लुधियाना के लोगों में डर की चुप्पी, गलियों-बाजारों में...
punjabkesari.in Saturday, Oct 11, 2025 - 02:39 PM (IST)
लुधियाना (गणेश): महानगर जो कभी अपनी रौनक और हिम्मत के लिए जाना जाता था, अब धीरे-धीरे खामोशी के घेरे में समाता जा रहा है। सड़कों पर वही चहल-पहल है, बाजार खुले हैं, ट्रैफिक की आवाजें भी हैं मगर लोगों के दिलों में अब एक अनकहा डर पलने लगा है। शहर में आए दिन होने वाली वारदातों ने माहौल को ऐसा बना दिया है कि लोग अब सच्चाई देखने के बाद भी बोलने से डरते हैं। गलियों में, बाजारों में, यहां तक कि भीड़ में भी अब बात करते हुए लोग इधर-उधर देखकर बोलते हैं। जो मुंह पहले खुलकर बोलते थे, अब चुप हैं।
किसी गली में अगर कोई झगड़ा होता है या कोई संदिग्ध हलचल दिखती है, तो आसपास के लोग खिड़कियों से झांककर देखते तो हैं, मगर बाहर नहीं निकलते। किसी के पास वीडियो बनाने की हिम्मत नहीं, किसी के पास पुलिस को बताने का साहस नहीं। डर अब अपराध से नहीं, बल्कि “सच बोलने” से लगने लगा है। लुधियाना के कई इलाकों में अब लोग अपने बच्चों को घर से बाहर भेजने में झिझकने लगे हैं। रात के वक्त गलियां जल्दी सुनसान हो जाती हैं।
शहर के पुराने चौक जहां देर रात तक हलचल रहती थी, अब अंधेरा होते ही शांत पड़ जाते हैं। हर कोई अपनी सुरक्षा में उलझा हुआ है, और किसी और के लिए आवाज उठाना अब “जोखिम” बन गया है। कभी शहर में छोटी बात पर भी दर्जनों लोग इकट्ठे होकर मदद को पहुंच जाते थे। आज वही शहर किसी की मदद की पुकार सुनकर खिड़कियां बंद कर लेता है। कई इलाकों में तो अब यह कहा जाने लगा है “जो देखा, वो अपने तक रखो।”
यह डर सिर्फ शहर की सड़कों पर नहीं, बल्कि लोगों के दिमाग में बैठ चुका है। धीरे-धीरे लुधियाना “साइलेंट सिटी” बनता जा रहा है जहाँ हर चीज़ सामान्य दिखती है, पर माहौल के भीतर बेचैनी है। दिन के उजाले में भी लोग एक-दूसरे पर भरोसा करने से पहले सोचते हैं। दुकानें खुली हैं, गाड़ियां चल रही हैं, लेकिन शहर की रफ़्तार में अब पहले जैसी आजादी नहीं। हर कोई डर के साथ जी रहा है कि कहीं कुछ बोलना, खुद पर मुसीबत न ले आए। लुधियाना का यह बदलता चेहरा सिर्फ जुर्म की कहानी नहीं, बल्कि उस शहर की तस्वीर है जहां सच बोलने की हिम्मत धीरे-धीरे खत्म हो रही है और यही खामोशी आने वाले कल के लिए सबसे बड़ा सवाल बनकर उभर रही है।
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