अकाली दल में टूट का लंबा इतिहास, 104 साल में कई बार बिखर चुकी है पार्टी

punjabkesari.in Tuesday, Jun 25, 2024 - 08:21 PM (IST)

जालंधर  : लोकसभा चुनाव में हुई करारी हार के बाद अकाली दल में एक बार फिर बिखरता हुआ नजर आ रहा है। मंगलवार को जालंधर और चंडीगढ़ में हुई अकाली दल के दो अलग अलग गुटों की बैठकों ने पंजाब में आने वाले दिनों के दौरान राज्य की अकाली सियासत में होने वाले धमाके के संकेत दे दिए हैं। पर यह पहला मामला नहीं है जब पंजाब की एक क्षेत्रीय पार्टी अलग-अलग धड़ों में विभाजित हो गई है। अकाली दल में फूट का लंबा इतिहास रहा है और इससे पहले भी पार्टी कई मौकों पर टूट चुकी है और जब जब पार्टी में फूट पड़ी है, उसे सत्ता से बाहर होना पड़ा है। 2002 के विधानसभा चुनाव से पहले भी अकाली दल फूट का शिकार हो गया था और इस विधानसभा चुनाव में कैप्टन अमरेंद्र सिंह की अगुवाई में कांग्रेस चुनाव जीत गई थी। अब 2027 के विधानसभा चुनाव से अढ़ाई साल पहले एक बार फिर अकाली दल बिखरता हुआ नजर आ रहा है। लिहाजा इसका फायदा निश्चित तौर पर विपक्ष को होने की संभावना है। 

14 दिसम्बर 1920 को बना अकाली दल पहली बार 1928 में जवाहर लाल नेहरू की एक रिपोर्ट को लेकर फूट का शिकार हुआ था। इस दौरान बाबा खड़क सिंह,  ज्ञानी शेर सिंह और मंगल सिंह के अलग-अलग तीन धड़े बन गए थे। 1939 में दूसरे विश्व युद्ध के दौरान भी अकाली दल में ज्ञानी करतार सिंह और ऊधम सिंह नागोके की अगुवाई में दो अलग-अलग धड़े बने थे। इसके अलावा भारत में क्विट इंडिया मूवमैंट में हिस्सा लेने के मुद्दे पर भी अकाली दल में प्रताप सिंह कैरों और मास्टर तारा सिंह की अगुवाई में दो अलग-अलग धड़े बने थे। आजादी के बाद 1948 में अकाली दल एकजुट हो गया था और संयुक्त पंजाब में बनी पहली कांग्रेसी सरकार में हिस्सेदार भी रहा। लेकिन कुछ ही समय बाद अकाली दल और कांग्रेस में अलग सिख राज्य की मांग को लेकर मतभेद पैदा हो गए और अकाली दल सरकार से बाहर आ गया। 

पंजाब का मौजूदा स्वरूप 1966 में सामने आया था और 1967 में हुए पहले विधानसभा चुनाव के दौरान अकाली दल (संत) दूसरी सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरा था। इस दौरान गुरनाम सिंह की अगुवाई में पंजाब में गैर कांग्रेस सरकार बनी, लेकिन अकाली दल में बिखराव के कारण यह सरकार लंबी नहीं चली। दरअसल इस सरकार में लक्षमण सिंह गिल की अगुवाई में 17 विधायकों ने बगावत कर दी थी और बाद में कांग्रेस के समर्थन से अल्पमत सरकार बनाई, लेकिन यह सरकार भी ज्यादा देर नहीं चली और 1969 में पंजाब में दोबारा चुनाव हुए। इन चुनावों से पहले अकाली दल (संत) और अकाली दल मास्टर एकजुट हो गए और गुरनाम सिंह एक बार फिर मुख्यमंत्री बने। परन्तु 1980 में हुए चुनाव में हुई हार के बाद अकाली दल एक बार फिर तीन धड़ों में विभाजित हो गया। इस दौरान जगदेव सिंह तलवंडी, हरचरण सिंह लौंगोवाल और भगवंत सिंह दानेवालिया ने अकाली दल के तीन अलग-अलग धड़े बना लिए थे। इनमें से अकाली दल तलवंडी और अकाली दल लौंगोवाल ने बाद में जरनैल सिंह भिंडरावाले की अगुवाई में एकजुट होने का फैसला भी कर लिया था। 1985 के चुनाव में अकाली दल लौंगोवाल की जीत हुई और सुरजीत सिंह बरनाला 19 सितम्बर 1985 को पंजाब के मुख्यमंत्री बने। पर प्रकाश सिंह बादल धड़े के 27 विधायक इस सरकार से अलग हो गए थे। 

1989 के लोकसभा चुनाव के समय भी पंजाब में अकाली दल (लौंगोवाल), अकाली दल (तलवंडी) और अकाली दल मान के अलग-अलग धड़े थे। इस चुनाव में अकाली दल मान मजबूत होकर उभरा, लेकिन ज्यादा देर तक मजबूत नहीं रह सका। प्रकाश सिंह बादल और बाबा जोगिंद्र सिंह ने अकाली दल मान से अलग नए धड़े बनाए, लेकिन बाद में अकाली दल बादल में भी विद्रोह हो गया और अकाली दल पंथक नाम की नई पार्टी बनी। पर 1992 के लोकसभा चुनाव के दौरान अकाली दल पंथक और अकाली दल लौंगोवाल ने समझौता कर लिया था।

इस बीच 1997 के चुनाव में अकाली दल बादल ने भारतीय जनता पार्टी के साथ गठबंधन किया और पंजाब में पहली बार अकाली-भाजपा की सरकार बनी। इस दौरान प्रकाश सिंह बादल और गुरचरण सिंह टोहड़ा के दरमियान सत्ता की जंग चलती रही और गुरचरण सिंह टोहड़ा ने सर्व हिंद अकाली दल के नाम की एक अलग पार्टी बनाई। इसका अकाली दल को 1999 के लोकसभा चुनाव और 2002 के विधानसभा चुनाव में नुक्सान हुआ। पर 2004 के लोकसभा चुनाव से पहले अकाली दल एक बार फिर एकजुट हुआ और पंजाब में बड़ी जीत हासिल की। इसके बाद 2007 और 2012 के विधानसभा चुनाव के दौरान भी अकाली दल विजयी रहा और भाजपा के साथ मिलकर सरकार बनाई। 


 


सबसे ज्यादा पढ़े गए

Content Editor

Subhash Kapoor

Related News