Alert! विकराल रूप ले रहा है वायु प्रदूषण, निरंतर बढ़ रहे अज्ञात रोग, पढ़ें पूरी Report
punjabkesari.in Saturday, Dec 07, 2024 - 02:24 PM (IST)
अमृतस: वायु प्रदूषण तो पूरे देश में चिंता का कारण बना हुआ है लेकिन राजधानी दिल्ली जब वायु प्रदूषण से घुटने लगीं तो पंजाब व हरियाणा के पराली जलाने वाले किसान सारे देश के निशाने पर आ जाते हैं। हर वर्ष सुप्रीम कोर्ट केंद्र और राज्य सरकारों को किसानों को समझाने की नसीहत देती कि प्रदूषण को राज्य सरकारें नियंत्रित करें। इस संबंध में वैज्ञानिकों की माने तो प्रदूषण का मुख्य कारण कई तरह से जनजीवन को प्रभावित कर रहा है। वातावरण की प्रक्रियाओं के विशेषज्ञ वैज्ञानिक महेश दुग्गल का कहना है कि प्रदूषण को कम करने के लिए पूरे विश्व को सक्रिय होना पड़ेगा क्योंकि इसका एक कारण नहीं है। उन्होंने कहा कि प्रदूषण इस समय विकराल रूप ले रहा है और वर्तमान समय में अज्ञात रूप दिखाई दे रहे हैं जिनका अतीत में कोई प्रमाण नहीं है और न ही कोई उपचार ।
स्मॉग का प्रदूषण बन जाता है स्टैटस बादलों का कारण
यह प्रदूषण सर्दी की शुरूआत में पैदा होता है क्योंकि गर्मी के दिनों में मिट्टी की धूल, कारखानों और भट्ठियों का धुआं वातावरण में फैल जाता है और धरती से आकाश की पहली कक्षा ट्रोपो में पहुंच जाता है और नवम्बर के पहले अथवा दूसरे सप्ताह के दिनों में जमीन पर तापमान 20- 25 डिग्री सैल्सियस होता है तो यह स्टैटस बादल का कारण बनता है जो पूरे आसमान को ढक लेते हैं । प्रकृति के नियम के मुताबिक प्रति 1 किलोमीटर ऊंचाई पर 6. 96 डिग्री सैल्सियस तापमान कम हो जाता है। ऐसे वातावरण में जहरीला धुआं व धूल यदि 4 किलोमीटर ऊपर चली जाए तो यह शून्य तापमान अथवा मांईनस में पहुंच जाती है, जहां जमकर यह स्मॉग का रूप ले जाती है और यह परत इतनी सख्त होती है कि सूर्य की किरणें भी इसे भेद नहीं पातीं। इससे दम घुटने लगता है, सांस की तकलीफ होने लगती है। स्मॉग को रोकने के 2 ही विकल्प हैं। या तो इसे हैलीकॉप्टर द्वारा कृत्रिम वर्षा कर तोड़ा जाए या बारिश का इंतजार किया जाए।
वर्षा के लिए बादल गुजर जाता है धरती से 2 किलोमीटर ऊंचाई के निकट
सर्दियों के शुरुआती दिनों में स्माग को तोड़ने अथवा वर्षा के लिए जिन बादलों की आवश्यकता होती है, वह पृथ्वी की सतह से 2 किलोमीटर की ऊंचाई से ही "गरज- बरस" कर गुजर जाते हैं, लेकिन समौग को तोड़ने के लिए 5 किलोमीटर से ऊंचाई पर वर्षा करने वाले बादलों की आवश्यकता होती है और यह बादल अल्टौ-निंबुंलोस, "कम्युमिलिस -निंबुलोस" सीरीज के बादल होते हैं। इस वर्ग के बादलों की सर्दियों में उपलब्धि नहीं होती और यह जनवरी के तीसरे सप्ताह के बीच होते हैं और वह भी बहुत कम वर्षा के साथ। यही कारण है कि नवंबर और दिसंबर में खराब वातावरण की स्थिति बनी रहती है और जनवरी अंत में यह इस स्वत: ठीक हो जाती है ।
ओजोन परत हो रही निरंतर प्रभावित
ओजोन परत पर निरंतर बन रहा गैसों का प्रभाव वैज्ञानिकों के लिए बड़ी चुनौती बना हुआ है । जिस कारण विश्व के कई देश प्रभावित हो रहे हैं। इसमें "होल" के बढ़ने का हालांकि भारत के वायु प्रदूषण पर कोई प्रत्यक्ष असर नहीं है लेकिन खतरनाक किरणों की मार से जीव-जंतुओं, जंगली प्राणियों और पक्षियों के लिए खतरा है जिसकारण भारत में भी कई जीव लुप्त हो चुके हैं। जैसे जंगली क्षेत्रों में सूअर, हाइना, मैदानी क्षेत्रों में आसमानी पक्षी चील, गिद्ध, तोते व अन्य खूबसूरत पक्षी और समुद्री जीवों में मछलियों की कई प्रजातियां लुप्त हो चुकी हैं।
जहरीली गैसों की वातावरण में भूमिका
सामान्य प्रदूषण जिसमें रबड़, लकड़ी और खेतीबाड़ी संबंधी पदार्थों के जलने से पैदा हुए धुएं के प्रदूषण से कहीं अधिक खतरनाक जहरीली गैसों का प्रदूषण है जो पृथ्वी की कक्षा के ट्रोपोस्फेयर से 17 कि.मी. से 7 कि.मी. स्लोपिंग में फैला हुआ है, को बुरी तरह प्रभावित करता है। इनमें के.एफ.सी. (क्लोरो फ्लोरो कार्बन), जीरो (3) की मात्रा मात्र 0.02 प्रतिशत होती है। यह हल्की होती है और पृथ्वी से 30 कि.मी. इसका अस्तित्व दूसरी कक्षा में यानी स्टेट्रोस्फेयर्स तक होता है। यह कम मात्रा में होने के बावजूद बहुत खतरनाक होती है। इसके साथ हाइड्रॉक्लॉरिक कार्बन, कार्बन ट्रोक्लोराइड और अन्य मानव जनित गैसें होती हैं। इनमें सर्वाधिक खतरनाक क्लोरो फ्लोरो कार्बन-113 का पता वर्ष 1987 में लगा था और यह गैस रैफ्रीजरेशन, घरेलू इंसुलेटर और कीटनाशक से पैदा होती है। इसके दुष्प्रभाव को रोकने में अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन और इंग्लैंड की महारानी एलिजाबेथ ने वैश्विक स्तर पर प्रयास किए और कामयाब हुए। इसके बाद दूसरी खतरनाक उक्त गैसें भी सामने आईं जिनका पहले कोई रिकॉर्ड नहीं था, क्योंकि वर्ष 1913 में ओजोन की खोज के बाद 1978 तक इन गैसों का कोई अनुमान नहीं था जो वैज्ञानिकों के लिए मुसीबत बनी हुई हैं।