पंजाब में विज्ञापन माफिया हावी, Advertisement Policy को किया हाईजैक
punjabkesari.in Thursday, Dec 04, 2025 - 12:02 PM (IST)
जालंधर (खुराना): पंजाब के शहरों में विज्ञापन माफिया पिछले कई वर्षों से हावी है। सरकारी रैवेन्यू को भारी चपत लगाकर प्राइवेट जेबें भरने का यह खेल लगातार जारी है। इस समस्या को खत्म करने के उद्देश्य से 2017 में कांग्रेस सरकार बनने के बाद उस समय के लोकल बॉडीज मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू ने 2018 में एक नई एडवर्टाइजमैंट पॉलिसी तैयार की थी, जिसे पूरे राज्य में लागू भी कर दिया गया। सिद्धू ने दावा किया था कि इस पॉलिसी से पंजाब में कई सौ करोड़ रुपए अतिरिक्त रेवेन्यू आएगा और विज्ञापन माफिया की कमर टूट जाएगी।
लेकिन, आज इस पॉलिसी को लागू हुए पूरे 7 साल हो चुके हैं, और पंजाब का कोई भी शहर सिद्धू के दावों के आसपास भी नहीं पहुंच पाया। आंकड़े और वर्तमान स्थिति यह साफ संकेत दे रहे हैं कि पंजाब में हावी विज्ञापन माफिया ने इस पॉलिसी को पूरी तरह हाईजैक कर लिया है और इसे वास्तविक अर्थों में लागू ही नहीं होने दिया गया। जानकारी के अनुसार पॉलिसी के बाद उम्मीद थी कि शहरों में विज्ञापन स्थलों की ई-नीलामी, पारदर्शी सिस्टम और सख्त नियमों के चलते रेवेन्यू में भारी बढ़ौतरी होगी, लेकिन जमीनी हालात बिल्कुल उलट रहे। पंजाब के अधिकांश शहरों में विज्ञापनबाजी पर माफिया का कब्जा पहले से ज्यादा मजबूत हो गया है और पॉलिसी केवल कागज़ी ईमानदारी तक सीमित होकर रह गई।
ख़ास बात यह भी है कि पंजाब की विज्ञापन पॉलिसी पर हमेशा से राजनीतिक सेट-अप हावी रहा है। कोई भी पार्टी सत्ता में आई हो, उसके कुछ चुनिंदा नेताओं ने विज्ञापनबाजी की आड़ में पैसा कमाने और माफिया को संरक्षण देने में कोई कसर नहीं छोड़ी। यही कारण है कि सिद्धांतों पर आधारित 2018 की यह पॉलिसी कभी भी सही ढंग से लागू नहीं हो सकी और रेवेन्यू बढ़ाने का सपना आज भी अधूरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक विज्ञापन माफिया और राजनीतिक हितों के गठजोड़ को तोड़ा नहीं जाता, तब तक न तो पॉलिसी में सुधार होगा और न ही शहरों को इसका आर्थिक लाभ मिल सकेगा। पंजाब के शहर आज भी उसी पुरानी व्यवस्था में फंसे हुए हैं, जहां सरकारी खजाना खाली और माफिया की जेबें भरी रहती हैं।
जालंधर नगर निगम साबित हुआ सबसे फिसड्डी
2018 की विज्ञापन पॉलिसी लागू करने में अब तक नहीं मिली सफलता, 100 करोड़ के रैवेन्यू का हुआ नुकसान
पंजाब सरकार द्वारा वर्ष 2018 में बनाई गई एडवर्टाइजमेंट पॉलिसी को लागू करने के मामले में जालंधर नगर निगम पूरे राज्य में सबसे फिसड्डी साबित हुआ है। शहर की आर्थिक और कारोबारी क्षमता पंजाब में सबसे मजबूत मानी जाती है, लेकिन इसके बावजूद निगम आज तक शहर के विज्ञापनों का एक भी टैंडर सफलतापूर्वक अलॉट नहीं कर सका। सूत्रों के अनुसार पिछले कई वर्षों में जालंधर में विज्ञापन टेंडरों की कीमतें 10 करोड़ से लेकर 18 करोड़ रुपए तक रखी गईं, लेकिन हैरानी की बात यह है कि इन टैंडरों में से एक भी सफल नहीं हो पाया। हालात यह हैं कि ऐसे टैंडर करीब 15 बार लगाए जा चुके हैं। जब एक बार करीब 10 करोड़ रुपए का टैंडर सफल होने की स्थिति में पहुंचा, तब निगम अधिकारियों ने उसमें तकनीकी खामी निकालकर उसे भी लागू नहीं होने दिया।
