराधी सौ बार जरूर सोचेंगे। 

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अदालतों में लाखों रेप के केस विचाराधीन
देश में भारतीय संविधान की धारा के तहत सजा काट रहे एक लाख से ज्यादा कैदियों में 10,892 बलात्कारी हैं। अदालतों में रेप के लाखों केस विचाराधीन हो सकते हैं क्योंकि नैशनल क्राइम ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) का 2017 तक का महिला अपराध का आंकड़ा साढ़े 3 लाख पार कर चुका है। विडंबना तो यह है कि महंगाई, बेरोजगारी, कानून और अर्थव्यवस्था की बेहाली के बीच आम जनता एक समय में एक ही मुद्दे पर ध्यान देती है। बाकी मुद्दों पर सियासतदान पर्दा नहीं बल्कि कफन डालने का प्रयास करते हैं।

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किस जुर्म में कितने बंद
एन.सी.आर.बी. के आंकड़ों के मुताबिक 2017 तक आई.पी.सी. के तहत 1 लाख 21 हजार 997 कैदी जेलों में सजा काट रहे हैं। इनमें सबसे ज्यादा 84 फीसदी (102535) मामले मानव शरीर को नुक्सान पहुंचाने और कत्ल के हैं। ऐसे मामलों में सिर्फ  कत्ल के मामलों की संख्या 68.4 फीसदी यानि 70,170 है। अब रेप के मामलों की बात की जाए तो 10.6 फीसदी (10,892) बलात्कारी जेलों में सजा काट रहे हैं। दहेज उत्पीडन के मामलों में 29.7 फीसदी (5,448) सजा काट रहे हैं। ये आंकड़े 31 दिसम्बर 2017 तक के हैं। यहां सिर्फ उन मामलों की बात हो रही है जिनमें अपराधियों को सजा हो चुकी है।

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महिला अपराधों का बढ़ रहा ग्राफ
देश में महिलाओं की हर क्षेत्र में जहां भागीदारी बढ़ती जा रही है वहीं सरकारें इनके प्रति बढ़ते हुए अपराधों को लेकर गंभीर नहीं दिखाई पड़ती हैं। बीते माह एन.सी.आर.बी. की पब्लिक डोमेन पर डाली गई रिपोर्ट के मुताबिक भी देश की महिलाओं की स्थिति कुछ अच्छी नहीं है। महिलाओं के प्रति अपराध कम नहीं हो रहे हैं बल्कि बढ़ते जा रहे हैं। एन.सी.आर.बी. की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक साल 2017 में 50 लाख 07 हजार 44 मामले दर्ज किए गए हैं जिनमें से 3 लाख 59 हजार 849 मामले महिलाओं के खिलाफ  अपराध संबंधी हैं। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि साल 2015 में महिलाओं के प्रति अपराध के 3 लाख 29 हजार 243 मामले दर्ज किए गए। 2016 में यह आंकड़ा में 3 लाख 38 हजार 954 तक पहुंच गया था।

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आंकड़ों के मकडजाल में सरकार
थॉमसन रायटर्स फाऊंडेशन ने 2018 में एक जनमत सर्वेक्षण किया था जिसमें कहा गया था कि भारत महिलाओं के लिए सबसे खतरनाक देश है। यह घोषणा किसी रिपोर्ट या आंकड़ों पर नहीं बल्कि एक जनमत सर्वेक्षण पर आधारित है। इस संस्था के दावे को भारत सरकार ने सिरे से खारिज कर दिया था। सरकार महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने रैंकिंग को एक अवधारणा बताया था। यह मात्र 6 प्रश्नों के जवाब पर आधारित है।  इसके अतिरिक्त इस सर्वेक्षण में मात्र 548 लोगों को शामिल किया गया है। रायटर्स के अनुसार ये व्यक्ति महिला संबंधी मामलों के विशेषज्ञ हैं। यहां इस बात से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है कि महिलाएं देश में कितनी सुरक्षित हैं। यह बताना भी जरूरी है कि 2015-16 में कराए गए राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-4 में इस बात का उल्लेख किया गया है कि भारत में 15.49 आयु वर्ग की 30 फीसदी महिलाओं को 15 साल की आयु से ही शारीरिक हिंसा का सामना करना पड़ता है।

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