CT Campus रेडः अपने आकाओं का नाम तक नहीं जानते स्लीपर सेल!

punjabkesari.in Thursday, Oct 11, 2018 - 11:34 AM (IST)

जालंधर (बुलंद, कमलेश): जम्मू-कश्मीर और जालंधर पुलिस के साझे ऑपरेशन में एक बड़े शिक्षण संस्थान से पकड़े गए 3 कश्मीरी छात्रों के संबंध कश्मीरी आतंकी संगठनों से पाए गए हैं। पुलिस कमिश्नर ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में साफ कहा कि ये स्लीपर सेल की तरह काम कर रहे थे, जो आमतौर पर अपने आका का नाम तक नहीं जानते। सुरक्षा मामलों के विशेषज्ञों की मानें तो इस समय देश में अनगिनत स्लीपर सेल सक्रिय हैं जो पाकिस्तान, चीन और कई अन्य देशों की एजेंसियों के लिए काम कर रहे हैं। इनके जरिए देश में कहीं भी कोई बड़ा आतंकी हमला करवाया जा सकता है। ये आम लोगों के रूप में रहते हैं, काम करते हैं और इनके जरिए देश के दुश्मन देश की आंतरिक गतिविधियों पर नजर रखते हैं। देश की प्रमुख इमारतों की रेकी भी इनके जरिए करवाई जाती है।
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गरीबी, बेरोजगारी व राजनीतिक सिस्टम के प्रति गुस्से के कारण बनते हैं स्लीपर सेल
असल में किसी भी देश में जहां गरीबी, बेरोजगारी व राजनीतिक सिस्टम के प्रति गुस्सा होता है, वहां देश के दुश्मन बड़ी आसानी से स्लीपर सेल का गठन कर लेते हैं। भारत में खासकर जम्मू-कश्मीर, पंजाब और नक्सलवाद प्रभावित इलाकों पर देश के दुश्मनों की खास नजर रही है। जानकार बताते हैं कि स्लीपर सेल बनाने के लिए सबसे पहले कोई देश विरोधी व्यक्ति, जो खुद एक स्लीपर सेल होता है, उसके द्वारा ऐसे युवाओं को टारगेट करके चुना जाता है, जो या तो नशे के आदी हों या फिर पैसा कमाना चाहते हों। पहले छोटे-मोटे अपराध करवाकर इनका डर दूर किया जाता है, फिर इन्हें बड़े अपराध के लिए तैयार किया जाता है। यह एक ऐसा दलदल है, जिसमें से बाहर आना असंभव हो जाता है, क्योंकि अगर बाद में कोई काम करने से इनकार करता है तो उसे या तो जान से मार दिया जाता है या फिर उसकी जरूरतें पूरी करनी बंद कर दी जाती हैं।  
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बेहद खतरनाक पर महज प्यादे भर होते हैं स्लीपर सेल 
रक्षा विशेषज्ञ बताते हैं कि ये स्लीपर सेल बेहद खतरनाक होते हैं, पर इनकी औकात देश विरोधी एजेंसियों की नजर में महज शतरंज के प्यादे जितनी ही होती है। इनको यह भी मालूम नहीं होता कि वे किस एजेंसी के लिए काम करते हैं और उनका आका कौन है। इन्हें इनकी रकम, हथियार और पैसा किसी अन्य स्लीपर सेल के जरिए पहुंचा दिया जाता है। 
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कैसे सावधान रहें इन स्लीपर सेल से

  •  किराएदार पूरी वेरिफिकेशन करके रखा जाएं।
  • आपके घर में या आसपास पी.जी. में कोई  किराएदार रहता हो, जो बाहर से आया हो तो उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जाए। कोई शक वाली बात हो तो तुरंत पुलिस को बताया जाए।
  • किराएदार की इनकम के साधन का ध्यान रखा जाए। अगर किराएदार स्टूडेंट है तो उसे पैसे कहां से आ रहे हैं, इसका ध्यान रखा जाए। कई बार ऐसा होता है कि स्टूडेंट्स के पास किराए देने के पैसे नहीं होते, क्योंकि वे साधारण परिवार से होते हैं, पर उनके पास महंगे मोबाइल, बाइक्स आदि रहते हैं। इससे साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि वे कोई गलत काम करते हैं। 
  • दूसरे देशों या राज्यों से आकर रहने वाले किराएदारों पर विशेष नजर रखनी चाहिए कि क्या वे सारा दिन कमरे में तो नहीं गुजारते। उनके कमरे की एक चाबी पी.जी. या मकान मालिक के पास होनी चाहिए, ताकि जब चाहे कमरे की चेकिंग की जा सके।
  • जानकारों की मानें तो स्लीपर सेल ज्यादातर अपने साथियों से इंटरनेट और सोशल मीडिया के जरिए बात करते हैं। इसके लिए कई कोड वर्ड होते हैं। सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की रेग्युलर चेकिंग करनी चाहिए कि किन इलाकों से या किन कम्प्यूटरों व लैपटॉप से कश्मीर, पाकिस्तान, बांग्लादेश आदि देशों में ई-मेल के जरिए संपर्क किया जा रहा है। 
  • सुरक्षा एजेंसियों को अपना सोशल मीडिया सेल ज्यादा एक्टिव करने की जरूरत है, क्योंकि जो युवा सोशल मीडिया पर देश विरोधी गतिविधियां ज्यादा करते हैं, उन पर नजर रखकर उन्हें स्लीपर सेल बनने से बचाया जा सकता है। 

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