कैप्टन को दोबारा मुख्यमंत्री बनाने के जाखड़ के बयान से कांग्रेस में घमासान

punjabkesari.in Thursday, Feb 25, 2021 - 04:42 PM (IST)

चंडीगढ़(हरिश्चंद्र): पंजाब कांग्रेस अध्यक्ष सुनील जाखड़ द्वारा गत बुधवार को पंजाब के निकाय चुनाव के नतीजे आने के साथ ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के हक में ‘कैप्टन फॉर-2022’ मुहिम छेडऩा पार्टी में विरोधी गुटों को रास नहीं आया है। कैप्टन-जाखड़ गुट के विरोधी नेताओं ने इसे पार्टी हाईकमान के अधिकार क्षेत्र में सीधे दखल करार दिया है। उनका तर्क है कि कांग्रेस में किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री की घोषणा केवल पार्टी हाईकमान ही करती है। अब हाईकमान के पास भी इसकी शिकायत करने की तैयारी की जा रही है कि उसे नजरअंदाज करके पंजाब में संगठन अलग दिशा में स्वतंत्र रूप से काम करने में लगा है। जाखड़ और कैप्टन अमरेंद्र की जुगलबंदी किसी से छिपी नहीं है। दोनों नेताओं का आपसी तालमेल ऐसा है कि हाल ही में हुए निकाय चुनाव के नतीजे आते ही जाखड़ ने कैप्टन और मुख्यमंत्री ने जाखड़ के नेतृत्व की तारीफ करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी।

हालांकि जाखड़ के बयान के बाद प्रदेश कांग्रेस प्रभारी हरीश रावत ने यह कहते हुए इसे कवर करने की कोशिश की थी कि यह तो कांग्रेस की परम्परा है कि अमूमन उसी के नेतृत्व में चुनाव लड़ा जाता है जो सिटिंग सी.एम. होता है। पार्टी सूत्रों का मानना है कि जाखड़ ने कैप्टन अमरेंद्र को वर्ष 2022 में दोबारा मुख्यमंत्री बनाने का बयान बेवजह नहीं दागा था, बल्कि इसके पीछे हाईकमान के साथ नवजोत सिंह सिद्धू की चल रही मुलाकातों का सिलसिला अहम रहा है।  दरअसल, नवजोत सिंह सिद्धू की कांग्रेस में सक्रिय भागीदारी और उनकी पसंदीदा भूमिका अब तक कांग्रेस हाईकमान तय नहीं कर पाई है। जून-2019 में पंजाब मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने के बाद से सिद्धू पंजाब और कांग्रेस में निष्क्रिय हैं। लगभग 20 माह के दौरान राहुल-प्रियंका गांधी से कई दौर की बैठकों और हाल ही में सोनिया गांधी के साथ मुलाकात के बावजूद पार्टी में सिद्धू के भविष्य और राज्य सरकार में उनकी गरिमापूर्ण वापसी को लेकर हाईकमान दुविधा में ही है। यह भी कहा जा रहा है कि सरकार में कैप्टन अमरेंद्र की चली तो संगठन में पार्टी हाईकमान अपनी मनमर्जी करेगी। यानी डिप्टी सी.एम. बनाने में कैप्टन की आनाकानी से प्रदेश प्रधान की नियुक्ति का फैसला हाईकमान खुद कर सकती है।