जानकारों का कहना है कि टैंडर अलॉट न होने के कारण जालंधर निगम अब तक सरकार को करीब 100 करोड़ रुपए का रैवेन्यू नुकसान करा चुका है, लेकिन इसके बावजूद किसी भी अधिकारी या कर्मचारी को इस घोर लापरवाही के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया गया। यह स्थिति न केवल प्रशासनिक उदासीनता को दर्शाती है, बल्कि पंजाब की अफसरशाही की कार्यशैली पर भी गंभीर सवाल खड़े करती है। इन दिनों जालंधर निगम ने एक बार फिर 13.50 करोड़ रुपए का नया टैंडर जारी किया है, लेकिन इसकी सफलता को लेकर भी गहरी शंकाएं हैं। टैंडरों में रुचि रखने वाली विभिन्न कंपनियों के प्रतिनिधियों का कहना है कि जालंधर में जबरन धार्मिक और अन्य राजनीतिक होर्डिंग लगाने का प्रचलन ठेकेदारों के लिए भारी नुकसानदायक साबित होता है। उनका कहना है कि इस नुकसान की भरपाई कोई सरकारी अधिकारी नहीं करता, जिसके कारण कंपनियां टैंडर लेने में रुचि नहीं दिखा रही हैं।
स्थिति यह है कि सात साल बाद भी जालंधर नगर निगम विज्ञापन पॉलिसी को प्रभावी तरीके से लागू नहीं कर पाया है। विशेषज्ञों का मानना है कि जब तक माफिया को धूल चटाने में प्रशासनिक इच्छाशक्ति मजबूत नहीं होगी और अधिकारियों को जवाबदेह नहीं बनाया जाएगा, तब तक शहर करोड़ों के सरकारी राजस्व से यूँ ही वंचित होता रहेगा।
लुधियाना से रैवेन्यू तो आया, पर उम्मीद से बेहद कम
एडवर्टाइजमैंट पॉलिसी की आड़ में वर्षों से चलता रहा खेल, अब अगले 2 साल का टैंडर भी देने की तैयारी
पंजाब की एडवर्टाइजमैंट पॉलिसी के तहत लुधियाना नगर निगम भले ही कुछ रैवेन्यू जुटाने में सफल रहा हो, लेकिन यह आय उम्मीद से काफी कम साबित हुई है। लंबे समय से यहां भी विज्ञापन पॉलिसी की आड़ में खेल जारी है और निगम को भारी नुकसान उठाना पड़ रहा है। जानकारी के अनुसार, 2018 में लागू हुई पॉलिसी के तहत सबसे पहला विज्ञापन टैंडर लुधियाना में ही अलॉट हुआ था, जिसे नई कंपनी लीफबेरी एडवर्टाइजमैंट ने करीब 23 करोड़ रुपए में हासिल किया। टैंडर जारी होने के तुरंत बाद एक आर.टी.आई. एक्टिविस्ट ने फ्लाईओवरों के पिलर्स पर लगे विज्ञापनों पर एतराज जताया, जिसके चलते ऐसे विज्ञापनों को पॉलिसी के तहत हटाना पड़ा और टैंडर राशि घटकर 22 करोड़ रुपए रह गई।
इसके बाद असली खेल तब शुरू हुआ जब कोविड काल आ गया। कारोबार ठप होने के कारण टेंडर धारक ठेकेदार ने घाटे का हवाला दिया, जो परिस्थितियों के अनुसार उचित भी था। सरकार ने राहत देते हुए ऑफर दिया कि अगर ठेकेदार कुल मीडिया का आधा हिस्सा छोड़ दे, तो टैंडर भी आधे मूल्य पर माना जाएगा। सूत्रों के मुताबिक, ठेकेदार ने हर मीडिया का आधा हिस्सा छोड़ने की बजाय केवल वही मीडिया छोड़ी, जिससे कम मुनाफा होता था, जैसे पोल कियोस्क, यूटिलिटी, बेंच आदि। इस तरह टेंडर राशि घटकर 11 करोड़ रुपए रह गई।
