Tariff के बाद आज भी कंफ्यूजन की स्थिति में चल रहा है भारत-अमरीका का कारोबार, पढ़ें
punjabkesari.in Monday, Oct 27, 2025 - 10:58 AM (IST)
लुधियाना(धीमान): जब से अमरीका ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाया है, उसके बाद से आज तक दोनों ओर के कारोबारी पशोपेश में हैं यानी उन्हें कंफ्यूजन है कि वे अमरीकन बायर्स को माल बेचें या नहीं। अगर बेचते है तो उन्हें 15 से 30 प्रतिशत डिस्काऊंट देना पड़ेगा जिससे उनका सारा लाभ अमरीकन बायर्स ले जाएंगे। अगर नहीं बेचते ताे ग्राहक खोने का डर सता रहा है।
ऐसी कंफ्यूजन वाली स्थिति में भारतीय निर्यातकों ने 50 प्रतिशत से ज्यादा का उत्पादन कम कर दिया है। जो उत्पादन हो रहा है, वह टैरिफ लगने से पहले के ऑर्डर है जिनका उन्होंने भुगतान करना है। नए ऑर्डर अभी आ नहीं रहे। जो आ रहे हैं, वे 50 प्रतिशत तक का डिस्काऊंट मांगना शुरू हो गए हैं। अभी दोनों देशों के कारोबारी इस इंतजार में हैं कि शायद बढ़ा हुआ टैरिफ अमरीकी राष्ट्रपति वापस ले लें। कुछ निर्यातक मानते हैं कि टैरिफ का जितना प्रभाव पड़ता हुआ दिखा दे रहा था, उससे काफी हद तक बचाव हो गया। वजह साफ है कि वहां के बायर्स को भी समझ आ गया कि भारत के अलावा दूसरे देशों के साथ कारोबार करना आसान नहीं होगा।
टैक्सटाइल के अमरीकी कारोबार में 13 प्रतिशत तक ही दर्ज हुई है गिरावट
गंगा एक्रोवूल के मैनेजिंग डायरेक्टर अमित थापर कहते हैं कि टैरिफ बढ़ने का जिस तरह हो-हल्ला मचा था, उससे लगता था कि टैक्सटाइल का कारोबार अमरीका के साथ बिल्कुल बंद हो जाएगा लेकिन दोनो देशों के खरीदारों की आपसी समझ के चलते कारोबारी अभी चल रहा है। जहां अमरीकन बायर्स 50 प्रतिशत तक डिस्काऊंट की मांग रहे हैं, वह संभव नहीं है। हमारे यहां से 15 फीसदी तक का डिस्काऊंट ऑफर किया जा रहा है जिससे सारा मार्जिन खत्म तो हो गया लेकिन भविष्य के लिए खरीदार बचे रहें, इसलिए पुराने ऑर्डरों का भुगतान किया जा रहा है। नए ऑर्डर अभी सोच-समझ कर लिए जा रहा है।
अमरीका के साथ कारोबार कब नॉर्मल पोजीशन में आएगा, कहना मुश्किल
गर्ग एक्रेलिक लिमिटेड के सी.ई.ओ. राजीव गर्ग कहते हैं कि अमरीका के साथ भारतीय कारोबारियों का कारोबार कब नॉर्मल पोजीशन में आएगा, यह कह पाना मुश्किल हो गया है। फिल्हाल सारे ऑर्डर होल्ड पर हैं और जो डिस्काउंट अमकीकन बायर्स मांग रहे हैं, वह दे पाना मुश्किल है जिसके चलते पुराने ऑर्डर भी रोक दिए गए हैं। अब डर सता रहा है कि माल डम्प होने के बाद अब अगर वह खराब हो गया तो उसकी भरपाई कैसे की जाएगी। दूसरा उत्पादन भी घटा दिया गया है। इसके घटने से लेबर भी खाली हो गई है। अब अगर लेबर को निकालते हैं तो दोबारा लेबर को लाना मुश्किल हो जाएगा। अब ऐसी स्थिति पैदा हो गई है कि लेबर को रोके रखने के लिए अपनी जेब से पैसे अदा करने पड़ रहे हैं। कुल मिलाकर स्थिति अभी असमंजस वाली है।