सिद्धू को डिप्टी सी.एम. या प्रदेश कांग्रेस प्रधान की जिम्मेदारी सौंपने की अटकलें कई दिन से चल रही हैं। जाखड़ भी जानते हैं कि कैप्टन अमरेंद्र किसी भी सूरत में सिद्धू को डिप्टी सी.एम. नहीं बनाएंगे। ऐसे में उनकी प्रधानगी को लेकर हाईकमान के साथ कोई समझौता हो सकता है। गौरतलब है कि 2017 के विधानसभा चुनाव से पहले भी जाखड़ के ही पद की बलि दी गई थी। तब हाईकमान पर दबाव बनाकर कैप्टन अमरेंद्र सिंह ने प्रताप सिंह बाजवा से प्रदेश कांग्रेस की प्रधानगी छीनी थी मगर हाईकमान ने सुनील जाखड़ से नेता प्रतिपक्ष का पद लेकर चरणजीत सिंह चन्नी को सौंप दिया था। तब कहा गया था कि कैप्टन अमरेंद्र ने सुनील जाखड़ को इसकी एवज में राज्यसभा भेजने की बात हाईकमान से की थी लेकिन जब चुनाव हुआ तो बाजवा और शमशेर सिंह दूलों राज्यसभा पहुंच गए।अब फिर ऐसी ही आशंका जाखड़ खेमे को है। उन्हें लगता है कि सिद्धू को डिप्टी सी.एम. बनाए जाने की बजाय प्रदेश कांग्रेस की प्रधानगी के लिए कैप्टन राजी हो सकते हैं। प्रदेश अध्यक्ष का पद संगठन में मुख्यमंत्री से कम नहीं है। यदि सिद्धू को प्रधानगी मिली तो वह मुख्यमंत्री के समानांतर संगठन चलाने से पीछे नहीं हटेंगे। हालांकि कैप्टन सूबे के सामाजिक ताने-बाने का हवाला देकर मौजूदा सिस्टम को सही बताते हैं जिसमें मुख्यमंत्री जट्ट सिख है तो प्रदेश प्रधान हिंदू है। वह तो यह भी कह चुके हैं कि सिद्धू पार्टी में नए हैं और उनसे पुराने कई सक्षम नेता पार्टी में हैं। सिद्धू को डिप्टी सी.एम. बनाए जाने की चर्चा तो 2017 के चुनाव से ही चल पड़ी थी मगर हालात ने ऐसी करवट ली कि सिद्धू को मंत्री पद भी गंवाना पड़ गया। हालांकि यह हालात भी सिद्धू ने ही मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह के विरोध में बयानबाजी करके खुद पैदा किए थे। उनकी छवि को पार्टी कई चुनाव में भुना चुकी है और आगे भी हाईकमान का इरादा ऐसा ही है मगर कैप्टन का रवैया इसके आड़े आ रहा है। वह सिद्धू को उन विभागों के मंत्री के तौर पर ही अपनी कैबिनेट में वापस लेना चाहते हैं जिन्हें ठुकरा कर सिद्धू ने इस्तीफा दिया था मगर सूत्रों के मुताबिक हाईकमान के साथ बैठक में सिद्धू ने स्थानीय निकाय आदि वही पुराने विभाग वापस मांगे थे, जो 2019 के फेरबदल में उनसे छीने गए थे।

‘पंजाब में इस समय कैप्टन एकछत्र नेता’
दरअसल, पंजाब में इस समय न केवल कैप्टन अमरेंद्र सिंह पार्टी के एकछत्र नेता हैं, बल्कि उन्होंने अपने कद के आसपास का भी कोई विकल्प पनपने नहीं दिया। राज्यसभा सांसद प्रताप सिंह बाजवा और शमशेर सिंह दूलों को छोड़ दें तो कांग्रेस पार्टी में कोई भी ऐसा नेता नहीं है जो सार्वजनिक तौर पर कैप्टन की मुखालफत करता हो। अलबत्ता दर्जनभर असंतुष्ट विधायक जरूर हैं जो ओहदा न मिलने के कारण नाराज हैं लेकिन किसी ने भी कैप्टन के खिलाफ खुलकर बोलने से गुरेज ही किया है। यही वजह है कि सिद्धू पार्टी में अलग-थलग पड़ गए।

‘कैप्टन के नेतृत्व में चुनाव लडऩे की बात कही थी’
इस पूरे मामले में सुनील जाखड़ का कहना है कि मुझे भी पता है कि मुख्यमंत्री का ऐलान करना आलाकमान का अधिकार क्षेत्र है। कई सालों से संगठन से जुड़ा हूं और सांसद व विधायक तक रह चुका हूं। मुझे बेहतर पता है कि संगठन कैसे चलता है और मेरी सीमा क्या है। विरोधी नेता मेरे बयान के अपने तरीके से अर्थ निकाल कर विपक्ष को मजबूत करने की कोशिश न करें, तो बेहतर होगा।

‘कैप्टन अमरेंद्र सिंह के कद से पार्टी हाईकमान भी वाकिफ’
कैप्टन अमरेंद्र सिंह के कद से पार्टी हाईकमान भी वाकिफ है और इस कारण वह नवजोत सिंह सिद्धू को लेकर उन पर कोई दबाव बनाने की स्थिति में नहीं है। इसमें कोई संदेह नहीं कि सिद्धू तेजतर्रार और साफ-सुथरी छवि वाले नेता हैं और हाईकमान भी उनके जैसा नेता खोना नहीं चाहेगा। अब अमरेंद्र सिंह और सिद्धू को लेकर हाईकमान की दुविधा कैसे दूर होगी, इसकी चाबी भी अमरेंद्र के ही पास है।

 


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Vatika

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