सिद्धू मूसेवाला की हत्या के बाद बैकफुट पर ''आप'' सरकार, लोकसभा उपचुनाव में पड़ेगा ये असर

punjabkesari.in Friday, Jun 03, 2022 - 08:59 PM (IST)

पठानकोट (शारदा): 23 जून को संगरूर लोकसभा चुनाव को लेकर राज्य में राजनीतिक गतिविधियां बढऩा स्वाभाविक हैं, क्योंकि नॉमीनेशन पत्र दाखिल करने की अंतिम तिथि 6 जून को मात्र 3 दिन शेष बचे हैं, परंतु सिद्धू मूसेवाला की दिन-दहाड़े आधुनिक हथियारों से हुई हत्या से सारा पंजाब और विदेशों में रहने वाले पंजाबी बुरी तरह से हिल गए हैं। देश में भी सिद्धू मूसेवाला की हत्या पर खूब चर्चा का दौर चल रहा है। अपने ही स्वास्थ्य मंत्री सिंगला को अंदर देकर अपनी लोकप्रियता को शिखर पर ले जाने वाली आम आदमी पार्टी इस हत्याकांड के बाद बुरी तरह से बैकफुट पर है। एक दिन पहले ही उन्होंने वी.आई.पी. कल्चर के नाम पर 400 से अधिक लोगों की सिक्योरिटी में कमी की। सभी को अब इस बात का ऐतराज है कि सिक्योरिटी कम करने के बाद माईलेज लेने के लिए इसे क्यों बड़े स्तर पर प्रचारित किया गया। मूसेवाला का नाम सिक्योरिटी हटाने वाली प्रचार सामग्री में होने के चलते हत्या होते ही लोगों ने सरकार को आड़े हाथों लेना शुरू कर दिया है। धीरे-धीरे अब सरकार पुन: बैकफुर पर आती नजर आ रही है। कांग्रेस सहित सभी राजनीतिक दल सरकार को सिक्योरिटी के मुद्दे पर पूरी तरह से घेर रहे हैं और विपक्ष पंजाब सरकार को अनुभवहीन बता रहा है। 

इसी बीच सभी राजनीतिक दल लोकसभा चुनाव को लेकर भी पूरी तरह से चिंतित हैं। विपक्षी दल एकजुट होकर इस सरकार को घेरना चाहते हैं परंतु फिर भी उनमें आपस में भी प्रतिस्पर्धा इस स्तर पर है कि हर विपक्षी दल कांग्रेस, अकाली दल, बीजेपी एक-दूसरे से आगे निकलने की होड़ में है। सभी विपक्षी दल ऑल पार्टी मीटिंग करना चाह रहे थे ताकि एक गंभीर मंथन हो सके और सरकार को कठघड़े में खड़ा किया जाए परंतु भाजपा से प्राप्त सूत्रों के अनुसार जैसे ही कांग्रेस पार्टी के अध्यक्ष राजा वडि़ंग का ट्वीट आया कि ऑल पार्टी मीटिंग बुलाई गई है और कांग्रेस इसमें महत्वपूर्ण रोल अदा करेगी। देखते ही देखते इस ट्वीट ने भाजपा और अन्य दलों के कान खड़े कर दिए और अंततः एक महत्वपूर्ण बैठक होने से टल गई। 

भाजपा भी इस समय विस्तार के मूड में है। वह नहीं चाहती कि यह मैसेज जाए कि वह कांग्रेस के पीछे लग गई है क्योंकि कांग्रेस के साथ ही उसका मुख्य मुकाबला हिमाचल प्रदेश और गुजरात में है, जहां कुछ ही माह बाद चुनाव होने वाले हैं। अगर राजा वडिंग़ का ट्वीट न आता तो ऑल पार्टी मीटिंग पंजाब की राजनीति को मौजूदा सरकार पर दवाब बनाने का एक और मार्ग प्रशस्त कर सकती। अगर अभी कुछ माह पहले विधानसभा चुनावों को आधार माना जाए तो सभी सीटों पर आम आदमी पार्टी जीती और उनके विधायक बने थे। जबकि इस क्षेत्र में बड़ा आधार रखने वाला अकाली दल बादल जिसमें एक हलके में बहुजन समाज पार्टी ने चुनाव लड़ा था, को मात्र कुल 9 क्षेत्रों में 1 लाख 35 हजार 382 वोटें प्राप्त हुई, जबकि भारतीय जनता पार्टी को इस लोकसभा क्षेत्र में 85 हजार 700 वोटें पड़ी। इसके अतिरिक्त कुछ सीटों पर अकाली दल ढींढसा ग्रुप के कुछ लोगों ने चुनाव लड़ा था। वह वोटें भी अब भाजपा को पड़ सकती हैं। वहीं दूसरी ओर कांग्रेस को 2 लाख 18 हजार 315 के लगभग वोटें पड़ी थी। क्या बीजेपी इस बार कांग्रेस के आस-पास या उसको क्रास कर पाएगी। इस पर सभी की नजरें रहेंगी। इसी तरह अकाली दल को 1 लाख 34 हजार 126 वोटें पड़ी। इसलिए कांग्रेस के पास यह अवसर है कि वह अपने वोट बैंक को मजबूत करके पंजाब में एक मैसेज दे कि पार्टी पुन: पैरों पर खड़ा हो रही है और इसमें वर्करों में जो बिखराव की स्थिति है उसे रोका जा सके। क्या मौजूदा नए हालातों में जब आम आदमी पार्टी थोड़ा-सा बैकफुट में चल रही है, उस स्थिति में विपक्षी दल क्या उसे चुनौती दे सकते हैं। यह कुछ ऐसे प्रश्न हैं जिस पर लोगों की पैनी नजर लगी हुई है। चाहे विपक्षी दल ऊपर से अलग-अलग चुनाव लड़े परंतु अंदर से वह चाहेंगे कि आम आदमी पार्टी की वोटें कम हों ताकि वह अपनी वापिसी कर सकें और सरकार को विफल साबित कर सकें।

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Content Writer

Subhash Kapoor

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