कोविड बीत जाने और कामकाज सामान्य हो जाने के बाद भी सरकारी सिस्टम की लापरवाही साफ दिखी। ठेकेदार द्वारा छोड़े गए मीडिया का पूरा टैंडर एक साथ निकालने की बजाय उसे टुकड़ों में बांटकर जारी किया गया। बस शेल्टर का टैंडर भी करीब दो साल पहले इसी कंपनी ने ही ले लिया। वर्तमान स्थिति की बात करें तो लुधियाना जैसे बड़े शहर में विज्ञापनों से नगर निगम को महज 15–16 करोड़ रुपए का रैवेन्यू मिल रहा है, जबकि इसकी वास्तविक क्षमता 25 करोड़ रुपए से अधिक आंकी जाती है। इसके विपरीत, अब यह बात सामने आ रही है कि नगर निगम के कुछ अधिकारी राजनीतिक दबाव में आकर अगले दो साल के लिए भी इसी कंपनी को टैंडर अलॉट करने की तैयारी में हैं।
इस पूरे प्रकरण को लेकर निगम अधिकारियों को कई पत्र भी प्राप्त हुए हैं, जिनमें स्पष्ट मांग की गई है कि फ्रेश टैंडर जारी किया जाए जो बाजार मूल्य के अनुसार 25 करोड़ रुपए से भी अधिक में जाएगा। यह चेतावनी भी दी गई है कि यदि मौजूदा कंपनी को दो और साल के लिए विज्ञापन का ठेका दे दिया गया तो लुधियाना नगर निगम को केवल दो वर्षों में ही लगभग 20 करोड़ रुपए का सीधा नुकसान उठाना पड़ेगा। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि पारदर्शिता और प्रतिस्पर्धा सुनिश्चित न की गई तो लुधियाना नगर निगम आने वाले वर्षों में भी ठीक वही गलती दोहराएगा, जिसका खामियाजा सरकारी खजाना ही भुगतेगा।
अमृतसर निगम का विज्ञापन रेवेन्यू, कुछ साल घाटे के बाद अब पटरी पर
अमृतसर नगर निगम की बात करें तो यहां भी विज्ञापन पॉलिसी के दावों के अनुरूप रेवेन्यू प्राप्त नहीं हो सका। अमृतसर नगर निगम के अधिकारियों ने पहला टैंडर 25 करोड़ रुपए का लगाया था, लेकिन वह सिरे नहीं चढ़ा। लगातार तीन साल तक यह टेंडर किसी भी कंपनी ने नहीं भरा, जिससे निगम को भारी नुकसान झेलना पड़ा।
वर्ष 2021 में क्रिएटिव ओएच ने इस टेंडर को 12 करोड़ रुपये में उठाया और वर्तमान समय में अमृतसर नगर निगम को एडवर्टाइजमैंट टैंडर से करीब 13.50 करोड़ रुपए की आमदनी हो रही है। पंजाब के बाकी शहरों की तुलना में अमृतसर नगर निगम जहां कुछ बेहतर प्रदर्शन कर रहा है, वहीं लगातार 3 साल तक टैंडर सिरे न चढ़ना निगम के लिए नुकसानदायक साबित हुआ।
इस बीच नगर निगम अधिकारियों का कहना है कि अमृतसर एक बॉर्डर स्टेट है। यहां लुधियाना और जालंधर के मुकाबले इंडस्ट्री भी काफी कम है। हाल ही में आई बाढ़ का सर्वाधिक नुकसान भी जिला अमृतसर को ही उठाना पड़ा। कुछ महीने पहले भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध जैसी स्थिति बनने पर भी सबसे ज़्यादा प्रभाव अमृतसर क्षेत्र पर ही पड़ा। ऐसी परिस्थितियों में कई कॉरपोरेट कंपनियों ने अमृतसर में अपने अभियान और लॉन्चिंग इत्यादि स्थगित कर दिए। इन सब चुनौतियों के बावजूद अमृतसर नगर निगम विज्ञापनों से अच्छी कमाई कर रहा है और मौजूदा परिस्थितियों में रेवेन्यू में सुधार निगम के लिए राहत भरी खबर है।
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