अमृतसर की बेटी ने जापान में लहराया ‘तिरंगा’

punjabkesari.in Wednesday, Aug 29, 2018 - 07:26 PM (IST)

अमृतसर(सफर ) : खेल में देश का सबसे बड़ा पुरस्कार ‘अर्जुन अवार्ड’ पाना आसान ‘खेल’ नहीं है। इसे पाने के लिए बचपन दांव पर लगाकर कैरियर बचाते हुए खेल के मैदान पर डटना पड़ता है। दिन-रात खेल के लिए एक कर देना पड़ता है। ऐसे ही अमृतसर की एक ऐसी बेटी जिसे खेल से खेल का सबसे बड़ा सम्मान ‘अर्जुन अवार्ड’ से देश ने सम्मानित किया है। इस बेटी ने जापान में ‘तिरंगा’ लहराया और चीन में ‘राष्ट्रगान’ गाया। 

1983 में अर्जुन अवार्ड पाने वाली इस बेटी का खेल और ‘अर्जुन अवार्ड’ के बीच का सफर महज 8 सालों का रहा। यह भी एक रिकार्ड है। 11वीं जमात में पढ़ते हुए 1975 में ‘बॉस्केटबॉल’ थामा और  1983 में ‘अर्जुन अवार्ड’  तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से राष्ट्रपति भवन में लेकर गुरु  नगरी को नमन किया।

जब उनका नाम पुकारा गया और वो सम्मान लेने राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के पास गई तो महामहिम मुस्करा कर बोले‘पंजाब से हो’। उसके बाद तो  ‘पंजाब की बेटी’ खेल के मैदान से लेकर संसद भवन तक मशहूर हो गई। जी हां,  ‘पंजाब केसरी’  खेल दिवस पर पंजाब की उसी बेटी  जिसे खेल की ‘सुमन’ यानि प्रोफेसर (डा.) सुमन शर्मा खास बातचीत लेकर आया है खास आपके लिए। 

सुमन शर्मा सदैव खेल में नंबर 1 पर रही। 1 नंबर गली,  रामतीर्थ रोड (पुतली घर) में परवरिश हुई। सरकारी स्कूल में पढ़ाई। मां चन्द्रकला से संस्कार सीखा और पिता जुगल किशोर शर्मा ने अनुशासन का पाठ पढ़ाया। 3 बहनें व 2 भाईयों में खेल के प्रति मेरा रूझान प्लस वन में शुरू हुआ।  आतंक के दिनों में अकेली लड़की का कॉलेज व खेल के मैदान में जाने पर आस-पड़ोस शुभचिंतक बनकर आते और कहते कि बेटियों को ज्यादा पढ़ाकर करोगे क्या? लेकिन पिता बैंक में थे, कहते थे कि बेटियां नौकरी करे या न करे पढ़ाना तो जरूरी है। उन्होंने मेरी दोनों बहनों को भी बीएड करवाया। हालांकि दो साल पहले जिंदगी से रिटायर हो गए। माता-पिता की प्रेरणा ही थी और मन में विश्वास कि एक दिन खेल के शिखर पर पहुंचना है। 

Des raj